Origin of Universe : कैसे हुई ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति

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Origin of Universe Theory

ब्रह्मांड (Universe) के बारे में हम जितना जानते चले जाते हैं, उतनी ही हमारी इच्छा इसे और जानने की बढ़ती जाती है. हर कोई यह जानना चाहता है कि आखिर ब्रह्मांड कितना बड़ा है, इसका आकार कैसा है, ब्रह्मांड कैसे बना, इसके पहले क्या था और इसके बाद क्या होगा… आदि. आज हम अपने ब्रह्मांड में जो कुछ भी देख सकते हैं- तारे, ग्रह, धूमकेतु, क्षुद्रग्रह- वे शुरुआत में वहां नहीं थे. वे कहां से आए थे? इन सवालों के अब तक कोई भी प्रमाणिक जवाब किसी के पास नहीं हैं.

ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति को लेकर हम आधुनिक विज्ञान की थ्योरी को देखेंगे. ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति को लेकर आधुनिक विज्ञान ने बहुत सी थ्योरी या सिद्धांत दिए हैं, जिनमें से बिग-बैंग सिद्धांत को सबसे अधिक मान्यता प्राप्त है. हालाँकि सभी खगोल वैज्ञानिक इस सिद्धांत के समर्थन में नहीं हैं.

बिग बैंग सिद्धांत (महाविस्फोट)

ब्रह्मांड की उत्पत्ति से संबंधित अब तक का सर्वमान्य सिद्धांत बिग बैंग सिद्धांत (Big Bang Theory) है. NASA को सबसे अधिक विश्वास इसी सिद्धांत पर है. इसे विस्तारित ब्रह्मांड परिकल्पना (Expanding Universe Hypothesis) भी कहा जाता है. बिग-बैंग थ्योरी ब्रह्मांड के निर्माण में शामिल ऊर्जा, समय और स्थान की कोई जानकारी नहीं देती. खगोलविदों को यह भी नहीं पता है कि सबसे पहली वस्तु तारे थे या क्वासर.

वर्ष 1927 में, बेल्जियम के खगोलशास्त्री जॉर्जेस लेमैत्रे (Georges Lemaître) ने कहा था कि बहुत समय पहले ब्रह्मांड की शुरुआत एक बिंदु से हुई थी. उसी बिंदु में विस्फोट होने से ब्रह्माण्ड का विस्तार हुआ और यह विस्तार अब तक हो रहा है.

यहां ब्रह्मांड के विस्तार का अर्थ आकाशगंगाओं के बीच की दूरी बढ़ने से है. वैज्ञानिकों का मानना है कि आकाशगंगा के बीच की दूरी बढ़ती जा रही है लेकिन प्रेक्षण (Observations) आकाशगंगाओं के विस्तार को सिद्ध नहीं करते हैं.

इसके ठीक दो साल बाद, एडमिन हब्बल (Admin Hubble) ने भी यही कहा कि ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है. समय बीतने के साथ-साथ आकाशगंगाएं एक-दूसरे से दूर हो रही हैं. यदि चीजें अलग-अलग हो रही हैं, तो इसका मतलब कि बहुत पहले, सब कुछ एक-दूसरे के करीब था.

वहीं, फ्रेड हॉयल (Fred Hoyle) नाम के खगोलशास्त्री ने स्थाई अवस्था संकल्पना (Steady State Hypothesis) प्रस्तुत किया था. इनके अनुसार, ब्रह्मांड हमेशा से एक ही जैसा रहा है. इसका न तो कभी आरंभ हुआ और न ही कभी अंत होगा.

हालांकि ब्रह्मांड के विस्तार संबंधी अनेक प्रमाणों के मिलने पर वैज्ञानिक समुदाय ब्रह्मांड विस्तार सिद्धांत (Expansion of Universe) को ही अपना समर्थन देते हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि एक रहस्यमय पदार्थ जिसे डार्क एनर्जी कहते हैं, ब्रह्माण्ड के विस्तार को गति दे रहा है और यह विस्तार जारी रहेगा.

बिग बैंग के बाद क्या हुआ था?

बिग बैंग के पहले क्या था, वह बिंदु कहाँ था, कहाँ से आया, वह कैसे बना, क्यों फटा, इन अरबों सालों में केवल पृथ्वी पर ही जीवन की सभी संभावनाएं क्यों बनीं… आदि सवालों के जवाब तो फिलहाल किसी के पास नहीं हैं, पर बिग बैंग के बाद क्या हुआ, इसे लेकर आज का विज्ञान कहता है-

10^-32 seconds – Inflation initial expansion.

1 Microsecond – First particles (Neutrons, Protons and Electrons form).

3 Minutes – First nuclei (Helium and Hydrogen form).

3,80,000 Years – First light (The first atoms form).

200 Million Years – First stars (Gas and dust condense into stars).

400 Million Years – Galaxies and dark matter (Galaxies form in dark matter cradles).

10 Billion Years – Dark energy (Expansion Accelerates).

13.8 Billion Years – Today (Human observe the universe).

हमारा ब्रह्मांड लगभग 13.8 अरब साल पहले एक जबरदस्त विस्फोट के रूप में शुरू हुआ था. एक सेकेंड के एक अल्पांश के अंदर ही प्रकाश की गति से भी तेज गति से बहुत बड़ा विस्तार हो गया. इस अवधि को कॉस्मिक इन्फ्लेशन (Cosmic Inflation) कहा जाता है.

नासा के मुताबिक, जब यह सब कुछ पहले सेकंड के भीतर हुआ, जब तापमान लगभग 10 अरब डिग्री फॉरेनहाइट (5.5 अरब सेल्सियस) था. बिगबैंग के शुरुआती 3 मिनट के अंतर्गत ही पहले परमाणु का निर्माण हो गया. बिग बैंग से लगभग 3 लाख सालों बाद तापमान 4500 डिग्री केल्विन तक गिर गया और परमाण्वीय पदार्थों (Atomic Substances) का निर्माण शुरू हुआ.

NASA के मुताबिक, जैसे-जैसे सब कुछ फैलता गया और अधिक स्थान घेरता गया, यह ठंडा होता गया. प्रारंभ में यह दृश्य प्रकाश को धारण नहीं कर सकता था. लेकिन बिग-बैंग के लगभग 3,80,000 साल बाद, ब्रह्मांड ठंडा हो गया और आखिरकार इसने प्रकाश को स्थान दिया.

यह इतना ठंडा हो गया था कि इलेक्ट्रॉन और नाभिक पहले स्थिर परमाणु (First Stable Atoms) बना सकते थे. इसे ऐतिहासिक कारणों से पुनर्संयोजन (Recombination) के रूप में जाना जाता है, क्योंकि पहली बार इलेक्ट्रॉन और नाभिक (Electrons and Nuclei) का संयोजन हो रहा था और तब पहली बार ब्रह्मांड पारदर्शी (Transparent) भी बना.

शुरुआती चरणों में, ब्रह्मांड के घनत्व के भीतर छोटे उतार-चढ़ाव के कारण डार्क मैटर की सांद्रता धीरे-धीरे बन रही थी. गुरुत्वाकर्षण द्वारा इनकी ओर आकर्षित होने वाले साधारण पदार्थों ने बड़े गैस बादलों का निर्माण किया और आखिरकार सितारों और आकाशगंगाओं का निर्माण किया, जहां डार्क मैटर सबसे अधिक घना था. और जहां यह कम घना था वहां शून्य हो गया.

लगभग 100 – 300 मिलियन वर्षों के बाद पहले तारे बने, जिन्हें जनसंख्या III तारे (Population III stars) के रूप में जाना जाता है. ये संभवतः बहुत बड़े पैमाने पर, चमकदार, गैर धात्विक और अल्पकालिक थे. जैसे-जैसे नए तारे पैदा और समाप्त रहे थे, तब क्षुद्रग्रह, धूमकेतु, ग्रह और ब्लैक होल जैसी चीजें बनीं.

ब्रह्मांड में एक रहस्यमय ऊर्जा भी है, संभवतः एक अदिश क्षेत्र (Scalar Field), जिसे डार्क एनर्जी कहा जाता है, जिसका घनत्व समय के साथ नहीं बदलता है. लगभग 9.8 बिलियन वर्षों के बाद, ब्रह्मांड का पर्याप्त विस्तार हुआ. पूरे ब्रह्माण्ड का व्यास अज्ञात है और हो सकता है कि यह अनन्त हो.

एक अनुमान के मुताबिक, अब तक हम जितने ब्रह्माण्ड को जान सके हैं, इसमें 200 बिलियन तक आकाशगंगाएं हैं, और पृथ्वी पर रेत के कणों से भी अधिक तारे हैं. सापेक्षता के सामान्य सिद्धांत के अनुसार, प्रकाश की परिमित गति और अंतरिक्ष के चल रहे विस्तार के कारण अंतरिक्ष के दूर के क्षेत्रों तक हम कभी नहीं पहुँच सकते हैं. जैसे- पृथ्वी से भेजे गए रेडियो संदेश अंतरिक्ष के कुछ क्षेत्रों तक कभी नहीं पहुंच सकते.

सबसे बड़े पैमाने पर, आकाशगंगाओं को समान रूप से और सभी दिशाओं में समान रूप से वितरित किया जाता है, जिसका अर्थ है कि ब्रह्मांड का न तो कोई किनारा है और न ही कोई केंद्र है. छोटे पैमाने पर, आकाशगंगाओं को ग्रुप्स और सुपरक्लस्टरों में बांटा जाता है जो अंतरिक्ष में विशाल तंतु और रिक्त स्थान (Giant Filaments and Voids) बनाते हैं.

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