Research on Saraswati River : प्राचीन ग्रंथों में सरस्वती नदी के साक्ष्य और नई रिसर्च

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इतिहास की अधिकतर किताबों में सरस्वती नदी (Saraswati River) को एक मिथक बता दिया गया, जबकि वैज्ञानिक शोध बार-बार उन्हीं तथ्यों को सामने रखते रहे हैं, जिनका दस्तावेजीकरण भारत के प्राचीन ग्रंथों में किया जा चुका है. आइए आज अलग-अलग प्राचीन ग्रंथों में सरस्वती नदी के साक्ष्यों और इसे लेकर अब तक हुए शोधों पर संक्षेप में प्रकाश डालते हैं-

वेदों में सरस्वती नदी (Saraswati River in Vedas)

वेदों में सरस्वती नदी का उल्लेख प्रमुख नदी के रूप में कई बार हुआ है. ऋग्वेद में सरस्वती नदी को ‘अन्नवती’ और ‘उदकवती’ भी कहा गया है, क्योंकि यह नदी हमेशा जल से भरी रहती थी और इसके किनारे प्रचुर मात्रा में अन्न की पैदावार होती थी. वैदिक काल में सरस्वती नदी को ‘परम पवित्र’ नदी माना गया है. ऋषियों ने इसके तट के पास रहते हुए वैदिक ज्ञान का विस्तार किया. ऋग्वेद में दशम मंडल के नदी सूक्त में भारत में नदियों की महिमा का विस्तार से वर्णन मिलता है.

इमं में गंगे यमुने सरस्वति शुतुद्रि स्तोमै सचता परूष्ण्या।
असिवक्न्या मरूद्वृधे वितस्तयार्जीकीये श्रणुह्या सुषोमया।।

सरस्वती का उद्गम स्थल- ऋग्वेद में नदी सूक्त के १०.७५ श्लोक में सरस्वती नदी को ‘यमुना के पश्चिम’ और ‘सतलुज के पूर्व’ में बहती हुई बताया गया है. ऋग्वेद में बार-बार इस बात का उल्लेख आता है कि सरस्वती एक विशाल नदी थी, जो पहाड़ों को तोड़ती हुई निकलती थी और मैदानों से होती हुई अरब सागर में जाकर मिल जाती थी.

यजुर्वेद की वाजस्नेयी संहिता ३४.११ के अनुसार, पांच नदियाँ अपने पूरे प्रवाह के साथ सरस्वती नदी में आकर मिलती हैं. शोधकर्ताओं के अनुसार, ये पांच नदियाँ पंजाब की सतलुज, रावी, व्यास, चिनाब और दृष्टावती हो सकती हैं. उत्तर वैदिक ग्रंथों, जैसे ‘ताण्डय’ और ‘जैमिनीय ब्राह्मण’ में सरस्वती नदी को मरुस्थल में सूखा हुआ बताया गया है.

ऋग्वेद में सरस्वती नदी को ‘नदीतमा’ भी कहा गया है. ऋग्वेद की ऋचाएं ६.६१, ७.९५ और ७.९६ में पूरी तरह से सरस्वती नदी को ही समर्पित स्तवन दिए गए हैं. ऋग्वेद के श्लोक ७.३६.६ में सरस्वती को सप्तसिंधु नदियों की जननी और ३.३३.१ में इसे ‘गाय की तरह पालन करने वाली’ कहा गया है. सरस्वती नदी से जुड़े ऋग्वेद के अन्य श्लोक-

ऐं अम्बितमे नदीतमे देवितमे सरस्वति।
अप्रशस्ता इव स्मसि प्रशस्तिमम्ब नस्कृधि॥
(ऋग्वेद २.४१.१६)

नि त्वा दधे वर आ पृथिव्या इळायास्पदे सुदिनत्वे अह्नाम्।
दृषद्वत्यां मानुष आपयायां सरस्वत्यां रेवदग्ने दिदीहि॥
(ऋग्वेद के ३.२३.४)

मनुसंहिता में सरस्वती नदी (Saraswati river in Manusamhita)

मनुसंहिता के अनुसार, सरस्वती और दृषद्वती के बीच का क्षेत्र ही ‘ब्रह्मावर्त‘ कहलाता था, और ब्रह्मावर्त और कुरुक्षेत्र एक ही प्रवेश के दो नाम हैं. ब्रह्मावर्त क्षेत्र एक महान संस्कृति का उद्गम प्रदेश है, जहां सभी वर्णों ने मिलकर सदाचार की परंपरा निभाई है.

सरस्वती दृषद्वत्योर्देवनद्योर्यदन्तरम्।
तं देवनिर्मितं देशं ब्रह्मावर्तं प्रचक्षते।।
यस्मिन्दे शे यः आचारः पारम्पर्यक्रमागतः।
वर्णानां सांतरालानां स सदाचार उच्यते॥
(मनुस्मृति श्लोक – १८ और १९)

दृषद्वत्यां मानुष आपयायां सरस्वत्यां रेवदग्ने दिदीहि॥
(ऋग्वेद के ३.२३.४)

कालिदास ने ब्रह्मावर्त में सरस्वती नदी का वर्णन किया है. यह ब्रह्मावर्त की पश्चिमी सीमा पर बहती थी. श्रीमद्भागवत (५.१९.१८) में सरस्वती का उल्लेख यमुना और दृषद्वती (यह भी हरियाणा से होकर बहती थी) के साथ है. यानी दृषद्वती सरस्वती नदी की सहायक नदी थी. कुछ आधुनिक इतिहासकार दृषद्वती नदी को ही यमुना बता देते हैं.

रामायण में सरस्वती नदी (Saraswati River in Ramayana)

वाल्मीकि रामायण के अयोध्याकाण्ड में भरत जी के कैकय देश से अयोध्या आने के प्रसंग में उनके द्वारा सरस्वती और गंगा नदी को पार करने का उल्लेख है-

सरस्वतीं च गंगा च युग्मेन प्रतिपद्य च।
उत्तरान् वीरमत्स्यानां भारूण्डं प्राविशद्वनम्।।

महाभारत में सरस्वती नदी (Saraswati River in Mahabharata)

महाभारत में तो सरस्वती नदी का उल्लेख बहुत जगहों पर किया गया है. महाभारत में सरस्वती नदी को वेदस्मृति, वेदवती, प्लक्षवती नदी भी कहा गया है. महाभारत में शल्यपर्व के 35वें से 54वें अध्याय तक सरस्वती नदी के सभी तटवर्ती तीर्थों का विस्तार से वर्णन दिया गया है. इन स्थानों की यात्रा श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी ने की थी.

महाभारत के अनुसार सरस्वती नदी हरियाणा में यमुनानगर से थोड़ा ऊपर और शिवालिक पहाड़ियों से थोड़ा नीचे ‘आदिबद्री’ (उत्तराखण्ड) नामक स्थान से निकलती थी. मरुभूमि (मरुस्थल) में जिस स्थान पर सरस्वती नदी लुप्त हो गई थीं, उसे ‘विनशन’ कहा जाता था. यह भी बताया गया है कि मरुभूमि में ‘विनशन’ नामक स्थान पर लुप्त होकर सरस्वती नदी किसी स्थान से फिर प्रवाहित होने लगती हैं.

महाभारत में बताया गया है कि सरस्वती नदी के तट के समीप कई राजाओं ने कई यज्ञ किए थे. वर्तमान सूखी हुई सरस्वती नदी के समान्तर खुदाई में 5500 से 4000 साल पुराने शहर मिले हैं, जिनमें कालीबंगा, पीलीबंगा और लोथल भी शामिल हैं. यहां कई यज्ञकुण्डों के अवशेष भी मिले हैं, जो महाभारत में उल्लेखित तथ्यों का स्पष्ट प्रमाण देते हैं.

हड़प्पा सभ्यता और सरस्वती नदी (Harappan Civilization and Saraswati River)

हड़प्पा सभ्यता या सिंधु घाटी सभ्यता, जिसे फिलहाल भारत की सबसे प्राचीन सभ्यता माना जाता है, वह भी सिंधु-सरस्वती सभ्यता (Sindhu-Saraswati civilization) थी. सभ्यता का इतिहास बताता है कि सरस्वती नदी तट पर बसी बस्तियों से मिले अवशेष और इन अवशेषों की कहानी हड़प्पा सभ्यता से जुड़ती है.

हड़प्पा सभ्यता की 2600 बस्तियों में से मात्र 265 बस्तियां ही वर्तमान पाकिस्तान में सिंधु नदी के तट पर हैं, जबकि बाकी ज्यादातर बस्तियां सरस्वती नदी के तट पर ही मिलती हैं. इतिहास की किताबों में हड़प्पा सभ्यता को मानसून पर निर्भर बताया जाता रहा है, क्योंकि पूर्वाग्रह से ग्रसित इतिहासकार वेदों, स्मृतियों, रामायण, महाभारत आदि के आधार पर सरस्वती नदी के अस्तित्व को स्वीकार करने के लिए तैयार ही नहीं थे.

सरस्वती नदी पर आधुनिक शोध (Research on Saraswati River)

सरस्वती नदी को लेकर ऋग्वेद सहित अन्य सनातन ग्रंथों में दिए गए संदर्भों के आधार पर, कई भू-विज्ञानियों का यह मानना है कि हरियाणा से राजस्थान होकर बहने वाली मौजूदा सूखी हुई घग्घर-हकरा नदी प्राचीन सरस्वती नदी की एक मुख्य सहायक नदी थी, जो 5000-3000 ईसा पूर्व पूरे प्रवाह से बहती थी. उस समय यमुना और सतलज की कुछ धाराएं भी आकर सरस्वती नदी में मिल जाती थीं.

इसके अलावा दो अन्य लुप्त हुई नदियां दृष्टावती और हिरण्यवती भी सरस्वती नदी की सहायक नदियां थीं. करीब 1900 ईसा पूर्व तक भूगर्भी बदलाव के कारण सतलज और यमुना ने अपना रास्ता बदल दिया, और 2600 ईसा पूर्व दृष्टावती नदी के सूख जाने की वजह से सरस्वती नदी भी लुप्त हो गईं.

क्या सरस्वती नदी सच में लुप्त हो गई हैं?

लोगों का यह मानना है कि सरस्वती नदी अब भी प्रयाग में अंत:सलिला होकर बहती हैं, वहीं बहुत से शोधकर्ताओं द्वारा अब तक यह कहा जाता रहा है कि सरस्वती कभी भी प्रयागराज तक पहुंची ही नहीं, लेकिन दिसंबर 2021 में भारतीय वैज्ञानिकों ने हेलिकॉप्टर से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सर्वे के तहत प्रयागराज में संगम के नीचे एक प्राचीन नदी को खोजा है.

इस सर्वे में इस बात के पुख्ता सबूत मिले हैं कि संगम के नीचे 45 किलोमीटर लंबी, चार किलोमीटर चौड़ी और पंद्रह मीटर गहरी प्राचीन नदी मौजूद है. यानी संगम में गंगा और यमुना की तलहटी के नीचे भूमि के अंदर एक प्राचीन नदी बह रही है. यह भी माना जा रहा है कि इस भूमिगत नदी का संबंध हिमालय से है.

यानी संगम में मिलने वाली तीसरी नदी सरस्वती ही हो सकती है. लोगों की मान्यता के अनुसार ही ठीक इसी नदी के बहाव क्षेत्र के नीचे एक पुरातन नदी का मिलना हैरान करने वाला है. यह स्टडी CSIR-NGRI के वैज्ञानिकों ने मिलकर की है, जो कि एडवांस्ड अर्थ एंड स्पेस साइंस जर्नल में प्रकाशित है.

ISRO द्वारा किए गए एक शोध से भी पता चलता है कि सरस्वती नदी आज भी हरियाणा, पंजाब और राजस्थान से होती हुई भूमिगत रूप में प्रवाहमान है.

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