Ancient Indian Caste System (2) : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र आदि क्या हैं?
यक्ष ने पूछा- “हे राजन! कुल, आचार, स्वाध्याय और शास्त्रश्रवण- इनमें से किसके द्वारा ब्राम्हणत्व की प्राप्ति होती है? कृपया निश्चय करके बतायें.” […]
यक्ष ने पूछा- “हे राजन! कुल, आचार, स्वाध्याय और शास्त्रश्रवण- इनमें से किसके द्वारा ब्राम्हणत्व की प्राप्ति होती है? कृपया निश्चय करके बतायें.” […]
चूंकि शारीरिक आधार पर तो मनुष्य में कोई भेद नहीं है, लेकिन गुण, कर्म, रुचि, योग्यता, व्यवहार, आचरण, अच्छाई, बुराई आदि के आधार तो अनेक भेद हैं. यहां तक कि एक ही परिवार के सभी सदस्य एक-दूसरे के जैसे नहीं होते… […]
फल की चिंता उसे ही ज्यादा सताती है जिसने अपने कर्म निर्वहन में पूर्ण निष्ठा न निभाई हो. जैसे- एक विद्यार्थी जिसने बहुत मेहनत से परीक्षा की तैयारी की है, वह परीक्षा देकर परिणाम की चिंता नहीं करेगा बल्कि … […]
मैंने कई हिंदुओं को ऐसे प्रश्नों से दुष्प्रभावित होते हुये देखा है. लेकिन क्या कोई भी व्यक्ति आपसे भी इस प्रकार का अतार्किक सवाल करे, तो क्या आप भी वाकई में कोई जवाब नहीं दे पाएंगे…? […]
सूजी नारियल के लड्डू (Suji Coconut Ladoo in Hindi) – प्रोटीन, फाइबर, आयरन जैसे पोषक तत्वों से भरपूर सूजी नारियल के लड्डू बनाने की विधि. सूजी […]
प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्री वाराहमिहिर द्वारा रचित सुप्रसिद्ध ग्रन्थ बृहत्संहिता विज्ञान का एक व्यापक विश्वकोश ज्योतिष, ग्रहों, नक्षत्रों, तारों, बादलों, वर्षा, पौधों, फसलों, भूकंप, तूफान, उल्काओं आदि विषयों का विस्तृत वर्णन करती है. […]
स्त्रियों के लिए कहा गया है कि वे स्वयं को केवल कामवासना की तृप्ति का साधन न बनने दें. माता, गृहिणी एवं पति की मित्र के तौर पर अपने गौरव की रक्षा करें. […]
कमल का फूल सदैव प्रस्फुटन, उन्मीलन, सद्यस्फूर्ति, अनासक्ति एवं अलिप्तता का प्रतीक रहा है. आज भी सबके बीच रहकर, अपने समाज और परिवेश की बुराइयों से अप्रभावित रहने वाले व्यक्ति के लिए ‘कीचड़ में कमलवत्’ की उपमा दी जाती है. […]
वृंदावन में श्रीकृष्ण और गोपियों का संपूर्ण जीवन क्रीड़ामय है. इसमें श्रीकृष्ण और राधाजी के अंग-प्रत्यंग की शोभा का अनेकानेक पदों में अत्यंत चमत्कारपूर्ण वर्णन सूरदास जी ने किया है. इसके बाद सूरदास जी वृंदावन की करील कुंजों, सुंदर लताओं, हरे-भरे कछारों के बीच खिली हुई चांदनी और कोकिल-कूजन … […]
डॉ. बीबी लाल अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “महाभारत की ऐतिहासिकता” में लिखते हैं कि, “महाभारत को लेकर अन्वेषण में एक बड़ी समस्या यह है कि समय-समय पर इसमें श्लोकों की अभिवृद्धि हुई, जिसने मूल सन्दर्भ को अपनी छाया से ढक लिया है….” […]
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