भगवान श्रीकृष्ण की पराशक्ति और प्रेम का अवतार हैं श्री राधिका जी, जानिए उनके जन्म की कथा

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Shri Radha ji ke Janm Ki Katha

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भगवान श्रीकृष्ण (Shri Krishna) की पराशक्ति और जगतजननी श्री राधा रानी (Shri Radha) ब्रज के कण-कण में व्याप्त हैं. श्री कृष्ण का नाम राधा जी के बिना नहीं लिया जाता. कृष्ण, राधा के बिना अधूरे हैं. श्रीकृष्ण में ‘श्री’ शब्द राधा रानी के लिए ही प्रयुक्त हुआ है. दोनों एक ही भाव के दो रूप हैं. एक गौर हैं तो दूसरे श्याम. भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ तो शुक्ल पक्ष की अष्टमी को उनकी आह्लादिनी शक्ति श्री राधिका जी का. राधाष्टमी (Radhashtami) को पूरा ब्रज राधे-राधे कह उठता है.

राधा भजति तं कृष्णं स च तां च परस्परम्।
उभयोः सर्वसाम्यं च सदा सन्तो वदन्ति च॥

श्रीराधा जी का जन्म

कथा के अनुसार, श्री राधा जी का जन्म आज से लगभग पांच हजार साल पहले पवित्र नगरी मथुरा के गोकुल-महावन के निकट, बरसाने से करीब पचास किलोमीटर दूर रावल गांव में ब्रज के राजा वृषभानु और कीर्ति देवी के घर हुआ था. राधा जी की मां देवी कीर्ति जी को एक पुत्री रत्न की कामना थी. वे हर रोज यमुना में स्नान करते हुए यही प्रार्थना किया करती थीं.

प्रतिदिन की तरह कीर्ति जी यमुना नदी के पास पूजा कर रही थीं. तभी यमुना में एक सुंदर और दिव्य कमल पुष्प प्रकट हुआ. उस कमल पुष्प से बड़ा अद्भुत प्रकाश निकल रहा था. देवी कीर्ति और राजा वृषभानु ने देखा कि उस कमल पुष्प में एक नन्ही सी सुंदर और दिव्य कन्या मुस्कुरा रही है, जिसके नेत्र बंद थे. उस कन्या को देखकर दोनों बहुत प्रसन्न हुए और उसे अपनी प्रथम संतान के रूप में अपने घर ले आए. यही बालिका परमशक्ति श्रीराधा जी थीं.

जिनके दर्शन बड़े-बड़े देवताओं के लिए भी दुर्लभ हैं, मनुष्य सैकड़ों जन्मों तक तपस्या करने पर भी जिनकी झांकी नहीं पाते, वे ही श्री राधिका जी जब वृषभानु के यहां साकार रूप से प्रकट हुईं, तो संपूर्ण दिशाएं प्रसन्न और प्रकाशमान हो उठीं, नदियों का जल पवित्र हो गया. वृषभानु और कीर्ति देवी ने अपनी लाड़ली के कल्याण की कामना से ब्राह्मणों को दो लाख उत्तम गायें दान में दीं.

श्रीकृष्ण के ही दर्शन के लिए खोले अपने नेत्र

प्रचलित कथा के अनुसार, राधा जी के जन्म के ग्यारह महीने बाद तीन किलोमीटर दूर मथुरा में कंस के कारागार में भगवान श्रीकृष्‍ण जी का जन्‍म हुआ. वे रात में गोकुल में नंदबाबा और यशोदा जी के घर पहुंचाए गए. गोकुल में श्री कृष्‍ण का जन्‍मोत्‍सव मनाया गया, नंदबाबा ने सभी स्थानों पर संदेश भिजवाया.

नंदबाबा के पुत्र श्रीकृष्ण के दर्शन करने के लिए राजा वृषभानु जी अपनी पुत्री राधा जी को अपनी गोद में लेकर गोकुल आए. राधारानी जी घुटने के बल चलते हुए बालकृष्‍ण के पास पहुंचीं. श्री कृष्ण जी के पास पहुंचते ही राधा जी के नेत्र खुल गए और उन्होंने अपने जन्म के बाद अपने नेत्रों से प्रथम दर्शन अपने भगवान श्री कृष्ण के ही किए. पूरे ग्यारह महीनों तक राधा रानी ने अपने नेत्रों को बंद कर रखा था. अपनी प्राणप्रिया को अपने सामने देखकर भगवान श्री कृष्ण बहुत आनंदित होते हैं.

प्रेम का अवतार और त्याग, समर्पण, भक्ति और करुणा का प्रतीक हैं राधा

राधा जी के कई और नाम हैं लाड़ली, कृष्णप्रिया, वृषभानुलली, राधिका, किशोरी, माधवी आदि. राधा जी प्रेम का अवतार और त्याग, समर्पण, भक्ति, करुणा, मित्रता और संबंधों का प्रतीक हैं. वेद-पुराण का सार और सृष्टि का आधार हैं राधा. ब्रज-रस में श्रीराधा जी की विशेष महिमा है. भगवान श्रीकृष्ण प्रेम के पुजारी हैं इसलिए वह अपनी पुजारिन की पूजा करते हैं, उन्हें सजाते-संवारते हैं. उनके रूठ जाने पर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं. श्रीराधा जी की सेवा कर भगवान श्रीकृष्ण ये बताते हैं कि उनके लिए भक्तों के प्रेम का कितना महत्व है.

ऋग्वेदीय परम्परा के ‘राधोपनिषद’ (Radhopanishad) में सनकादि ऋषियों ने ब्रह्माजी से जब ‘परम शक्ति’ के विषय में प्रश्न किया, तब ब्रह्माजी ने वृन्दावन अधीश्वर श्रीकृष्ण को सर्वेश्वर स्वीकार करते हुए उनकी प्रिय शक्ति श्रीराधा को सर्वश्रेष्ठ व आह्लादिनी शक्ति कहा है. भगवान श्रीकृष्ण द्वारा आराधित होने के कारण उनका नाम ‘राधिका’ पड़ा.

श्रुतियों में श्रीराधाजी के ये नाम बताये गए हैं-
राधा, रासेश्वरी, राधिका, रुक्मिणी, रम्या, रमा, कृष्णमत्राधिदेवता, सत्यभामा, श्रीकृष्णवल्लभा, वृषभानुसुता, गोपी, मूल प्रकृति, ईश्वरी, सर्वाद्या, सर्ववन्द्या, वृन्दावनविहारिणी, वृन्दाराधा, परमेश्वरी, परात्परतरा, पूर्णा, अशेषगोपीमण्डलपूजिता, सत्या, सत्यपरा, गान्धर्वा, पूर्णचन्द्रविमानना, भुक्तिमुक्तिप्रदा और भवव्याधिविनाशिनी.

भगवान श्रीकृष्ण की आत्मा हैं श्री राधिका जी

श्रीकृष्ण परब्रह्म परमात्मा हैं और राधा रानी उनकी पराशक्ति हैं. कृष्ण और राधा एक ही हैं. कृष्ण शब्द हैं तो राधा अर्थ, कृष्ण गीत हैं तो राधा संगीत. कृष्ण वंशी हैं तो राधा स्वर, कृष्ण समुद्र हैं तो राधा तरंग, कृष्ण फूल हैं तो राधा सुगंध. नारद पंचरात्र के ज्ञानामृत सार के अनुसार, राधा और कृष्ण एक ही शक्ति के दो रूप हैं. पद्म पुराण में कहा गया है कि राधा श्रीकृष्ण की आत्मा हैं. श्रीकृष्ण ही राधा जी के पति हैं. गोलोक, जहां भगवान श्रीकृष्ण राधा जी के पति रूप में निवास करते हैं, वही लोक सब लोकों में सबसे ऊपर है.

पहले राधा फिर कृष्ण

जब भी श्रीकृष्ण और राधाजी की बात होती है, तो सबसे पहले राधा जी का ही नाम लिया जाता है. भक्त राधाकृष्ण कहकर पुकारते हैं. श्रीकृष्ण से पहले राधा जी का नाम क्यों लिया जाता है, इसे लेकर श्रीमद् देवीभागवत ग्रंथ में बताया गया है कि भगवान श्रीकृष्ण उस भक्त की पुकार अवश्य सुनते हैं, जो राधा जी का नाम रटते हैं.

श्रीकृष्ण ने कहा है कि जो व्यक्ति केवल कृष्ण-कृष्ण रटता रहता है, वह सिर्फ अपना समय नष्ट करता है. इसलिए श्रीकृष्ण को बुलाना है तो पहले राधा जी को बुलाओ, क्योंकि जहां राधा जी होंगी, वहां श्री कृष्ण स्वयं चले आएंगे. पुराणों के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है कि राधाजी उनकी आत्मा में बसती हैं. भगवान श्रीकृष्ण केवल राधा जी का नाम सुनने मात्र से ही अत्यंत प्रसन्न हो जाते हैं.

वृषभानु-कीर्ति जी की पुत्री, वृंदावन की महारानी, हमारे आराध्य भगवान श्री कृष्ण की प्राणप्रिया, सभी पापों से मुक्ति देने वाली, जिनकी सेवा स्वयं भगवान भी करते हैं, ब्रज के कण-कण में जिनका वास है, जिन्होंने सबको प्रेम की परिभाषा बतलाई और जो प्रेम का ही स्वरूप हैं, वही किशोरी जी के जन्मोत्सव श्रीराधाष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं. श्री राधा रानी का आशीर्वाद सभी भक्तों पर सदा बना रहे.

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