Light and Soul : प्रकाश और आत्मा का क्या है सम्बन्ध?

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Soul and Light Energy

विज्ञान कहता है कि हम या आप ऊर्जा को न तो उत्पन्न कर सकते हैं और न ही उसका विनाश कर सकते हैं. प्रकाश एक अदृश्य (Invisible) ऊर्जा का रूप है. जब प्रकाश ऊर्जा (Light Energy) किसी वस्तु पर गिरती है तो हम वास्तव में उसे नहीं देख पाते हैं. जब प्रकाश ऊर्जा वस्तु की सतह से टकराकर हमारी आँखों से टकराती है तो हमें दृष्टि की (देखने की) अनुभूति होती है.

वास्तव में हम वस्तुओं को इसलिए देख पाते हैं क्योंकि वे प्रकाश को वापस हमारी आँखों में परावर्तित (Reflect) करती हैं. अतः आँखों द्वारा प्रकाश का अवशोषण हमें देखने में सक्षम बनाता है. यदि प्रकाश न होता तो हम वस्तुओं को नहीं देख पाते. संक्षेप में, प्रकाश स्वयं दिखाई नहीं देता है, लेकिन यह हमें देखने में सक्षम बनाता है.

प्रकाश निर्वात में 1,86,000 मील या 3,00,000 किलोमीटर प्रति सेकेण्ड की गति से यात्रा करता है. अब तक की खोज के अनुसार, निर्वात में प्रकाश की गति ही ब्रह्मांड में सबसे तेज गति है, कोई भी चीज प्रकाश से तेज नहीं चलती. सिद्धांत कहता है कि जैसे-जैसे कोई पदार्थ प्रकाश की गति के करीब पहुंचता है, पदार्थ का द्रव्यमान अनंत हो जाता है. सापेक्षता के अनुसार, द्रव्यमान कभी भी ब्रह्मांड में प्रकाश की गति से नहीं चल सकता.

आप प्रकाश की गति के जितना करीब पहुंचेंगे, आपको समय और दूरी का उतना ही कम अनुभव होगा. इसका अर्थ है कि प्रकाश की गति पूरे ब्रह्मांड पर गति सीमा (Speed Limit) के रूप में कार्य करती है. आइंस्टीन के अनुसार, (1) स्थान और समय जुड़े हुए हैं, (2) आप अंतरिक्ष में जितनी तेजी से चलते हैं, समय में उतनी ही धीमी गति से चलते हैं. हमारे ब्रह्मांड की एक सीमित आयु है और अलग-अलग पर्यवेक्षकों (Observers) को अलग-अलग समयावधि का अनुभव होता है, यानी हर कोई अपनी गति के आधार पर समय को अलग-अलग तरीके से मापता है.

प्रकाश स्थान और समय (Space and Time) को जोड़कर रखता है. स्पेस का 1 मीटर और टाइम का 1 सेकेण्ड प्रकाश की वजह से ही जुड़े हुए हैं. मान लीजिये कि प्रकाश की चाल ट्रेन की चाल के बराबर होती तो ट्रेन हमारे पास पहले पहुँच जाती और हमें वह दिखती बाद में. हमें हर चीज समय पर ही इसलिए दिख जाती है क्योंकि प्रकाश की चाल सबसे तेज है.

यदि प्रकाश की चाल धीमी हो जाये तो? प्रकाश की चाल धीमी हो जाने से हमारे चारों ओर की चीजों की गति भी धीमी हो जाएगी, मानो हम किसी फिल्म को स्लो स्पीड में देख रहे हैं. लेकिन हम इस बात को नोटिस नहीं कर पाएंगे, क्योंकि यदि आप प्रकाश की स्पीड को कम करते हैं, तो सब कुछ ही धीमा हो जायेगा. हमारी दुनिया की यह स्पीड हमारे इस ब्रह्माण्ड के सूक्ष्म संरचना स्थिरांक (Fine Structure Constant) से निर्धारित होती है, जो कि 1/137 या 0.007 है, जिसे हम कभी नहीं बदल सकते, और इसीलिए हम अपनी दुनिया की स्पीड को भी घटा या बढ़ा नहीं सकते हैं.

प्रकाश की गति इतनी अपरिवर्तनीय (Immutable) है कि US नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्टैंडर्ड्स एंड टेक्नोलॉजी के अनुसार, इसका उपयोग मीटर (और विस्तार से, मील, फुट और इंच) जैसे अंतरराष्ट्रीय मानक मापों को परिभाषित करने के लिए किया जाता है.

प्रकाश को समझना यानी आत्मा और परमात्मा को समझना

(योगवाशिष्ठ में) जब श्रीराम ने अपने गुरु वशिष्ठ जी से पूछा कि “जगत्‌ क्या है?”
तब गुरु वशिष्ठ जी ने कहा- “जगत्‌ एक दृश्य प्रपंच है”.

हम सबने भगवद्गीता में भी पढ़ा है कि आत्मा को कोई मार नहीं सकता, कोई जला नहीं सकता, कोई गीला नहीं कर सकता या सुखा नहीं सकता या काट नहीं सकता.

अब आप सोचिये कि आपके आसपास ऐसी कौन सी वस्तु है जिसमें ये सभी गुण विद्यमान हों. तो हमें प्रकाश की ही याद आएगी, जिसमें ये सारे गुण विद्यमान हैं. आप प्रकाश को भी न जला सकते हैं, न काट सकते हैं, न गीला कर सकते हैं और न सुखा सकते हैं आदि. भगवान् श्रीकृष्ण ने भगवद्गीता (Bhagavad Gita) में आत्मा के इस विज्ञान का वर्णन किया है.

बालाग्रशतभागस्य शतधा कल्पितस्य च ।
भागो जीवः स विज्ञेयः स चानन्त्याय कल्पते॥
(श्वेताश्वतरोपनिषद ५.९)

“यदि बाल के अग्रभाग को एक सौ भागों में विभाजित किया जाए और फिर इनमें से प्रत्येक भाग को एक सौ भागों में विभाजित किया जाय तो इस प्रकार के प्रत्येक भाग की माप आत्मा का परिमाप है.”

केशाग्रशतभागस्य शतांशः सादृशात्मकः। 
जीवः सूक्ष्मस्वरूपोऽयं संख्यातीतो हि चित्कणः॥

“आत्मा के परमाणुओं के अनंत कण हैं जो माप में बाल के अगले भाग (नोंक) के दस हजारवें भाग के बराबर हैं.”

इस प्रकार आत्मा का प्रत्येक कण भौतिक परमाणुओं (Material Atoms) से भी छोटा है और ऐसे असंख्य या अनंत कण हैं. यह अत्यंत लघु आत्म-स्फुलिंग भौतिक शरीर का मूल आधार है और इस आत्म-स्फुलिंग का प्रभाव पूरे शरीर में उसी तरह व्याप्त है, जिस प्रकार किसी औषधि का प्रभाव होता है. आत्मा की यह विद्युतधारा पूरे शरीर में चेतना के रूप में अनुभव की जाती हैं और यही आत्मा के अस्तित्व का प्रमाण है.

सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी आसानी से इस बात को समझ सकता है कि चेतनारहित होने पर यह भौतिक शरीर मृत हो जाता है और किसी भौतिक उपचार की मदद से शरीर में इस चेतना को वापस भी नहीं लाया जा सकता है. अत: यह चेतना भौतिक संयोग के कारण नहीं है, बल्कि आत्मा के कारण है.

आत्मा कैसी दिखती होगी’, इस प्रश्न पर कोई भी व्यक्ति यह कल्पना कर सकता है कि आत्मा एक बल्ब या ट्यूबलाइट की तरह होगी. नहीं, यह ऐसा नहीं है. जैसे बल्ब या ट्यूबलाइट की मदद से हम, कमरे में सबकुछ देख और जान सकने में सक्षम हो पाते हैं. उसी प्रकार, आत्मा की सहायता से हम सबकुछ देख और जान सकते हैं. जिस प्रकार प्रकाश स्वयं दिखाई नहीं देता है, लेकिन यह हमें देखने में सक्षम बनाता है. उसी प्रकार हम आत्मा को देख नहीं पाते हैं, लेकिन इसके माध्यम से हम सब कुछ देख-जान पाते हैं. यह केवल एक उपमा या उदाहरण दिया है. वास्तव में, आत्मा इस साधारण प्रकाश से कहीं अधिक है.

मुण्डकोपनिषद् में सूक्ष्म (परमाणविक) आत्मा की और अधिक विवेचना हुई है-

एषोऽणुरात्मा चेतसा वेदितव्यो यस्मिन्प्राणः पञ्चधा संविवेश।
प्राणैश्चितं सर्वमोतं प्रजानां यस्मिन् विशुद्धे विभवत्येष आत्मा॥

“आत्मा आकार में अणु के समान है जिसे पूर्ण बुद्धि के द्वारा जाना जा सकता है. यह अणु-आत्मा पाँच प्रकार के प्राणों (प्राण, अपान, व्यान, समान और उड़ान) में तैर रहा है. यह हृदय के भीतर स्थित है और शरीर धारण करने वाले जीव के पूरे शरीर में अपने प्रभाव का विस्तार करता है. जब आत्मा को पाँच वायुओं के कल्मष (पाप या मैल) से शुद्ध कर लिया जाता है, तब इसका आध्यात्मिक प्रभाव प्रकट होता है.”

मुण्डकोपनिषद् (Mundaka Upanishad) के अनुसार, यह अणु-आत्मा प्रत्येक जीव के हृदय में स्थित है और चूँकि भौतिक विज्ञान के द्वारा इस अणु-आत्मा को मापा नहीं जा सकता है, इसीलिए कुछ भौतिक विज्ञानी यह कह देते हैं कि आत्मा है ही नहीं. व्यष्टि आत्मा तो परमात्मा के साथ-साथ हृदय में हैं और इसीलिए शारीरिक गतियों की सारी शक्ति शरीर के इसी भाग से उत्पन्न होती है.

प्रकाश का फोटॉन दृव्यमान रहित होता है. उसी प्रकार आत्मा को भी मापा नहीं जा सकता है. ब्रह्माण्ड में हम पृथ्वी से अरबों किलोमीटर दूर की वस्तुओं को भी हम प्रकाश के माध्यम से ही जान पाए हैं.

जैसे- एक तारा जो हमसे 1 मिलियन प्रकाश वर्ष दूर है. उस तारे का प्रकाश हम तक पहुँचने के लिए प्रकाश की गति से यात्रा करता है. अतः तारे के प्रकाश को हम तक पहुंचने में 1 मिलियन वर्ष लग गए, तो जो प्रकाश हम देख रहे हैं वह एक मिलियन वर्ष पहले प्रकाशित हुआ था. तो हम इस बात का पता लगा सकते हैं कि जो तारा हम देख रहे हैं, वह दस लाख साल पहले वास्तव में कैसा दिखता था. इससे अंतरिक्ष के किसी भी पिंड (Object) की उम्र निर्धारित करने में भी मदद मिलती है.

प्रकाश में केवल दिखाई देने वाला प्रकाश ही शामिल नहीं होता, प्रकाश में न दिखाई देने वाली तरंगें या किरणें भी शामिल हैं. इसलिए प्रकाश को समझना अत्यंत ही आवश्यक है यदि हम इस ब्रह्माण्ड, इसके रचियता और सत्य को समझना चाहते हैं.

और इसीलिए हिन्दू सनातन धर्म में प्रकाश का इतना महत्त्व है. हम हर पूजा के बाद प्रकाश से भगवान् की आरती करते हैं. हमारे महत्वपूर्ण मंत्रों में हम ईश्वर से यही प्रार्थना करते हैं कि ‘हमें प्रकाश की ओर ले चलो’. जैसे बृहदारण्यक उपनिषद में भी कहा गया है कि “तमसो मा ज्योतिर्गमय”, अर्थात “हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो”. इसी प्रकार आप गायत्री मंत्र का सही अर्थ समझें तो आपको बहुत कुछ समझ आएगा.

वैज्ञानिकों के अनुसार, हम प्रकाश की गति के जितना करीब चाहें उतना करीब पहुँच सकते हैं, लेकिन इसके लिए हमारे पास उतनी ही अधिक ऊर्जा का होना आवश्यक है. चूंकि इतनी अधिक ऊर्जा हमारे पास नहीं हो सकती, इसलिए हम प्रकाश की गति के करीब नहीं पहुँच सकते.

विशेष सापेक्षता (Special Relativity) के अनुसार किसी वस्तु की गति बढ़ने पर उसका द्रव्यमान (Mass) बढ़ता है, और जैसे-जैसे वस्तु की गति प्रकाश की गति के करीब पहुंचती है, उसका द्रव्यमान अनंत तक पहुंच जाता है. इसका अर्थ यह है कि किसी वस्तु को प्रकाश की गति तक तेज करने के लिए अनंत मात्रा में ऊर्जा की आवश्यकता होगी.

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Extra Points-

हम इंसानों की आँखें हमारे आसपास की वस्तुओं द्वारा छोड़े गए विकिरण की सीमा (Range of Radiation) का केवल एक छोटा सा हिस्सा ही देख सकती हैं. हम विकिरण की इस बड़ी सी चेन को विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम (Electromagnetic Spectrum) कहते हैं, और वह भाग जिसे हम देख सकते हैं, ‘दृश्य प्रकाश’ (Visible Light) है. सभी विद्युत चुम्बकीय विकिरण प्रकाश हैं, लेकिन हम इस विकिरण रेडिएशन का केवल एक छोटा सा हिस्सा ही देख सकते हैं, जिसे हम ‘दृश्य प्रकाश’ कहते हैं.

पृथ्वी के अन्य जीव कुछ ऐसे स्पेक्ट्रम को देख सकते हैं जिनसे हम मनुष्य अनभिज्ञ हैं. उदाहरण के लिए, कुछ मछलियाँ, बुलफ्रॉग और साँप, अवरक्त विकिरण (Infrared Radiation) देख सकते हैं, जो उन्हें गंदे पानी या अंधेरे में भी शिकार खोजने में मदद करता है. तितलियाँ और पक्षियों की कुछ प्रजातियाँ पराबैंगनी प्रकाश (Ultraviolet Light) देख सकती हैं, जिससे उन्हें अपने साथियों पर कुछ निशानों की पहचान करने में मदद मिलती है.

मनुष्य रंग देखने में सक्षम क्यों है?

योगवाशिष्ठ के सर्ग ५ में गुरु वशिष्ठ भगवान् श्रीराम से कहते हैं कि-
“रघुनन्दन! नीले, पीले आदि भिन्न-भिन्न रंगों की अभिव्यक्ति में प्रकाश ही मुख्य कारण है.”

आधुनिक विज्ञान कहता है कि रंग और कुछ नहीं बल्कि प्रकाश की अलग-अलग तरंग दैर्ध्य वाली विद्युत चुम्बकीय किरणें (Electromagnetic Rays) हैं. विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम में दृश्य क्षेत्र (Visible Region) को दृश्य प्रकाश (Visible Light) भी कहा जाता है.

दुनियाभर में कोई भी वस्तु हमें प्रकाश की वजह से दिखाई देती है. किसी भी वस्तु का वास्तविक रंग हमें केवल सफेद प्रकाश में ही दिखाई देता है, क्योंकि सफेद प्रकाश में सारे रंग होते हैं. काला रंग किसी भी रंग की अनुपस्थिति है.

सरल शब्दों में कहें तो जब यह सफेद प्रकाश किसी वस्तु पर पड़ता है, तो वह वस्तु अपने गुण और स्वभाव के अनुसार बहुत सारे रंगों को अपने पास रख लेती है (अवशोषित कर लेती है), लेकिन सभी रंग नहीं रखती, कुछ रंगों को बाहर निकाल देती है (परावर्तित कर देती है). वह वस्तु जिस रंग को निकाल देती है, वह वस्तु हमें उसी रंग की दिखाई देती है.

जैसे- एक लाल सेब लीजिये और उस पर सफेद प्रकाश डालिये तो वह सेब अपने गुण और स्वभाव के अनुसार लाल रंग को छोड़कर प्रकाश के बाकी सभी रंगों को अपने पास रख लेगा (अवशोषित कर लेगा) और लाल रंग बाहर निकाल देगा. चूंकि वह लाल रंग को बाहर निकाल देता है, इसीलिए वह हमें लाल दिखाई देता है. यदि इसी लाल सेब को आप उस प्रकाश में रखें जिसमें रंग ही न हों, तो वह सेब बाहर कुछ भी नहीं निकाल पायेगा, और तब वह काला दिखाई देगा क्योंकि उसने सभी रंगों को अपने पास रख लिया है (अवशोषित कर लिया है).

इसी बात को यदि हम विज्ञान की भाषा में कहें तो प्रकाश की अलग-अलग तरंग दैर्ध्य (Wavelengths) ही हमारे द्वारा देखे जाने वाले रंगों को निर्धारित करती हैं. किसी वस्तु का वास्तविक रंग उसकी अवशोषक या परावर्तक विशेषताओं (Absorptive or Reflective Characteristics) से परिभाषित होता है. कौन सी तरंग दैर्ध्य परावर्तित या अवशोषित होती है यह वस्तु के गुणों पर निर्भर करता है.

जब आप किसी केले को देखते हैं, तो परावर्तित प्रकाश की तरंग दैर्ध्य यह निर्धारित करती है कि आपको कौन सा रंग दिखाई देगा. प्रकाश तरंगें केले के छिलके से परावर्तित होती हैं और आपकी आंख के पीछे प्रकाश-संवेदनशील रेटिना (Light-sensitive retina) से टकराती हैं.

एक पीली शर्ट को देखें. यहाँ प्रकाश की कई आवृत्तियाँ (Frequencies) अलग-अलग तीव्रता की डिग्री के साथ आपकी आँखों पर हमला करती हैं. हालाँकि, आपकी आंख-मस्तिष्क प्रणाली (Eye-brain System) उन आवृत्तियों का अनुवाद (ट्रांसलेट) करती है जो आपकी आंखों से टकराती हैं और शर्ट के पीले होने का पता लगाती है.

Credit With : Aditi Singhal (working in the media)

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