अपराध क्या है? अपराध और पाप में क्या अंतर है? आरोप और अपराध में क्या अंतर है?

अपराध क्या है (what is crime)? अपराध और पाप में क्या अंतर है (difference between crime and sin in Hindi)? आरोप (charge) और अपराध में क्या अंतर है? (difference between charge and crime in hindi)
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अपराध क्या है (What is crime)? अपराध और पाप में क्या अंतर है (Difference between Crime and Sin in Hindi)? आरोप और अपराध में क्या अंतर है (Difference between Charge and Crime in Hindi)?

What is crime – ऐसा कार्य जो विधि या कानून (Law) द्वारा वर्जित हो, यानी जिस कार्य को करने की इजाजत कानून न देता हो और जिसके लिए कानून या दंड विधि (जैसे- भारतीय दंड संहिता- IPC) में दंड का प्रावधान किया गया हो, साथ ही जो कार्य समाज विरोधी भी हों, उन्हें अपराध (Crime) माना जाएगा. उदाहरण के लिए- हत्या, चोरी, डकैती, बलात्कार आदि अपराध है, क्योंकि ये न केवल दंड विधि के तहत दंडनीय हैं, बल्कि समाज विरोधी कार्य भी हैं.

भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code-IPC) की धारा 40 के अनुसार, ऐसा हर एक कार्य या कार्य का लोप (किसी कार्य को न करना) अपराध होगा, जिसके लिए दंड संहिता में दंड का प्रावधान हो.

यानी किसी ऐसे कार्य को न करना अपराध होगा, जिसे करने का निर्देश दिया गया हो. जैसे- अगर कोई जेलर किसी कैदी को खाना नहीं देता है, जिससे उस कैदी की मृत्यु हो जाती है, तो यह अपराध माना जाएगा.

अपराध और पाप में क्या अंतर है (Difference between Crime and Sin)

अपराध और पाप के बीच मुख्य अंतर (Difference between Crime and Sin) यही है कि अपराध कानून के तहत दंडनीय है, जबकि पाप के लिए व्यक्ति को दंडित नहीं किया जा सकता है. उदाहरण के लिए- अच्छा तैराक जो किसी नदी के किनारे खड़ा है, लेकिन अपने सामने किसी डूबते हुए बच्चे को बचाने का प्रयास नहीं करता, तो उसे किसी भी दंड का दोषी नहीं माना जा सकता.

कोई व्यक्ति किसी भूखे भिखारी को खाना नहीं देता है, जबकि वह जानता है कि अगर उस भिखारी को जल्द ही खाना न दिया गया तो उसकी मृत्यु भी हो सकती है. भिखारी को खाना न मिलने पर उसकी मृत्यु हो जाती है, तो इसके लिए उस व्यक्ति को दंडित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि कानून के तहत उसका कार्य अपराध नहीं है, लेकिन उसका ये कार्य पाप जरूर माना जा सकता है.

उन जानवरों की हत्या करना अपराध नहीं है, जिनकी हत्या के लिए कानून की तरफ से कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है, लेकिन यह पाप हो सकता है. यानी कोई भी कार्य नैतिकता की नजर से कितना भी बुरा क्यों न हो, लेकिन वह तब तक अपराध नहीं होता, जब तक किसी विधि या कानून के तहत उसे अपराध की श्रेणी में न रखा गया हो.

यानी हम कह सकते हैं कि अपराध के गठित होने के लिए इन बातों का होना जरूरी है- कार्य या लोप, मनुष्य, दुराशय और दंड.
(1) किसी कार्य या कार्य का लोप होना,
(2) दूषित आशय या दुर्भावना,
(3) उस कार्य या कार्य के लोप के लिए दंड विधि में दंड का प्रावधान होना.

अपराध के इन तत्वों से पता चलता है कि अपराध होने के लिए ‘आशय’ (Intention) और ‘कार्य’ दोनों का होना जरूरी है. जहां आशय या आपराधिक मनःस्थिति का मतलब है कि “केवल कार्य किसी भी व्यक्ति को अपराधी नहीं बनाता, अगर उसका मन भी अपराधी ना हो.”


अपराध के लिए मनःस्थिति का महत्व

अपराधशास्त्र में ‘हेतु’ या ‘उद्देश्य’ का भी बहुत महत्व है. किसी व्यक्ति का कोई कार्य अपराध माना जाएगा या नहीं, इसके लिए उसके हेतु या उद्देश्य पर भी विचार किया जाता है. बेईमानी से, कपटपूर्वक, स्वेछया आदि दुराशय के ही उदाहरण हैं.

IPC के अध्याय 4 में ‘साधारण अपवाद’ के तहत उन परिस्थितियों या हालात के बारे में बताया गया है, जिनके मौजूद होने पर किसी व्यक्ति के आपराधिक कार्य को भी अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जाता या व्यक्ति के अपराध को क्षमा करने योग्य माना जाता है.

उदाहरण के लिए- 7 साल से कम उम्र के किसी बच्चे द्वारा या किसी पागल द्वारा किया गया अपराध. किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सम्मति से सद्भावपूर्वक किया गया कार्य.

जैसे- कोई डॉक्टर किसी व्यक्ति की जान बचाने के उद्देश्य से उसके परिजनों की सहमति से उसका ऑपरेशन करता है, जबकि वह जानता है कि इससे व्यक्ति को बेहद तकलीफ होगी, साथ ही ऑपरेशन असफल भी हो सकता है और व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है, तो ऑपरेशन असफल हो जाने पर भी वह डॉक्टर दोषी नहीं होगा.

‘आपराधिक मनःस्थिति’ और ‘आपराधिक कार्य का होना’ के अपवाद

लेकिन आशय या आपराधिक मनःस्थिति के अपवाद भी हैं- लोक न्यूसेंस, अपमान लेख और न्यायालय की अवमानना. ये ऐसे अपराध हैं जिनमें आशय या आपराधिक मन का महत्व नहीं है.

वहीं, किसी ‘आपराधिक कार्य का होना’ के भी अपवाद हैं, यानी अगर आपराधिक कार्य पूरा ना हुआ हो, या उस कार्य से किसी व्यक्ति को कोई क्षति भी ना हुई हो, तो भी वह अपराध है. ऐसे मामलों को ‘प्रारंभिक अपराध (Preliminary Offence)’ कहा जाता है, जैसे- प्रयत्न, दुष्प्रेरण और षड्यंत्र. डकैती का प्रयास ही अपराध है. ‘अपराध करने के प्रयास’ का मतलब है कि अपराध करने के उद्देश्य से उस अपराध को करने की दिशा में कोई कार्य करना.

‘शेराज बनाम रुटजेन’ के मामले में जस्टिस राइट का कहना था कि “हर एक अधिनियम में मनःस्थिति मौजूद है, जब तक कि इसके प्रतिकूल सिद्ध ना कर दिया जाए.”


अपराध के स्तर (Crime Stage) : किसी भी अपराध की कुल चार अवस्थाएं होती हैं-

(1) आशय : किसी अपराध की पहली अवस्था है आशय. किसी व्यक्ति के मन में किसी भावना का उत्पन्न होना ही आशय है.

IPC में ‘दुष्प्रेरण’ और ‘आपराधिक षड्यंत्र’ आशय के तहत दंडनीय हैं.

(2) तैयारी : आशय के बाद वाला स्टेज है तैयारी, जैसे- माचिस खरीदना, बंदूक उधार लेना, जहर प्राप्त करना आदि.

IPC में धारा 122 (भारत सरकार के खिलाफ युद्ध की तैयारी), धारा 126 (भारत सरकार के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध रखने वाले देशों में आतंक मचाने की तैयारी), धारा 235 (जाली या नकली सिक्के बनाने की तैयारी) और धारा 399 (डकैती की तैयारी) ‘तैयारी’ के तहत दंडनीय हैं. यानी इन आपराधिक कार्यों की केवल तैयारी करना ही अपराध है.

(3) प्रयत्न या प्रयास : तैयारी के बाद अगला कदम है प्रयास, जो अगर पूरा हो जाए तो अपराध बन जाएगा.

IPC में धारा 307 (हत्या का प्रयास), धारा 308 (सदोष मानव वध का प्रयास), धारा 309 (आत्महत्या का प्रयास) और धारा 393 (लूट का प्रयास) ‘प्रयास’ के तहत दंडनीय हैं. यानी इन आपराधिक कार्यों का केवल प्रयास ही अपराध है.

(4) अपराध : किसी आपराधिक कार्य का पूरा हो जाना अपराध है.

तैयारी और प्रयास में अंतर : किसी अपराध के लिए साधनों को इकट्ठा करना तैयारी है और अपराध पूरा करने की इच्छा रखते हुए कार्य किया जाना प्रयास है.


अलग-अलग विद्वानों से अपराध की अपने-अपने शब्दों में परिभाषा दी है-

केनी (Kenny) के अनुसार, “अपराध उन अवैध कार्यों को कहते हैं, जिनके बदले में दंड दिया जाता है और वे क्षमा करने योग्य नहीं होते और अगर क्षमा करने योग्य होते भी हैं तो राज्य के अलावा अन्य किसी को क्षमा करने की अधिकारिता नहीं होती है.”

क्रॉस एंड जोंस के अनुसार, “अपराध जानबूझकर किया गया विधिक अपकार है, जिसके उपचार के रूप में राज्य की तरफ से अपराधी को दंडित किया जाता है.”

हैल्सबरी के शब्दों में, “अपराध एक ऐसा अवैध कृत्य है जो लोकहित के खिलाफ है और जिसे करने वाले को विधि के तहत दंडित किया जा सकता है.”

ऑक्सफोर्ड के शब्दों में, “अपराध विधि द्वारा दंडनीय कार्य है क्योंकि यह अधिनियम द्वारा निषिद्ध है या लोकहित के लिए हानिकारक है.”

ब्लैकस्टोन के अनुसार, “किसी कार्य को निषिद्ध करने या समादेशित करने वाले लोक विधि के उल्लंघन में किया गया कार्य अपराध है.”

मिलर के अनुसार, “विधि द्वारा दंड के भय से निषिद्ध या आदेशित किसी कार्य को करना या उसकी अपेक्षा करना अपराध है, जिसे राज्य अपने नाम में कार्यवाही शुरू करके आरोपित करता है.”


आरोप क्या है? आरोप और अपराध में क्या अंतर है?

किसी व्यक्ति पर जांच के बाद कोई अभियोग आरोपित किया जाना आरोप (Charge) है. आरोप किसी व्यक्ति को उसके द्वारा किए गए किसी दंडनीय कार्य की एक सूचना देना है. इसके तहत उस व्यक्ति को यह सूचना दी जाती है कि किसी आपराधिक घटना के घटित होने में वह कितना जिम्मेदार है.

आरोप का उद्देश्य आरोपी को इस बात का अवसर देना है कि वह अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों का उत्तर दे सके और अपना बचाव कर सके. CrPC की धारा 211 में यह बताया गया है कि आरोप में उस अपराध का वर्णन किया जाएगा, जिसका दोष उस व्यक्ति पर लगाया गया है.

वारंट केसों (Warrant Cases) में जो मामले पुलिस रिपोर्ट के आधार पर शुरू होते हैं, उनके आरोप पत्र या चार्जशीट अभियुक्तों को दे दी जाती है, लेकिन सम्मन मामलों (Summons Cases) में चार्जशीट की जरूरत नहीं होती.

आरोप और अपराध में अंतर (Difference between charge and crime)

(1) आरोप और अपराध में मुख्य अंतर यही है कि आरोप तभी लगाया जा सकता है जब कोई अपराध घटित हो जाए, जबकि अपराध का अस्तित्व पहले से ही होता है.

(2) आरोप हमेशा जांच के बाद लगाया जाता है, जिसमें अभियुक्त को उस दंडनीय कार्य में जिम्मेदार ठहराया जाता है, जबकि अपराध में कार्यवाही अपराध होने के बाद शुरू हो जाती है.

(3) आरोप वारंट मामलों में लगाए जाते हैं. छोटे-छोटे सम्मन मामलों में आरोप-पत्र या चार्जशीट बनाए जाने की जरूरत नहीं होती.

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