हरतालिका तीज : स्त्रियों के लिए क्यों महत्वपूर्ण है ये व्रत? जानिए व्रत कथा और और पूजन विधि

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व्रत-पूजा विधि और उसका महत्व

Hartalika Teej Vrat Katha

हरतालिका तीज (Haritalika Teej) का व्रत स्त्रियों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है. इस दिन भगवान शिव और पार्वती जी (Shiv Parvati) की पूजा-आराधना की जाती है. सबसे पहले इस व्रत को माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए रखा था. तभी से कुमारी कन्याएं इस व्रत को मनचाहा वर (पति) पाने लिए रखती आई हैं, वहीं विवाहित स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र और सौभाग्य की रक्षा के लिए पूरी श्रद्धा के साथ इस व्रत का पालन करती हैं. बहुत सी स्त्रियां निर्जला व्रत रहकर कठोरता से इसका पालन करती हैं. अगले दिन पूजा करने के बाद ही यह व्रत तोड़ा जाता है. इसीलिए करवाचौथ की तुलना में यह व्रत बहुत कठिन होता है.

हरतालिका तीज का त्योहार पूरे भारत में मनाया जाता है, लेकिन मुख्य रूप से यह उत्तर प्रदेश और बिहार में मनाया जाता है. अगले दिन ही गणेश चतुर्थी के दिन गणेश स्थापना की जाती है.

पूजन और विधि-विधान

यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को रखा जाता है. अगर तृतीया दिन हस्त नक्षत्र हो, तो इस व्रत का महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है. इस दिन व्रत करने वाली स्त्रियां तृतीया के दिन सूर्योदय से पहले ही उठ जाती हैं और फिर नहा-धोकर श्रृंगार करती हैं.

पूजन के लिए केले के पत्तों और स्तंभों से सजा हुआ मंडप बनाया जाता है और उसमें गौरी-शंकर की मूर्ति स्थापित की जाती है. शाम को स्त्रियां पूरा श्रृंगार कर पूजा के लिए बैठती हैं. भगवान शिव और पार्वती की प्रतिमा का विधि-विधान से पूजन किया जाता है. पार्वती जी को सुहाग की सारी वस्तुएं चढ़ाई जाती हैं और पति की लंबी उम्र की प्रार्थना की जाती है. व्रत कथा सुनने के बाद पूरी श्रद्धा के साथ आरती की जाती है.

इस व्रत को करने वाली स्त्रियां रात्रि जागरण करती हैं. रातभर भजन-कीर्तन करते हुए तीन बार आरती की जाती है. इसके बाद दूसरे दिन सुबह नहा-धोकर और पूजा करके गौरी-शंकर जी की मूर्ति को विसर्जित कर दिया जाता है. व्रत पूजा की सभी सामग्री या तो विसर्जित कर दी जाती है या किसी सुहागिन स्त्री को दान में दे दी जाती है.

हरतालिका तीज व्रत कथा

देवी सती ने गिरिराज हिमालय (Himalaya) के घर पार्वती जी के रूप में जन्म लिया. पार्वती जी का प्रभाव बताते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरितमानस में लिखते हैं कि ‘पार्वती जी के जन्म से संसार में सभी तरह की संपत्तियां और सिद्धियां छा गईं. पर्वत की नदियों में पवित्र जल बहने लगा. हिमालय पर अनेक तरह के नए-नए वृक्ष फूलों और फलों से लद गए और वहां कई तरह की सुंदर मणियों की खानें प्रकट हो गईं. पर्वत पर सभी तरह के पशु-पक्षी अपनी स्वाभाविक शत्रुता भूलकर एक-दूसरे के साथ प्रेम से रहने लगे. सब नर-नारी, पशु-पक्षी और सभी तरह के जीव बड़े आनंद और सुख से रहने लगे. पर्वत पर रोज नए-नए मंगल उत्सव होने लगे’.

नारद जी ने बताई पार्वती जी की भगवान शिव से विवाह होने की बात

ये सब देख-सुनकर एक बार देवर्षि नारद हिमालय के घर पहुंचे. देवर्षि नारद को देखकर हिमालय ने उनका बड़े आदर से स्वागत-सत्कार किया और अपनी पुत्री पार्वती जी के बारे पूछा. उन्होंने नारद जी से कहा कि “कृपया आप हमें हमारी पुत्री पार्वती के गुण-दोषों और विवाह आदि के बारे में बताएं”.

इस पर नारद जी ने कहा, “हे हिमालय! आपकी पुत्री तो गुणों की खान है और सुंदर, सुशील और समझदार है. वह शक्ति का अवतार हैं. संसारभर में उसकी पूजा होगी और जो भी उसकी पूजा करेगा, उसके लिए किसी भी तरह का सुख दुर्लभ नहीं रह जाएगा. संसारभर की सभी स्त्रियां पार्वती का नाम जपते हुए पतिव्रत धर्म का पालन करने लगेंगी. पार्वती अपने पति की प्रिय होगी और उसका सुहाग अमर रहेगा. अपनी पुत्री की वजह से तुम्हें भी हमेशा यश की प्राप्ति होगी और तुम्हारा सब तरह से कल्याण होगा.”

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बातों ही बातों में नारद जी ने यह भी बताया कि “पार्वती जी का विवाह भगवान शिव से होगा, लेकिन शिव जी की आराधना बहुत ही कठिन है, लेकिन तपस्या करने से वे बड़ी जल्दी प्रसन्न भी हो जाते हैं. अगर पार्वती तपस्या करें तो महादेव से उनका विवाह हो सकता है.” ऐसा कहकर नारद जी ने पार्वती जी और उनके माता-पिता को आशीर्वाद दिया.

भगवान शिव को पाने के लिए पार्वती जी ने की कठिन तपस्या, मिला वरदान

नारद जी की बात सुनकर पार्वती जी बहुत प्रसन्न हुईं. वह मन ही मन भगवान शिव से प्रेम करती थीं. उन्होंने भगवान शिव को पाने के लिए कठिन तपस्या करने की ठान ली. उन्होंने अपने माता-पिता को समझाया, मनाया और फिर कठोर तपस्या करने के लिए जंगल में चली गईं. उन्होंने सभी तरह के सुखों का त्याग कर दिया.

उन्होंने भोजन भी त्याग दिया और हजारों सालों तक कठोर से कठोर व्रत किए और केवल भगवान शिव के ही नाम का जाप और उन्हीं का ध्यान करती रहीं. पार्वती जी की इतनी कठोर तपस्या से आकाशवाणी हुई कि “हे पार्वती! तुम्हारी तपस्या सफल हुई. तुम्हें भगवान शिव ही मिलेंगे. अब तुम अपनी ये कठिन तपस्या छोड़ दो.”

पार्वती जी रहीं हर परीक्षा में सफल, भगवान शिव से हुआ विवाह

आकाशवाणी सुनकर पार्वती जी बेहद प्रसन्न हुईं. बाद में भगवान शिव ने सप्तऋषियों को पार्वती जी की परीक्षा लेने के लिए भेजा. सप्तर्षियों ने भगवान शिव के प्रति पार्वती जी के प्रेम को जानने के लिए उनकी परीक्षा ली, जिसमें भी पार्वती जी पूरी तरह सफल हुईं. पार्वती जी ने सभी से साफ कह दिया कि “मैं विवाह करूंगी तो केवल भगवान् शिवजी से“. सप्तर्षियों ने पार्वती जी को प्रणाम किया और कहा, “आप और भगवान शिव, समस्त संसार के माता-पिता हैं.” पार्वती जी का शिवजी के साथ विवाह हुआ और पार्वती जी उनके साथ सुख और आनंद के साथ रहने लगीं.

भगवान शिव ने पार्वती जी को हरतालिका व्रत के बारे में बताया

बाद में भगवान शिवजी ने पार्वती जी से कहा कि “हे पार्वती! जिस तरह तुमने कठोर तपस्या करके और मेरी आराधना करके मुझे पाया है, उसी तरह जो भी कुमारी स्त्री व्रत करके मेरे साथ तुम्हारा भी पूजन करेगी, उसे मनचाहे वर की प्राप्ति होगी. जो भी विवाहित स्त्री पूरी श्रद्धा के साथ इस व्रत को करेगी, उसे तुम्हारे समान ही अमर सुहाग का वरदान मिलेगा.” और तभी से इस व्रत को मनाने की परंपरा शुरू हुई. भगवान शिव और पार्वती जी का व्रत और पूजन करने से धन और सभी भौतिक सुख प्राप्त होते हैं.

माता लक्ष्मी जी ने अपने हर जन्म में की पार्वती जी की आराधना

माता पार्वती ने कठोर तपस्या करके भगवान शिव को अपने पति रूप में पाया है. इतनी कठोर तपस्या न आज तक किसी ने की है, और न ही आगे भी कोई कर सकेगा. इसीलिए पार्वती जी सभी मनुष्यों की आदर्श भी हैं. उन्होंने अपनी तपस्या के बल पर ये सिद्ध किया है कि संकल्प, प्रेम, कठिन मेहनत और तपस्या से कुछ भी पाया जा सकता है.

आदि काल से ही स्त्रियां मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए गौरी जी की आराधना करती आ रही हैं. गौरी जी की आराधना से विवाह में आने वाली सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं. सभी युगों में जब-जब माता लक्ष्मी ने मानव कल्याण के लिए पृथ्वी पर जन्म लिया है, तब-तब उन्होंने भगवान विष्णु जी को पति रूप में पाने के लिए मां गौरी जी की ही आराधना की है. त्रेतायुग में माता सीता हों या द्वापर युग में माता रुक्मिणी, सभी रूपों में उन्होंने माता गौरी जी के आशीर्वाद से अपने मनचाहे वर की प्राप्ति की. वहीं, पत्नियां अपने पति का प्रेम और अमर सुहाग का वरदान पाने के लिए पार्वती जी का पूजन करती हैं.

क्यों कहते हैं ‘हरतालिका व्रत’

कहते हैं कि पार्वती जी जब तपस्या करने के लिए जाना चाहती थीं, तब उनके माता-पिता उन्हें इस बात की अनुमति नहीं दे रहे थे. इससे पार्वती जी बहुत दुखी हो गई थीं. ये देखकर पार्वती जी की सहेली, उनकी सहायता करने के लिए उन्हें अपने साथ वन में ले गईं, जहां पार्वती जी ने प्रसन्नता के साथ अपनी तपस्या शुरू कर दी. पार्वती जी का अपनी सहेली द्वारा हरण किए जाने के कारण इस व्रत को हरतालिका व्रत कहा जाता है.

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