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धर्म और अध्यात्म

Bhagavad Gita Adhyay 9 : श्रीमद्भगवद्गीता – नौवाँ अध्याय (राजविद्या राजगुह्य योग)

जहाँ भगवान् ने स्वयं को जगत का रचयिता बतलाया है‚ वहाँ पर बात भी समझ लेनी चाहिये कि वस्तुतः भगवान् स्वयं कुछ नहीं करते‚ वे अपनी शक्ति प्रकृति को स्वीकार करके उसी के द्वारा जगत की रचना करते हैं और जहाँ प्रकृति को सृष्टि की रचना आदि कार्य करने वाली कहा गया है‚ वहाँ …. […]

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धर्म और अध्यात्म

Bhagavad Gita Adhyay 8 : श्रीमद्भगवद्गीता – आठवां अध्याय (अक्षर ब्रह्म योग)

“अर्जुन! यह मनुष्य अंतकाल में जिस-जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर त्याग करता है, उस-उसको ही प्राप्त होता है क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है॥6॥ इसलिए अर्जुन! तुम सब समय में …” […]

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धर्म और अध्यात्म

Bhagavad Geeta Adhyay 7 : श्रीमद्भगवद्गीता – सातवां अध्याय (ज्ञान-विज्ञान योग)

जन्म-जन्मान्तर में किये हुए कर्मों से संस्कारों का संचय होता है और उस संस्कार समूह से जो प्रकृति बनती है, उसे स्वभाव कहा जाता है. प्रत्येक जीव का स्वभाव अलग-अलग होता है. उस स्वभाव के अनुसार जो अन्तःकरण में भिन्न-भिन्न देवताओं का पूजन करने की भिन्न-भिन्न इच्छा उत्पन्न होती है, उसी को उससे प्रेरित होना कहते हैं. […]

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धर्म और अध्यात्म

Vyadha Gita Mahabharata : जब एक स्त्री और एक शूद्र ने दी ब्राह्मण को शिक्षा

तब कौशिक ब्राह्मण बोले- “तो क्‍या ब्राह्मण बड़े नहीं हैं? गृहस्थ धर्म में रहकर भी तुम ब्राह्मणों का अपमान करती हो? अरे देवी! स्‍वर्गलोक के स्‍वामी भी ब्राह्मणों के आगे सिर झुकाते हैं, फिर मनुष्‍यों की तो बात ही क्‍या है… […]

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Bhagavad Gita Adhyay 6 : श्रीमद्भगवद्गीता – छठा अध्याय (आत्मसंयम योग)

मनुष्‍य को कभी भी यह नहीं समझना चाहिये कि मेरी प्रारब्‍ध बुरा है, इसलिये मेरी उन्‍नति होगी ही नहीं. मनुष्‍य का उत्‍थान-पतन उसी के हाथ में है. मनुष्‍य अपने स्‍वभाव और कर्मों में जितना ही अधिक सुधार कर लेता है, वह उतना ही उन्‍नत होता है. […]

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धर्म और अध्यात्म

क्या शैवों को मांस खाना वर्जित है? मांस-मदिरा के सेवन को लेकर भगवान शिव ने क्या कहा है?

जिसमें मांस और मद्य न हो, जो सड़ा हुआ या पसीजा न हो, बासी न हो, अधिक कड़वा, अधिक खट्टा और अधिक नमकीन न हो, जिससे उत्तम गंध आती हो, जिसमें कीड़े या केश न पड़े हों, जो निर्मल हो, ढका हुआ हो और देखने में भी शुद्ध हो, जिसका ….. […]

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Bhagwat Geeta Adhyay 5 : श्रीमद्भगवद्गीता – पांचवा अध्याय (सांख्ययोग एवं कर्मयोग का निर्णय)

हे श्रीकृष्ण! आप कर्मों के संन्यास की और फिर कर्मयोग की प्रशंसा करते हैं। इसलिए इन दोनों में से जो एक मेरे लिए भलीभाँति निश्चित कल्याणकारक साधन हो, उसको कहिए॥ […]

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Animal Sacrifice In Sanatan Dharm : सनातन धर्म में पशु बलि प्रथा कब से शुरू हुई?

एक घोड़े की बलि दी जाने लगी. घोड़े को भय से तड़पता देखकर महाराजा अग्रसेन को बेहद दया आई, साथ ही बहुत क्रोध भी आया. जब उनसे कहा गया कि यज्ञ में पशुबलि का विधान है, तब उन्होंने …. […]

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क्या प्राचीन भारत में कोई मनुष्य मांस नहीं खाता था? मांसाहार को लेकर क्या थे नियम?

ब्राह्मण ने व्‍याध से कहा- “तात! यह मांस बेचने का काम निश्‍चय ही तुम्‍हारे योग्‍य नहीं है. मुझे तो तुम्‍हारे इस घोर कर्म से बहुत संताप हो रहा है…” […]

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Meat Eating in Valmiki Ramayana : ‘श्री राम मांस खाते थे और चमड़ा पहनते थे’

“मैं जो यह मांस बेचने का व्‍यवसाय कर रहा हूं, वास्‍तव में यह अत्यंत घोर कर्म है, इसमें संशय नहीं है। किंतु ब्रह्मन्! दैव बलवान् है। पूर्वजन्‍म में किये हुए कर्म का ही नाम दैव है. यह जो कर्मदोषजनित व्‍याध के घर जन्‍म हुआ है, यह मेरे पूर्वजन्म में किये हुए पाप का ही फल है” […]