Statue of Equality : दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची बैठी हुई मूर्ति, जानिए रामानुजाचार्य और उनकी प्रतिमा के बारे में

ramanujacharya statue of equality
Ramanujacharya statue of equality

स्वामी रामानुजाचार्य (Swami Ramanujacharya) या आचार्य रामानुज महान दार्शनिक, संत, चिंतक, धर्मशास्त्री और समाज सुधारक थे. वह वेदांत और वैष्णववाद दर्शन के महान समर्थक थे. रामानुजाचार्य वेदांत की विशिष्‍टाद्वैत धारा (Vishishtadvaita) के प्रवर्तक थे. उन्होंने आम जनमानस को समानता और भक्ति का मार्ग दिखाया था. उन्होंने किसी भी तरह के भेदभाव न करने की बात करते हुए कहा था कि ‘ईश्वर सभी में मौजूद है. विश्व का निर्माण करने वाले ने भी कभी किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया’.

रामानुजाचार्य ने ऐसा सिद्धांत दिया, जिसमें किसी व्यक्ति को उसके जन्म या जाति के बजाय उसके अध्यात्मिक ज्ञान के आधार पर सम्मान दिया जाता है. उन्होंने अछूतों के साथ भी कुलीन वर्ग के समान व्यवहार किया. रामानुज ने अधीनस्थ वर्गों को ‘थिरुक्कुलथर-बॉर्न डिवाइन’ नाम दिया. उनके ऐसे व्यवहार को देखकर, उनके गुरु ने प्रसन्न होकर उन्हें “एम-पेरुम-नार” (आप हमसे आगे हैं) की उपाधि से सम्मानित किया.

रामानुजाचार्य ने वेदों के रहस्य और सर्वोच्च ज्ञान को मंदिरों से निकालकर आम लोगों तक पहुंचाया. रामानुज ने अपना सारा जीवन सुधारवाद और आध्यात्मिकता में पूरी दुनिया को एकजुट करने के लिए के लिए लगा दिया और लोगों के मन और जीवन से अंधकार को दूर करने में मदद की. उनका अंतिम उद्देश्य समाज में वैदिक जीवन शैली (To inspire Vedic Lifestyle) को प्रेरित करना था, जिसमें उन्हें सफलता भी मिली.

रामानुजाचार्य को “भगवद” की उपाधि भी दी गई है. समाज और पूरे भारत में उनके योगदान का सम्मान करने के लिए हैदराबाद में उनकी 216 फीट ऊंची प्रतिमा बनाई गई है, जो दुनिया में दूसरी सबसे ऊंची बैठी हुई मूर्ति (2nd ​tallest seated position statue in the World) है. इस प्रतिमा को ‘स्टैच्यू ऑफ इक्वलिटी’ (Statue of Equality) नाम दिया गया है. इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) द्वारा फरवरी 2022 में किया जा रहा है.

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स्वामी रामानुजाचार्य का विशिष्‍टाद्वैत दर्शन

स्वामी रामानुजाचार्य वेदांत की विशिष्‍टाद्वैत धारा के प्रवर्तक थे. रामानुजाचार्य भागवद धर्म के ईश्वरवाद से प्रभावित थे, इसलिए वे ब्रह्म की सगुण और साकार रूप में उपासना करना चाहते थे. उनके मत के अनुसार, सत्ता तो एक ब्रह्म की है, लेकिन जिस तरह किसी पेड़ की शाखाएं ,पत्ते, फल-फूल उसी पेड़ के अलग-अलग भाग होते हैं, उसी तरह जीव (आत्मा) और माया, परमात्मा के ही भाग हैं, या उन्हीं के विशेष गुण हैं. इसीलिए इस दर्शन को विशिष्टाद्वैतवाद (Qualified Non-Dualism) नाम दिया गया है.

आदि शंकराचार्य (Adi Shankaracharya), जो अद्वैतवाद के प्रवर्तक थे, जीव (आत्मा) और ब्रह्म को दो अलग-अलग न मानकर एक ही मानते थे. उन्होंने संसार को माया बताते हुए इसे एक भ्रम या मिथ्या बताया है. लेकिन रामानुजाचार्य के अनुसार, संसार भी ब्रह्म ने ही बनाया है, इसलिए यह भ्रम या मिथ्या नहीं हो सकता. यह असली है. जैसे सूर्य से किरणें निकलती हैं, उसी तरह संसार और जीवात्मा भी ब्रह्म से ही निकले हैं. इस तरह ब्रह्म एक होने पर भी अनेक हैं. यानी यहां ब्रह्म भी सत्य है और माया भी. ब्रह्म सगुण है. आत्मा और परमात्मा के बीच अंतर किया जा सकता है, क्योंकि ब्रह्म के अंदर ही ईश्वर, जीवात्मा और जड़ आदि शामिल हैं.

पढ़ें- आसान भाषा में समझिए- द्वैत, अद्वैत, विशिष्‍टाद्वैत और द्वैताद्वैत क्या हैं और इनके बीच क्या अंतर है

स्वामी रामानुजाचार्य का संक्षिप्त जीवन परिचय

जन्म- 1017 में तमिलनाडु के श्रीपेरूमबुदूर गांव में, एक तमिल ब्राह्मण परिवार में.
रामानुजाचार्य जयंती की तिथि तमिल सौर कैलेंडर (Tamil solar calendar) के अनुसार तय की जाती है. इस तरह, 18 अप्रैल 2017 को उनकी 1000वीं और साल 2022 को उनकी 1005वीं जयंती है.
माता का नाम- कांतिमति
पिता का नाम- केशव सोमयाजी

शिक्षा और मुख्य कार्य-
प्रारंभिक शिक्षा- कांची में (गुरू यादव प्रकाश से वेदों की शिक्षा ली)
रामानुजाचार्य आलवार संत यमुनाचार्य के प्रमुख शिष्य थे
मैसूर में श्रीरंगम् के यतिराज नाम के संन्यासी से सन्यास की दीक्षा ली.
श्रीरंगम् से चलकर शालिग्राम नाम के स्थान पर रहने लगे, जहां उन्होंने बारह सालों तक वैष्णव धर्म का प्रचार किया.
फिर पूरे भारत की यात्रा कर वेदांत और वैष्णव धर्म का प्रचार किया.
कई ग्रन्थों की रचना की
ब्रह्मसूत्र के भाष्य पर लिखे दो मूल ग्रंथ सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुए-
श्रीभाष्यम् और वेदांत संग्रहम्.

निधन- 1137 में 120 वर्ष की आयु में तमिलनाडु के श्रीरंगम में.

आचार्य रामनुजाचार्य की विशाल प्रतिमा (Statue of Equality)

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रामानुज की बड़ी मूर्ति- रामनुजाचार्य की मूर्ति का निर्माण हैदराबाद के सुंदर मुचिन्तल श्रीरामनगर में अनुमानित 34 एकड़ में JIVA आश्रम के निकट किया गया है. इस जगह को ‘स्टैच्यू ऑफ इक्वलिटी’ (Statue Of Equality) नाम दिया गया है. रामानुज की 216 फीट ऊंची और 1140 मीट्रिक टन वजनी मूर्ति पंचधातुओं- सोने, चांदी, तांबे, पीतल और टाइटेनियम से बनाई गई है.

इस प्रतिमा में 5 कमल पंखुड़ियां, 27 पद्म पीठम, 36 हाथी और मूर्ति तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनाई गई हैं. यह मूर्ति 108 दिव्यदेसम (मॉडल मंदिर- दक्षिण भारत के प्रसिद्ध 108 दिव्य देशम् की रिप्लिका) से घिरी हुई है. इसमें एक शैक्षिक गैलरी भी शामिल है. स्टैच्यू ऑफ इक्वलिटी का निर्माण एक बेस बिल्डिंग पर किया गया है जो 16.5 मीटर लंबा है.

रामानुज की छोटी मूर्ति- आधार (Base) में एक ध्यान कक्ष है, जहां रोजाना पूजा के लिए 120 किलोग्राम सोने से रामनुजाचार्य की एक छोटी मूर्ति भी बनाई गई है. भूतल (Ground Floor) 6,000 वर्ग मीटर का है और इसमें रामानुज के जीवन और दर्शन को दर्शाया गया है. मंदिर 27,870 वर्ग मीटर दूसरी मंजिल पर रामानुज की 120 किलो की मूर्ति के साथ स्थित है.

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1,365 वर्ग मीटर की तीसरी मंजिल में एक वैदिक डिजिटल लाइब्रेरी और रिसर्च सेंटर है. इसी के साथ, यहां एक ओमनीमैक्स थिएटर और प्राचीन भारतीय ग्रंथों की एक लाइब्रेरी भी है, जहां रामानुज की जीवन कहानियों को दर्शाया गया है. मंदिर में म्यूजिकल फाउंटेन लगाए गए हैं, जिनके जरिए भी रामानुजाचार्य की गाथा सुनाई जाएगी.

आधारशिला और डिजाइन- स्टैच्यू ऑफ इक्वेलिटी की आधारशिला आध्यात्मिक प्रमुख त्रिदंडी चिन्ना जीयर ने रखी थी. चिन्ना जीयर ने ही साल 2014 में स्टैच्यू ऑफ इक्वलिटी का निर्माण करके रामानुज की शिक्षाओं की 1000वीं वर्षगांठ मनाने का विचार रखा था. यानी इस मंदिर का निर्माण 2014 में शुरू हुआ था. स्टैच्यू ऑफ इक्वलिटी का डिजाइन दक्षिण भारतीय फिल्मों के आर्ट डायरेक्टर आनंद साईं ने बनाया है. इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में लगभग 1,400 करोड़ रुपए की लागत आई है. यह लागत दुनियाभर से दान के जरिए जुटाई गई है.



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About Sonam Agarwal 238 Articles
LLB (Bachelor of Law). Work experience in Mahendra Institute and National News Channel (TV9 Bharatvarsh and Network18). Interested in Research. Contact- sonagarwal00003@gmail.com

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