Kalyug Me Kya Hoga : जैसे-जैसे कलयुग बढ़ेगा, कैसी हो जाएगी दुनिया, किसका होगा राज…

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Kalyug me Kya Kaisa Hoga

अभी तो कलियुग के 5000 से कुछ ही अधिक वर्ष बीते हैं, लेकिन इतने ही दिनों में मानव जाति का कितना मानसिक ह्रास और नैतिक पतन हो चुका है, यह सभी जानते हैं. यही स्थिति उत्तरोत्तर बढ़ती जाएगी. हालांकि, अभी तो कलयुग का प्रथम चरण ही चल रहा है, अतः अभी तो बीच-बीच में कई प्रकार के सुधार होते रहेंगे, लेकिन ‘बिगाड़’ अपनी गति से बढ़ता रहेगा.

अंतर देखिए-

रामायण में राजा दशरथ जी के समय की (त्रेतायुग) अयोध्या का वर्णन करते हुए लिखा है कि, “अयोध्या में सभी स्त्री-पुरुष सुंदर और दीर्घजीवी थे. सभी गृहस्थों के घर गौ (गाय), घोड़े और धन-धान्य से पूर्ण रहते थे. कामी, कृपण, क्रूर, मूर्ख और नास्तिक तो ढूंढने पर भी नहीं मिलते थे. क्षुद्र विचार वाले (छोटी सोच वाले), चरित्रहीन, चोर, मांसाहारी आदि नहीं होते थे. अयोध्या में कोई भी नास्तिक, झूठा, ईर्ष्या करने वाला, अशक्त और मूढ़ नहीं था. ऐसा कोई न था, जो वेदों के छः अंगों को न जानता हो, व्रत-उपवास आदि न करता हो, या दीन हो या दुखी हो, या पागल हो.”

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वहीं, घोर कलियुग में मानव जाति के स्वभाव के बारे में बताते हुए लिखा है कि, “मनुष्य जपरहित, नास्तिक और चोर होंगे. उस समय सारा जगत मलेच्छ हो जाएगा. तब मानवता नष्ट हो जाएगी. अनैतिक साहित्य ही लोगों की पसंद बन जाएगा. धर्म-कर्म का लोप हो जाएगा. अधर्म बढ़ेगा और धर्म विदा हो जाएगा. एक हाथ दूसरे हाथ को लूटेगा. सगा भाई भी भाई के धन को हड़प लेगा. चारों तरफ पाप, पीड़ा, दुख, दरिद्रता, क्लेश, अनीति, अनाचार और हाहाकार व्याप्त हो जाएंगे.”

पुत्रः पितृवधं कृत्वा पिता पुत्रवधं तथा
निरुद्वेगो बृहद्वादी न निन्दामुपलप्स्यते
मलेच्छीभूतं जगत सर्वं भविष्यति न संशयः
हस्तो हस्तं परिमुषेद युगान्ते समुपस्थिते॥

जैसे-जैसे कलियुग आगे बढ़ता जाएगा… धर्म, सत्य, पवित्रता, क्षमा, दया, आयु, बल और स्मरणशक्ति (याददाश्त) सभी का उत्तरोत्तर लोप होता जाएगा (घटता चला जाएगा). उस समय तक मनुष्य की आयु घटकर 20 वर्ष की हो जाएगी. युवावस्था समाप्त हो जाएगी. 16 वर्ष में लोग बूढ़े हो जाएंगे और 20 वर्ष में मृत्यु हो जाएगी. कलियुग के प्रभाव से प्राणियों के शरीर छोटे-छोटे, निर्बल और रोगग्रस्त होने लगेंगे. चारों तरफ बीमारियां ही बीमारियां होंगी.

कोई भी मौसम समय पर नहीं होंगे. न समय पर वर्षा होगी और भयानक सर्दी और भयानक गर्मी पड़ेगी. अन्न नहीं उगेगा. पेड़ों पर फल नहीं लगेंगे. धीरे-धीरे ये सारी चीजें भी खत्म हो जाएंगी. तब भी शासक प्रजा पर कर-पर-कर लगाते जाएंगे. गायें बकरियों की तरह छोटी-छोटी और कम दूध देने वाली हो जाएंगी… और बाद में गायें दिखना भी बंद हो जाएंगी. गंगा नदी पृथ्वीलोक को पूरी तरह छोड़ देंगी. कलियुग के अंत में तूफानों और भूकंपों जैसी प्राकृतिक आपदाओं की संख्या बहुत बढ़ जाएगी.

ज्ञान और वैज्ञानिकता के नाम पर अपने माता-पिता को भी भूल जाने और स्वेच्छाचारी बन जाने की सलाह देने वाले “महात्मा” हर जगह होंगे. व्यवहारिक सत्य और ईमानदारी समाप्त हो जाएंगे. छल-कपट में निपुण व्यक्ति ही व्यवहारकुशल समझा जाएगा. अर्थहीन व्यक्ति ही असाधु माने जाएंगे. घोर दम्भिक और पाखंडी ही सत्पुरुष समझे जाएंगे. धर्म, तीर्थ, माता-पिता और गुरुजन उपेक्षित और तिरस्कृत होंगे. धर्म का सेवन यश के लिए किया जाएगा. हर एक प्राणी धर्म की मर्यादा त्यागकर स्वच्छंद मार्ग का अनुसरण करेगा. वेद मार्ग मिट जाएगा.

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जो शक्ति संपन्न होगा, वही शासन करेगा. उस समय के राजा अत्यंत नीच, दुष्ट और निष्ठुर होंगे. लालची तो वे इतने होंगे कि उनमें और लुटेरों में कोई अंतर नहीं रह जाएगा. उनसे भयभीत होकर प्रजा वनों और पर्वतों में छिपकर तरह-तरह के कंद-मूल, फल-फूल, मांस आदि से अपनी भूख मिटाएगी. मनुष्य जीवन का सर्वश्रेष्ठ पुरुषार्थ होगा- उदर भरण, बिल्कुल पशुओं की तरह. पथिकों को मांगने पर भी कई अन्न-जल या ठहरने के लिए स्थान नहीं मिलेगा.

स्त्रियां कटुवादिनी होंगी. वे किसी की आज्ञा नहीं मानेंगी. लोग विपयी हो जाएंगे. एक-दूसरे को लूटेंगे और मारेंगे. पुत्र पिता का और पिता पुत्र का वध करके भी उद्विग्न नहीं होंगे. अपनी प्रशंसा के लिए लोग बड़ी-बड़ी बातें बनाएंगे और समाज में उनकी निंदा भी नहीं होगी. मनुष्य का स्वभाव गधों की तरह दुस्सह (असहनीय) और केवल गृहस्थी का भार ढोने वाला हो जाएगा.

काकभुशुण्ड जी द्वारा कलियुग का वर्णन

वहीं, काकभुशुण्ड जी गरुड़ जी को एक कलियुग के बारे में अपना अनुभव बताते हुए कहते हैं कि, “हे गरुड़जी! वह कलिकाल बड़ा कठिन था. उसमें सभी नर-नारी पापों में लिप्त थे. कलियुग के पापों ने सब धर्मों (सही कर्तव्यों) को ग्रस लिया, अच्छे ग्रन्थ लुप्त कर दिए, और दम्भियों ने अपनी बुद्धि से कल्पना कर-करके बहुत से पंथ प्रकट कर दिए. सभी लोग मोह के वश थे. सब पुरुष-स्त्री वेदों के विरोध में लगे रहते थे. ब्राह्मण वेदों को बेचने वाले और राजा प्रजा को खा डालने वाले होते थे.”

“जिसको जो अच्छा लग जाए, वही मार्ग है. जो डींग मारता है, वही पंडित (ज्ञानी) है. जो मिथ्या आडंबर रचता है और जो दंभ में रत है, उसी को सब कोई संत कहते हैं. जो जिस किसी प्रकार से दूसरे का धन हड़प ले, वही बुद्धिमान है. दंभी ही बड़ा आचारी है. जो झूठ बोलता है और हँसी-दिल्लगी करना जानता है, वही गुणवान है. जो आचारहीन है और वेदमार्ग को छोड़े हुए है, वही ज्ञानी और वैरागी है. जिसके बड़े-बड़े नख और लंबी-लंबी जटाएं हैं, वही कलियुग में प्रसिद्ध तपस्वी है.”

“जो अमंगल वेष और अमंगल भूषण धारण करते हैं और कुछ भी (मांस भी) खा लेते हैं, वे ही योगी हैं, वे ही सिद्ध हैं. जो दूसरों का अहित करने वाले हैं वे ही सम्मान के योग्य हैं. जो मन, वचन और कर्म से लबार (झूठ बकने वाले) हैं, वे ही कलियुग में वक्ता माने जाते हैं. सभी पुरुष काम और लोभ में तत्पर और क्रोधी होते हैं. देवता, विप्र, वेद और संतों के विरोधी होते हैं. राजा लोग पाप परायण हो गए. सुहागिनी स्त्रियाँ आभूषणों से रहित होती हैं. स्त्रियाँ अपने पति को छोड़कर पर-पुरुष का सेवन करती हैं.”

“जो तर्क करके वेद की निंदा करते हैं, वे ही ज्ञानी और आधुनिक हैं. कुलवती और सती स्त्री को पुरुष घर से निकाल देते हैं. जो पुरुष पराई स्त्री में आसक्त, कपट करने में चतुर और मोह, द्रोह में लिपटे हुए हैं, वे ही मनुष्य अभेदवादी (ब्रह्म और जीव को एक बताने वाले) ज्ञानी हैं. ब्राह्मण अपढ़, लोभी, कामी, आचारहीन और मूर्ख होते हैं. शिष्य-गुरु में बहरे-अंधे का सा हिसाब होता है. माता-पिता अपने बच्चों को बुलाकर वही धर्म सिखलाते हैं, जिससे बस पेट भरे.”

“मनुष्य जप, तप, यज्ञ, व्रत और दान आदि धर्म तामसी भाव से करने लगे. कवियों के तो झुंड हो गए. गुण में दोष लगाने वाले बहुत हैं, पर गुणी कोई भी नहीं. कलियुग में बार-बार अकाल पड़ते हैं. अन्न के बिना सब लोग दुःखी होकर मरते हैं. कलियुग में कपट, हठ, दम्भ, द्वेष, पाखंड, मान, मोह, मद और काम आदि सब जगह छा जाते हैं. मनुष्य रोगों से पीड़ित हैं, सुख कहीं नहीं. बिना ही कारण अभिमान और विरोध करते हैं.”

“दस-पाँच वर्ष का थोड़ा सा जीवन है, लेकिन घमंड ऐसा जैसे कल्पांत पर भी उनका नाश नहीं होगा. कलिकाल ने मनुष्य को बेहाल कर डाला. कोई बहिन-बेटी का भी विचार नहीं करता. लोगों में न संतोष है, न विवेक और न शीतलता है. ईर्ष्या, कडुवे वचन और लालच भरपूर हो रहे हैं, समानता चली गई. स्त्री-पुरुष सभी शरीर के ही पालन-पोषण में लगे रहते थे. पराई निंदा करने वाले संसारभर में फैले थे”.


कलियुग की शुरुआत कब हुई थी (When did Kali Yuga begin)?

आर्यभट्ट (476-550) ने अपने प्रसिद्ध ज्योतिष-ग्रन्थ ‘आर्यभटीय’ में लिखा है-

षष्ट्यब्दानां षड्भिर्यदा व्यतीतास्त्रयश्च युगपादाः।
त्र्यधिका विंशतिरब्दास्तदेह मम जन्मनोऽतीताः॥
(कालक्रियापाद, 10)

अर्थात्- 3 युग (सत्ययुग, त्रेतायुग और द्वापरयुग) और कलियुग के 60 × 60 = 3600 वर्ष बीत चुके हैं और इस समय मुझे जन्मे 23 वर्ष हुए हैं.

आर्यभट्ट का जन्म मेष संक्रांति, 476 ई. को हुआ था. इस प्रकार ‘आर्यभटीय’ की रचना 476 + 23 = 499 ई. में हुई थी.

‘कलियुग के 3600 वर्ष बीत चुके हैं’, अर्थात् कलियुग का 3,601वाँ वर्ष चल रहा था. इस आधार पर कलियुग की शुरुआत 3601- 499 = 3102 ई.पू. में हुई थी.

भाष्कराचार्य (1114-1183) ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रन्थ ‘सिद्धान्तशिरोमणि’ में लिखा है-

याताः षण्मन्वो युगानि भमितान्यन्यद्युगांधि त्रयं।
नन्दाद्रीन्दुगुणास्तथा शकनृपस्यान्ते कलेर्वत्सराः॥

(-सिद्धान्तशिरोमणि, मध्यमाधिकार, कालमानाध्याय, 28)

अर्थात्- छः मन्वन्तर और सातवें मन्वन्तर के 27 चतुर्युग बीत चुके हैं. जो 28वाँ चतुर्युग चल रहा है, उसके भी 3 युग बीत चुके हैं और जो चौथा कलियुग चल रहा है, उसके भी शालिवाहन संवत् तक 3,179 वर्ष बीत चुके हैं.

28वें कलियुग की शुरुआत माघ शुक्ल पूर्णिमा तदनुसार 18 फरवरी, शुक्रवार, 3102 ई.पू. को दोपहर 2 बजकर 27 मिनट और 30 सेकेण्ड पर हुआ था. इस घड़ी में सात नक्षत्र एक राशि पर एकत्र हो गए थे.

शालिवाहन संवत् (Shalivahana Samvat) की शुरुआत 78 ई. में उज्जयिनी-नरेश शालिवाहन (शासनकाल : 46-106 ई.) ने किया था और वर्तमान में शालिवाहन संवत् 1942 चल रहा है. अतः, 1942+3179 = 5121 वर्ष कलियुग के बीत चुके हैं (और 5122वाँ वर्ष चल रहा है). इस आधार पर भी कलियुग की शुरुआत 5122 – 2020 = 3102 ई.पू. में हुई थी. इन सभी प्रमाणों से यह सिद्ध है कि कलियुग की शुरुआत 3102 ई.पू. में हुई थी.

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