Luv Kush in Ramcharitmanas : तुलसीदास जी की रामचरितमानस में लव-कुश

shri ram sita vanvas, ram sita love story prem kahani, श्रीराम और सीता जी का वनवास
Shri Ram-Sita

Luv Kush in Ramcharitmanas Tulsidas ji

रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक होने के बाद सभी देवों द्वारा की गई उनकी स्तुति का वर्णन किया गया है. उसके बाद (छह महीने बाद) सभी अतिथियों, वानरों, मित्रों आदि की विदाई, और फिर रामराज्य और प्रजाजनों के सुखों का वर्णन किया गया है. इन सबके बाद बताया गया है कि श्रीराम-सीता जी सहित महल में सब लोग किस प्रकार रहे. देखिये रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड का यह प्रसंग-

प्रभु श्री रामजी ने बहुत से अश्वमेध यज्ञ किए और ब्राह्मणों-संतों आदि को अनेकों दान दिए. सीताजी पूरी विनम्रता के साथ सदा पति के अनुकूल रहती हैं. वे कृपासागर श्री रामजी की प्रभुता (महिमा) को जानती हैं और मन लगाकर उनके चरण कमलों की सेवा करती हैं. यद्यपि घर में बहुत से दास-दासियाँ हैं और वे सभी सेवा की विधि में कुशल हैं, फिर भी स्वामी की सेवा का महत्व जानने वाली श्री सीताजी घर की सब सेवा (सभी कार्य) अपने ही हाथों से करती हैं.

आगे सीता जी को लेकर बताया गया है-

श्रीजी (सीता जी) वही कार्य करती हैं, जिसमें कृपासागर श्रीराम को सुख मिले, क्योंकि वे सेवा की विधि को जानने वाली हैं. सीताजी घर में माता कौसल्या आदि सभी सासुओं की सेवा करती हैं और उन्हें किसी बात का अभिमान और मद (अहंकार) नहीं है. ब्रह्मा जी आदि देवताओं से वंदित महालक्ष्मी स्वरूपा सीता जी अपने महामहिम स्वभाव को छोड़कर श्रीराम जी के चरणों में प्रीति करती हैं.

Read Also : वाल्मीकि रामायण : सीताजी की अग्नि परीक्षा क्यों?

सब भाई अनुकूल रहकर श्रीराम की सेवा करते हैं. वे श्रीराम की तरफ देखते रहते हैं कि कृपालु श्रीराम कभी हमें भी कुछ सेवा का अवसर दें. श्रीराम अपने भाइयों से बहुत प्रेम करते हैं और उन्हें अनेक प्रकार की नीतियाँ सिखलाते हैं. नगर के सब लोग प्रसन्नता के साथ रहते हैं और सभी प्रकार के सुख भोगते हैं. कहीं भी किसी प्रकार का कोई भेदभाव या असमानता नहीं है.

आगे बताया गया है-

दुइ सुत सुंदर सीताँ जाए।
लव कुस बेद पुरानन्ह गाए॥
दोउ बिजई बिनई गुन मंदिर।
हरि प्रतिबिंब मनहुँ अति सुंदर॥
दुइ दुइ सुत सब भ्रातन्ह केरे।
भए रूप गुन सील घनेरे॥

सीताजी ने दो पुत्रों को जन्म दिया- लव और कुश, जिनका वर्णन वेद-पुराणों ने किया है. वे दोनों ही विख्यात योद्धा, नम्र और गुणों के धाम हैं, अत्यंत सुंदर हैं जैसे श्रीहरि के प्रतिबिम्ब ही हों. दो-दो पुत्र सभी भाइयों के हुए, जो बड़े ही सुंदर, गुणवान और सुशील थे.

और फिर इसके बाद गोस्वामी तुलसीदास जी ने अयोध्याजी की रमणीयता का वर्णन किया है.


सीता जी का वनवास

बालकाण्ड में तुलसीदास जी ने अयोध्या के कुछ ऐसे लोगों के बारे में संकेत दिया है, जिन्होंने मूर्खतावश सीता जी की निंदा की होगी. तुलसीदास जी लिखते हैं कि ‘राम जी की अपनी प्रजा पर ऐसी ममता है कि उन्होंने सीताजी की निंदा करने वाले धोबी और उसके समर्थकों तक को क्षमा करके अपने लोक में स्थान दे दिया’.

प्रनवउँ पुर नर नारि बहोरी।
ममता जिन्ह पर प्रभुहि न थोरी॥
सिय निंदक अघ ओघ नसाए।
लोक बिसोक बनाइ बसाए॥

भावार्थ- “मैं अवधपुरी के उन नर-नारियों को भी प्रणाम करता हूँ, जिन पर प्रभु श्रीराम जी की ममता थोड़ी नहीं है. श्रीराम ने सीताजी की निंदा करने वाले धोबी और उसके समर्थक नर-नारियों के भी पाप समूह का नाशकर उन्हें शोकरहित बनाकर अपने लोक (धाम) में बसा दिया.”

यहां “शोकरहित बनाकर” शब्द पर ध्यान दीजिये. इससे यह भी पता चलता है कि जिन लोगों ने सीता जी की निंदा की होगी, उन्हें बाद में सत्य का पता लगने पर अपनी मूर्खता पर बहुत पछताना भी पड़ा होगा. और इसीलिए उन्हें स्वयं पर भयंकर शोक या पश्चाताप भी हुआ होगा. लेकिन जब उन्होंने श्रीराम से क्षमा मांगी, तब श्रीराम ने ममतावश उनके पापों का नाशकर और उन्हें शोकरहित बनाकर अपने धाम में स्थान दे दिया.

विवाह के बाद श्रीराम ने कोई भी कार्य सीता जी की सहमति के बिना नहीं किया. श्रीराम ने सीता जी को वनवास नहीं दिया था और न ही कभी उनका त्याग किया था. यदि श्रीराम ने सीताजी का त्याग ही कर दिया होता तो वे अश्वमेध यज्ञ में सीताजी की प्रतिमा को भी अपने साथ न बिठाते.

बल्कि सीता जी ही उस स्थान पर नहीं रहना चाहती थीं, जिस स्थान के कुछ लोग उन पर और उनके कारण श्रीराम पर अनर्गल आरोप लगा रहे हों. अतः मन में एक प्रतिज्ञा करके और श्रीराम से आज्ञा लेकर सीता जी ही उस स्थान को छोड़कर चली गई थीं, न कि श्रीराम ने सीता जी का त्याग किया था.

श्रीराम ने सीता जी को अकेली भटकने के लिए नहीं छोड़ा था. लक्ष्मण जी के साथ रथ में भेजकर वाल्मीकि आश्रम के पास ही छोड़ा था. क्या श्रीराम को नहीं पता था कि सीता जी वाल्मीकि आश्रम में सुरक्षित हैं.. और क्या सीता जी कोई साधारण नारी थीं?? वैसे भी रामराज्य में अपराध शून्य के बराबर थे. किसी भी नागरिक को किसी से डरने की कोई आवश्यकता भी नहीं रह गई थी.

श्रीराम और सीता जी ने अपनी प्रजा को अपनी संतान माना था, और इसीलिए वे प्रजा को उसकी इस मूर्खता के लिए दंड नहीं दे सकते थे. यदि वे ऐसा करते तो कुछ लोग यह प्रचारित कर देते कि प्रजा तो राजा-रानी के विरुद्ध कुछ बोल ही नहीं सकती.

यदि उनका कोई शत्रु इस तरह की बातें करता तो वे तुरंत ही उसे दंड दे देते. लेकिन यहां बात एक राजा-रानी की मर्यादा बनाए रखने की थी. एक राजा अपने कर्तव्यों और अधिकारों की तुलना किसी साधारण परिवार के मुखिया से नहीं कर सकता. एक परिवार के मुखिया पर केवल उसके अपने परिवार की जिम्मेदारी होती है, लेकिन एक राजा के ऊपर ऐसे हजारों परिवार निर्भर होते हैं.

अतः श्रीराम और सीता जी ने प्रजा को सबक सिखाने के लिए प्रेम का रास्ता चुना. दोनों ने एक-दूसरे से अलग होकर, अपने इस त्याग से प्रजा के दिलों में पश्चाताप की ज्वाला भड़का दी.

वैसे भी, दंड देकर आप लोगों का मुंह तो बंद करवा सकते हैं, लेकिन उनके विचार नहीं बदल सकते. प्रजा को दंड देकर या सबका मुंह बंद करवाके वे लोगों की सोच नहीं बदल सकते थे. श्रीराम-सीता जी को स्त्रियों के प्रति लोगों की सोच ही तो बदलनी थी, और इन सबमें श्रीराम ने सारा दोष अपने ऊपर ले लिया, क्योंकि श्रीराम किसी भी कीमत पर सीता जी की निंदा सहन नहीं कर सकते.

जब श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ के लिए दूसरा विवाह करने से साफ इनकार कर स्पष्ट बता दिया कि ‘राम के जीवन में सीता का स्थान कोई नहीं ले सकता’, साथ ही जब उन्होंने सीता जी की ही स्वर्ण प्रतिमा को अपने साथ बिठाकर यज्ञ किया, तब प्रजा को इस बात का एहसास हुआ था कि श्रीराम केवल किसी से कुछ बोल नहीं रहे, लेकिन वे अंदर ही अंदर कितने दुखी और नाराज हैं.

और जब अंत में सीता जी ने प्रतिज्ञा ली, तब तो प्रजा के पश्चाताप की कोई सीमा ही न रही. और तब सीता जी पर आरोप लगाने वालों ने श्रीराम के चरणों में गिरकर उनसे क्षमा मांगी.

किसी परिवार का मुखिया या एक राजा कितना ही दुखी क्यों न हो, लेकिन वह अपने दुख को दिखा नहीं सकता, क्योंकि उसके दुख को देखकर संतान या प्रजा हतोत्साहित होती है. यह भी आदर्श श्रीराम और सीता जी ने स्थापित किया.

श्रीराम और सीता जी ने यह सब लीला इसलिए भी की थी क्योंकि वे तीनों भाइयों (भरत, लक्ष्मण और शत्रुध्न जी) और सुग्रीव आदि के अंदर वीरता-बहादुरी या बाहुबल के अहंकार का बीज फूटते हुए देख रहे थे. लेकिन जब वे सभी छोटे-छोटे लव-कुश के हाथों हार गए, तो सबका अहंकार दूर हो गया. वहीं, हनुमान जी को तो कभी कोई अहंकार हो नहीं सकता, अतः वे लव-कुश को देखते ही पहचान गए कि ये दोनों श्रीराम और सीताजी के पुत्र हैं. पर हनुमान जी ने सब-कुछ जानते हुए भी किसी को कुछ नहीं बताया था, क्योंकि वे समझ गए थे कि यह सब क्या चल रहा है.

भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की यह विशेषता है कि वे अपने जिस भक्त से प्रेम करते हैं, उसमें अहंकार नहीं देख सकते.

जब शत्रुध्न जी लवणासुर को मारने के लिए मथुरा जा रहे थे, तब जिस दिन वे वाल्मीकि आश्रम में रुके थे, उसी दिन लव-कुश का जन्म हुआ था. दरअसल, श्रीराम ने जानबूझकर शत्रुध्न जी को वाल्मीकि आश्रम में रुककर वाल्मीकि जी का आशीर्वाद लेने के लिए कहा था, ताकि वे चाचा के रूप में लव-कुश का जातकर्म संस्कार कर सकें.

सीता जी ने अंत में प्रतिज्ञा श्रीराम को विश्वास दिलाने के लिए नहीं, बल्कि उन मूर्ख लोगों का मुंह बंद करवाने के लिए ली थी. सीता जी को तो श्रीराम से पहले जाना ही था, तो वे दोनों यह लीला करके गए.

श्रीराम और सीता जी ने अपनी इस लीला से समाज को यह दिखा दिया कि जो लोग किसी नारी के सम्मान की रक्षा नहीं करते, या उसके अधिकारों की रक्षा नहीं करते, या किसी नारी के चरित्र पर उंगली उठाते हैं, या उससे उसकी पवित्रता का प्रमाण मांगते हैं, वे लोग महामूर्ख होते हैं और केवल दूसरों के हँसे-भरे जीवन में आग लगाते हैं. उन लोगों को बाद में सिर्फ पछताना ही पड़ता है. सिवाय पश्चाताप करने के और कुछ नहीं रह जाता.

सोच-समझकर करें प्रतिज्ञा या दावा

इस लीला के माध्यम से उन्होंने यह भी बताया है कि अच्छे लोगों को कोई भी कठिन प्रतिज्ञा सोच-समझकर लेनी चाहिए, या अपने बारे में कोई भी कठिन दावा करने से पहले एक बार जरूर सोच लेना चाहिए, क्योंकि फिर उसकी परीक्षा भी देनी पड़ सकती है. समय मनुष्य के संकल्पों की परीक्षा अवश्य लेता है.

जैसे राजा हरिश्चंद्र और उनकी पत्नी ने यह प्रतिज्ञा की थी कि ‘हम सब-कुछ छोड़ देंगे, पर सत्य का मार्ग नहीं छोड़ेंगे’. इसके बाद उन दोनों को इतनी कठिन परीक्षा देनी पड़ी, जैसी परीक्षा शायद ही किसी राजा की हुई हो कि कठिन परिस्थियों में वे अपने दावे पर टिके रह पाते हैं या नहीं.

इसी प्रकार, श्रीराम और सीता जी ने अपने राज्याभिषेक के समय यह प्रतिज्ञा ली थी कि ‘प्रजा को हम अपनी संतान की तरह प्रेम देंगे और प्रजा के सुख के लिए हम अपने सुख का बलिदान करने से कभी पीछे नहीं हटेंगे’. तो परीक्षा श्रीराम और सीता जी ने भी दी.

दरअसल, हम लोगों की एक बड़ी कमी यही रहती है कि हम भगवान जी की लीलाओं के रहस्यों को न जानकर, केवल ऊपरी बातों में ही उलझकर उनमें कमी निकालते हैं और कुतर्क करते रहते हैं.

खैर, श्रीराम और सीता जी की लीला और रहस्य तो केवल श्रीराम और सीता जी ही जान सकते हैं, लेकिन इन सब बातों से हमें यह जरूर पता चलता है कि यदि राजा श्रीराम जैसा भी हो, तो भी पूरी प्रजा को संतुष्ट कभी नहीं किया जा सकता है. प्रजा में कुछ ऐसे लोग होते ही हैं जो मूर्खतावश या अपने निजी स्वार्थ के लिए किसी न किसी बात पर झूठ के आधार पर अपना मत बना लेते हैं.

difference between valmiki ramayana and ramcharitmanas, valmiki ramayana, tulsidas ramcharitmanas, ramayana and ramcharitmanas difference, वाल्मीकि रामायण और तुलसीदास जी की रामचरितमानस में अंतर

अब रामचरितमानस की अन्य चौपाइयों पर भी ध्यान दें-

तुलसीदास जी ने बताया है कि संसार में रामकथा की कोई सीमा नहीं है. अनेक प्रकार से श्रीराम के अवतार हो चुके हैं और सौ करोड़ से भी अधिक रामायण हैं. कल्पभेद के अनुसार श्रीहरि के चरित्रों को अनेक प्रकार से गाया गया है.

रामकथा कै मिति जग नाहीं।
नाना भाँति राम अवतारा।
रामायन सत कोटि अपारा॥

♦ तुलसीदास जी ने (संसार में) मूल रामायण का रचियता वाल्मीकि जी को ही बताते हुए उनकी चरण वंदना की है.

बंदउँ मुनि पद कंजु रामायन जेहिं निरमयउ।

“मैं उन वाल्मीकि मुनि के चरण कमलों की वंदना करता हूँ, जिन्होंने रामायण की रचना की है.”

सीतारामगुणग्रामपुण्यारण्यविहारिणौ।
वन्दे विशुद्धविज्ञानौ कवीश्वरकपीश्वरौ॥

“श्री सीतारामजी के गुणसमूह रूपी पवित्र वन में विहार करने वाले, विशुद्ध विज्ञान सम्पन्न कवीश्वर श्री वाल्मीकि जी और कपीश्वर श्री हनुमान जी की मैं वन्दना करता हूँ.”

रचि महेस निज मानस राखा।
पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा॥
तातें रामचरितमानस बर।
धरेउ नाम हियँ हेरि हरषि हर॥

“महादेवजी ने इसकी रचना कर अपने मन में रखा था और सही अवसर पाकर पार्वतीजी से कहा. इसी से शिवजी ने इस रचना को अपने हृदय में देखकर और प्रसन्न होकर इसका सुंदर ‘रामचरित मानस’ नाम रखा. मैं उसी सुख देने वाली सुहावनी रामकथा को कहता हूँ.”

सपनेहुँ साचेहुँ मोहि पर जौं हर गौरि पसाउ।
तौ फुर होउ जो कहेउँ सब भाषा भनिति प्रभाउ॥

“यदि श्री शिवजी और पार्वतीजी स्वप्न में भी मुझ पर सचमुच प्रसन्न हों, तो मैंने इस भाषा कविता (रामचरितमानस) का जो प्रभाव कहा है, वह सब सच हो.”

सप्त प्रबंध सुभग सोपाना।
“सात काण्ड ही इस मानस सरोवर की सुंदर सात सीढ़ियाँ हैं” (यानी तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस में सात सोपान या सात काण्ड ही हैं).

वाल्मीकि रामायण में ‘रामदरबार में कुत्ते को न्याय’ और ‘शम्बूक वध’ को “प्रक्षिप्त सर्ग” (मिलाया हुआ सर्ग) ही लिखा जाता है. ये दोनों सर्ग आधुनिक काल में एक खास वर्ग के लोगों के बीच क्षेपक कथाओं में शामिल थे, जिसे आज के पुस्तक प्रकाशकों ने वाल्मीकि रामायण का ही हिस्सा बना दिया.

• जैसे आपको मालूम होगा कि इतिहास में कुछ ऐसे लोगों ने भी “रामायण” नाम से किताबें लिखीं हैं, जो जीवन भर चीखते रहे कि “राम काल्पनिक हैं”. फिर भी इन लेखकों ने “रामायण” नाम से गंदी बातें लिखकर कहा कि “राम की ये बातें वाल्मीकि और तुलसीदास ने जानबूझकर छिपा ली थीं, लेकिन हम बता रहे हैं”.
अब समझ ही नहीं आता कि जब इन लोगों की नजर में राम-हनुमान आदि हैं ही नहीं, तो इन लेखकों को श्रीराम की छिपी हुई बातें किसने आकर बता दी थीं?

वाल्मीकि रामायण और तुलसीदास जी की रामचरितमानस में अंतर

सीता जी की अग्नि परीक्षा

सीता जी का त्याग और शम्बूक की हत्या..

भगवान श्रीराम द्वारा बाली का वध (क्यों और कैसे)

भगवान श्रीराम ने क्यों की थी रामेश्वर शिवलिंग की स्थापना और पूजा

क्या लक्ष्मण जी ने 14 वर्षों तक कुछ नहीं खाया था?


Tags : lav kush kand in ramcharitmanas, ram ne sita ko kyon chhoda tha, ram ne sita ko kyon tyag diya, ram ne sita ko vanvas kyon diya, sita ne ayodhya kyon chhod di thi, valmiki ramayan ka uttar kand, sita ko vanvas kyon hua, love kush, luv kush, भगवान राम ने माता सीता को वनवास क्यों दिया



Copyrighted Material © 2019 - 2024 Prinsli.com - All rights reserved

All content on this website is copyrighted. It is prohibited to copy, publish or distribute the content and images of this website through any website, book, newspaper, software, videos, YouTube Channel or any other medium without written permission. You are not authorized to alter, obscure or remove any proprietary information, copyright or logo from this Website in any way. If any of these rules are violated, it will be strongly protested and legal action will be taken.



About Niharika 255 Articles
Interested in Research, Reading & Writing... Contact me at niharika.agarwal77771@gmail.com

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*