भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 82 और 83 : अपराध करने में अक्षम व्यक्ति

section 82 and 83 ipc in hindi

IPC Section 82 and 83 in Hindi

भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code-IPC) के अध्याय 4 में धारा 76 से लेकर धारा 106 तक उन ‘सामान्य अपवादों (General Exceptions)’ के बारे में बताया गया है, जो किए गए अपराध को भी क्षमा करने योग्य बनाते हैं, यानी इन धाराओं में उन परिस्थितियों या हालात के बारे में बताया गया है, जिनके मौजूद होने पर कोई आपराधिक कार्य होते हुए भी वह अपराध नहीं माना जाएगा, या उस आपराधिक कार्य के लिए क्षमा कर दिया जाएगा. हम इन धाराओं का अध्ययन अलग-अलग भागों में करेंगे-

अपराध करने में अक्षम व्यक्ति

भारतीय दंड संहिता की धारा 82 और 83 अपराध करने में अक्षम व्यक्तियों के संबंध में है. भारत में 7 साल से कम उम्र के बच्चों को अपराध करने में अक्षम कहा जाता है, क्योंकि माना जाता है कि 7 साल तक के बच्चे अपने कार्य की प्रकृति और उसके परिणामों को समझने में असमर्थ होते हैं, इसलिए उन्हें अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है. इसका सीधा मतलब है कि 7 साल से कम उम्र का बच्चा न ही कोई अपराध कर सकता है और न उसके लिए उसे कोई सजा दी जा सकती है. इंग्लैंड में यही उम्र सीमा 10 साल की है.

वहीं, 7 साल से ज्यादा लेकिन 12 साल से कम उम्र के बच्चों को भी आपराधिक दायित्व से सीमित बचाव दिया गया है. सीमित बचाव इस तथ्य पर निर्भर करता है कि वह बच्चा अपने द्वारा किए गए कार्य की प्रकृति और उसके परिणामों को समझ सकता है या नहीं. यानी यहां बच्चे की केवल उम्र मायने नहीं रखती, बल्कि उस उम्र में उसकी तरफ से किए गए कार्य की प्रकृति समझने और उसके परिणाम के संबंध में निर्णय ले सकने की क्षमता को देखा जाता है.

IPC की धारा 82 (IPC Section 82 in Hindi)

7 वर्ष से कम आयु के शिशु का कार्य-
“वह कोई बात अपराध नहीं है जो 7 वर्ष से कम आयु के शिशु द्वारा की जाती है.”

IPC की धारा 83

7 वर्ष से ऊपर लेकिन 12 वर्ष से कम आयु के अपरिपक्व समझ के शिशु का कार्य-
“वह कोई बात अपराध नहीं है जो 7 वर्ष से ऊपर और 12 वर्ष से कम आयु के ऐसे शिशु द्वारा की जाती है, जिसकी समझ इतनी परिपक्व नहीं हुई है कि वह इस अवसर पर अपने आचरण की प्रकृति और परिणामों का निर्णय कर सके.”

धारा 83 के तहत बचाव के लिए कई बातों पर विचार किया जाता है, जैसे- उस बच्चे का अपराध से पहले और अपराध के बाद के आचरण पर गौर किया जाएगा, साथ ही उसने अपराध किस तरह का किया है, इस पर गौर करके ये देखा जाएगा कि उस बच्चे की समझ कितनी है. क्या वह अपने कार्य की प्रकृति को समझता है या नहीं कि वह गलती और अपराध में अंतर कर सके.

ऐसे बच्चे को अगर ये पता है कि वह जो कर रहा है, उसका क्या रिजल्ट हो सकता है और उसके बाद भी वह कार्य उसके द्वारा किया जाता है तो वह दोषी है. अदालत उस बच्चे के व्यवहार, प्रकृति और कार्य करने के तरीके से यह पता लगा सकती है कि वह बच्चा अपने द्वारा किए गए कार्य की प्रकृति और उसके परिणाम को कितना समझता है.

उल्ला महापात्र (1950) के मामले में अभियुक्त, जिसकी उम्र 11 साल से ज्यादा लेकिन 12 साल से कम थी, चाकू लेकर मृतक की तरफ यह कहते हुए बढ़ा कि वह उसे काटकर उसके टुकड़े-टुकड़े कर देगा. बच्चे ने सच में उसे काट डाला. न्यायालय ने उस बच्चे को दोषी ठहराया और कहा कि वह बालक अपरिपक्व समझ का नहीं था, क्योंकि वह जो कुछ भी कह रहा था, उसने वही सब किया. इसका मतलब वह जानता था कि वह क्या कर रहा है.

अब यहां एक सवाल ये भी आता है कि ऐसे बच्चे जो ठीक 7 साल के हैं, क्या उन्हें भी धारा 82 य 83 के तहत बचाव मिल सकता है? यहां यह स्पष्ट नहीं किया गया है. लेकिन इस मामले में डॉ. हरिसिंह गौर का कहना है कि ऐसे सभी बच्चे धारा 82 के तहत बचाव ले सकते हैं, धारा 83 के तहत नहीं.


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