आस्था, विश्वास, धर्म और विज्ञान

dharm aur vigyan me antar sambandh bhagwan par vishwas, september full moon called the harvest moon visible, september full moon, harvest moon visible, harvest moon september 2022, harvest moon nasa, harvest moon northern hemisphere, what is harvest moon

आस्था और विज्ञान

जब कोई बड़े से बड़ा डॉक्टर भी किसी मरीज के ऑपरेशन के लिए जाता है, तब भले ही मरीज के परिजनों को उस डॉक्टर के ज्ञान और विद्वता पर कोई संदेह नहीं होता, लेकिन तब भी वे सब ऑपरेशन रूम के बाहर बैठकर ईश्वर का ही ध्यान करते हैं, डॉक्टर का नहीं! यह सामान्य मानव स्वभाव है कि उसका विश्वास डॉक्टर के साथ है और आस्था ईश्वर में.

और जब ऑपरेशन सफल हो जाता है, तब परिजन डॉक्टर का तो धन्यवाद करते ही हैं, साथ ही ईश्वर के आगे भी नतमस्तक हो जाते हैं. अब क्या इसे भी बेवकूफी या अनपढ़पन कहा जाएगा?

कुछ बातें और कुछ परिस्थितियाँ तर्क-वितर्क के परे होती हैं. हर बात का तार्किक और वैज्ञानिक विश्लेषण निकालते रहेंगे, हर चीज में वैज्ञानिकता ही खोजते रहेंगे, तो हम आधुनिक अवश्य कहलाएंगे, पर मनुष्य होने की स्वाभाविकता खो देंगे.

डॉक्टर की काबिलियत काम आई, पर साथ ही ईश्वर का हमारे साथ होने का एहसास भी हुआ. न तो डॉक्टर के बिना काम चल सकता है और न ही ईश्वर के बिना. यह मानव स्वभाव है, अपने हर अच्छे या बुरे को अपने इष्ट के आगे समर्पित कर देना. जब आस्था और विश्वास प्रबल होता है तो वह डॉक्टर ही ईश्वर के रूप में हमारे सामने आ जाता है.

मेरे जीवन में कई ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिनसे ही ईश्वर पर विश्वास प्रबल हुआ है. अब चाहे कोई इसे चमत्कार मान ले या इसमें भी वैज्ञानकता या संयोग खोजकर तर्क-वितर्क और व्यंग्य करने लगे. लेकिन कुछ बातों का अनुभव अलग ही होता है. चमत्कार होना न होना एक अलग विषय है, लेकिन आपके अनुभव ही आपके विचार बनते हैं.

मैं श्रीराम से प्रेम करती हूँ और हनुमान जी को अपना भाई मानती हूँ और उन्हें राखी बांधती हूँ. अब क्यों करती हूँ, इस बात के लिए भी कोई तर्क दिया जा सकता है क्या? या इस बात में भी कोई वैज्ञानिकता खोजी जानी चाहिए? यह मेरी आस्था और मेरे विश्वास का विषय है. हर विषय अलग-अलग होता है.

स्वामी विवेकानंद का कथन है कि जहां विज्ञान खत्म होता है, वहां से अध्यात्म आरंभ होता है. हमारी आस्था हमारा गर्व है और यही सत्य है.

साभार : टीशा अग्रवाल


धर्म और विज्ञान

how to offer water to sun, aditya hridaya stotra ke niyam, सूर्य को जल चढ़ाने का समय, सूर्य को जल चढ़ाने के नियम फायदे, सूर्य को अर्घ्य देने की विधि मंत्र

जब तक भारत में सब ‘अंधविश्वासी’ और ‘पाखंडी’ थे, तब तक हर वृक्ष हमारे लिए पिता समान था, हर नदी हमारी माता थी, हर पर्वत पर हमारे देवता निवास करते थे, हर जीव और पत्थरों में तक हमने ईश्वर को निहारा था.

‘परत’ पुस्तक के लेखक श्री सर्वेश तिवारी श्रीमुख जी लिखते हैं-

लोग सुबह उठते ही भूमि को प्रणाम करते, स्नान से पहले नदी को प्रणाम करते, सूर्योदय में सूर्य को अर्घ्य देते और संध्या में चंद्रमा हमारे पूज्य मामा हो जाते. हमने पीपल में भगवान विष्णु को देखा, तुलसी और नीम में मातृशक्ति को, बरगद में ग्राम देवता को… इन वृक्षों को हानि पहुँचाने की तो कोई सोच भी नहीं सकता था.

जरा अपने प्राचीन प्रतीकों को देखिये! सूर्य प्रकाश के देवता हैं, चंद्र शीतलता के, वरुण देव जल के देवता हैं, और पवन देव वायु के… और इंद्र इन समस्त शक्तियों के नियामक हैं. लोगों ने इन देवताओं के नाम से प्रकृति का सम्मान किया, प्रकृति को पूजा है. लोग खेतों में हल लगाने से पहले भूमि को प्रणाम कर उससे क्षमा मांगते, खेती करते समय अनजाने में कुछ सूक्ष्मजीव पीड़ा पाते तो प्रायश्चित का विधान बनाया और उपज का एक हिस्सा निर्धनों को दान देने की रीत गढ़ी.

लेकिन पिछले पचास वर्षों में क्या हुआ?

देश की ज्यादातर पर्वत श्रृंखलाएं समाप्त कर दीं. ज्यादातर नदियों को मार दिया, उन्हें इतना जहर पिला दिया कि आज उनके मुख से झाग निकल रहा है. पशुओं को पूजने वाला देश पशु मांस के सबसे बड़े निर्यातक देशों में शामिल हो गया! हर जगह वृक्षों की क्रूरतापूर्वक कटाई…

और विज्ञान की नई परिभाषा के अनुसार, इस विनाश को ही विकास का नाम दे दिया गया.

आखिर ऐसा क्यों हुआ?

क्योंकि आप धर्म को पढ़ना छोड़कर अधर्म पढ़ने लगे. अब वृक्षों की पूजा बकवास लगने लगी, नदियों का सम्मान अंधविश्वास लगने लगा. जीवों और पत्थरों को पूजना पाखंड दिखाई देने लगा. आज के “बुद्धिमान” बच्चों को देवी-देवताओं के होने का लाइव प्रमाण चाहिये, ग्रन्थों के आधार पर यह मानने को तैयार नहीं कि गाय हमारी माता है.

और ऊपर से इस बात का रोना कि ओजोन मंडल में छेद बढ़ रहा है, हिमालय के ग्लेशियर खत्म हो रहे हैं, सांस लेना मुश्किल हो रहा है और स्वच्छ जल अमीरी की निशानी बनता जा रहा है.

dharm aur vigyan me antar ishwar bhagwan par vishwas, धर्म और विज्ञान

रामायण को मिथक और श्रीराम को काल्पनिक बताना और फिर इस बात का रोना कि बच्चों ने अपने माता-पिता का सबकुछ छीनकर उन्हें बुढ़ापे में अकेला छोड़ दिया, घर-संपत्ति के पीछे सगे भाई एक-दूसरे के दुश्मन बन बैठे हैं..

जैसे आज सोशल मीडिया पर कुछ नई क्रांतिकारी पोस्ट रोज देखने-पढ़ने को मिल रही हैं, जिनमें आज के कुछ ‘तर्कशील वैज्ञानिक’ युवाओं का यहां तक कहना है कि “बच्चे पैदा होना एक प्राकृतिक क्रिया है, अतः बच्चों का अपने माता-पिता के प्रति कोई कर्तव्य नहीं बनता. बच्चों को पढ़ाने-लिखाने के बाद उन्हें अपनी जिंदगी अपनी शर्तों पर जीने की आजादी दी जानी चाहिए. लड़का-लड़की के साथ रहने के लिए विवाह जैसे संस्कारों की अनिवार्यता खत्म की जानी चाहिए. इसी को कहते हैं- समय के साथ चलना. जय विज्ञान…”

फिर हाल ही में एक और न्यूज पढ़ने को मिली कि 75 वर्षीय एक अमीर महिला ने जिला मजिस्ट्रेट को अर्जी देकर इच्छा मृत्यु की आज्ञा मांगी है, क्योंकि कई वर्षों से वृद्धावस्था व शारीरिक अशक्तता की स्थिति में उनकी एक भी संतान उनकी देखभाल करने के लिए तैयार नहीं..

इसीलिए!
जब तक आप फिर से धर्म (अधर्म का विलोम, न कि कोई मजहब) की शरण में नहीं आते, कुछ ठीक नहीं होगा. “शरीर में ‘मन’ और ‘आत्मा’ नामक अंग नहीं होते” कहने वाला विज्ञान न आपको जीवों के प्रति करुणा दे सकता है, न प्रकृति के प्रति श्रद्धा और न रिश्तों के प्रति प्रेम और सम्मान! यह भाव केवल धर्म देता है. इसलिए विज्ञान के साथ ही धर्म की उंगली भी थामिए, नहीं तो प्रकृति आपको कुछ थामने लायक नहीं छोड़ेगी, क्योंकि प्रकृति अपने अपराधियों को कभी क्षमा नहीं करती.

धर्म और विज्ञान को बनाएं एक-दूसरे का पूरक

वर्तमान में समाज का एक वर्ग धर्म और आस्था को आडंबर समझने लगा है. उसका मानना है कि विज्ञान और धर्म साथ-साथ नहीं रह सकते, लेकिन सोचने वाली बात है कि जब विज्ञान और धर्म दोनों का ही उद्देश्य मानव जाति का कल्याण करना है, तब दोनों एक-दूसरे के विरोधी कैसे हो सकते हैं? दोनों ही एक-दूसरे का समर्थन पाए बगैर अपनी उपयोगिता में कमी महसूस करते हैं. विज्ञान को जानने वाला यह भी जान लेता है कि धर्म के बगैर विज्ञान अधूरा है. अल्बर्ट आइंस्टीन ने भी यही कहा था कि धर्म को विज्ञान का और विज्ञान को धर्म का पूरक बनना चाहिए, न कि परस्पर विरोधी. धर्म के साथ मिलकर ही विज्ञान कल्याणकारी हो सकता है.


विश्वास और कर्म

रामायण में महर्षि अगस्त्य श्रीराम को रोजाना आदित्य हृदय स्रोत का पाठ करने की सलाह देते हैं और कहते हैं कि इसका रोज पाठ करने से तुम रावण पर विजय अवश्य प्राप्त करोगे. अब यहां महर्षि अगस्त्य की बात का यह अर्थ नहीं कि केवल आदित्य हृदय स्रोत का ही पाठ करने से बिना लड़े या बिना कोई तैयारी किए ही विजय प्राप्त हो जाएगी. हर चीज का अपना महत्व है. यह जरूरी नहीं कि जो चीजें दिखाई नहीं देतीं, उनका कोई अस्तित्व ही नहीं या उनका कोई महत्त्व नहीं या उनका कोई प्रभाव नहीं. अदृश्य का भी अस्तित्व होता है.

भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण यह नहीं कहते कि केवल मुझ पर ही निर्भर होकर बैठ जाओ, क्योंकि श्रीकृष्ण कभी भी कोई अव्यावहारिक ज्ञान या तर्क नहीं देते. वे अर्जुन को अपनी शरण में रहकर युद्ध करने, कर्म करने के लिए प्रेरित करते हैं.

रोज की पूजा कैसे करें, सरल पूजा विधि, दैनिक पूजा विधि,

Written by : Aditi Singhal (working in the media)

Read Also :

क्या धार्मिक कार्य करने से बन जाते हैं बिगड़े काम? कैसे?

मंत्र-साधना और जप आदि कैसे करें (नियम और विधि)

अंतरिक्ष में कबाड़ (Space Junk)

सनातन धर्म और देवी-देवताओं से जुड़े सवाल-जवाब

द्वैत, अद्वैत, विशिष्‍टाद्वैत और द्वैताद्वैत क्या हैं, निर्गुण और सगुण ईश्वर क्या हैं..


Tags : dharm aur vigyan me antar sambandh, ishwar me astha, bhagwan par vishwas, dharm vs vigyan, भगवान पर विश्वास, धर्म और विज्ञान में क्या अंतर संबंध है, समाज में विज्ञान और धर्म की भूमिका



Copyrighted Material © 2019 - 2024 Prinsli.com - All rights reserved

All content on this website is copyrighted. It is prohibited to copy, publish or distribute the content and images of this website through any website, book, newspaper, software, videos, YouTube Channel or any other medium without written permission. You are not authorized to alter, obscure or remove any proprietary information, copyright or logo from this Website in any way. If any of these rules are violated, it will be strongly protested and legal action will be taken.



About Guest Articles 83 Articles
Guest Articles में लेखकों ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। इन लेखों में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Prinsli World या Prinsli.com उत्तरदायी नहीं है।

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*