Shiv Sankalp Sukta : शिवसंकल्पसूक्त और श्रेष्ठ व शुभ संकल्प की शक्ति

bhagwan shiv non veg, shiva mahimna stotram lyrics, shiv sankalp sukta yajurveda, bhagwan shiv, bhagwan ki kahani katha hindu devi devta ki story
भगवान शिव

Shiv Sankalp Sukta (Yajurveda)

शिवसंकल्पसूक्त (Shivsankalpsukta) शुक्ल यजुर्वेद का अंश (अध्याय ३४, मंत्र १-६) है. इसे शिवसङ्कल्पोपनिषत् या शिवसंकल्प उपनिषद (Shiv Sankalpa Upanishad) के नाम से भी जाना जाता है. इस सूक्त में छः मंत्र हैं, जिनमें मन को अपूर्व सामर्थ्यों से युक्त बताकर उसे श्रेष्ठ, शुभ एवं कल्याणकारी संकल्पों से युक्त करने की प्रार्थना की गई है.

ॐ यज्जाग्रतो दूरमुदैति दैवं तदु सुप्तस्य तथैवैति।
दूरंगं ज्योतिषां ज्योतिरेकं तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु।।

हे प्रभु! जागृत और सुप्तावस्था अवस्था में जो मन दूर-दूर तक चला जाता है, वही मन इन्द्रियों रूपी ज्योतियों की एकमात्र ज्योति है (अर्थात् इन्द्रियों को प्रकाशित करने वाली एक ज्योति है, या जो मन इन्द्रियों का प्रकाशक है), ऐसा मेरा मन शुभ और कल्याणकारी संकल्पों से युक्त हो (मेरा मन अच्छे विचारों से युक्त हो).

ॐ येन कर्मण्यपसो मनीषिणो यज्ञे कृण्वन्ति विदथेषु धीराः।
यदपूर्वं यक्षमन्तः प्रजानां तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु।।

जिस मन से कर्मनिष्ठ एवं प्रज्ञावान मनुष्य यज्ञादि कर्तव्य-कर्म करते हैं, धीर और गम्भीर मनुष्य विचार-विमर्श एवं विज्ञान आदि से सम्बंधित कर्म करते हैं, जो (मन) अपूर्व है और सबके अंतःकरण में विद्यमान है, ऐसा मेरा मन शुभ एवं कल्याणकारी संकल्पों से युक्त हो!

ॐ यत्प्रज्ञानमुत चेतो धृतिश्च यज्ज्योतिरन्तरमृतं प्रजासु।
यस्मान्न ऋते किंचन कर्म क्रियते तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु।।

जो मन प्रखर ज्ञान से संपन्न, चेतना से युक्त एवं धैर्यशील है (जिस मन में ज्ञान, शक्ति, चिन्तनशक्ति, धैर्य-शक्ति स्थित है), जो सभी प्राणियों के अंतःकरण में अमर प्रकाश-ज्योति के रूप में विद्यमान है, जिसके बिना कोई भी कर्म करना संभव नहीं (यही मन व्यक्ति को कर्म करने की प्रेरणा देता है), ऐसा मेरा मन श्रेष्ठ और कल्याणकारी संकल्पों से युक्त हो.

ॐ येनेदं भूतं भुवनं भविष्यत्परिगृहीतममृतेन सर्वम्।
येन यज्ञस्तायते सप्तहोता तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु।।

जिस मन से भूत, भविष्य एवं वर्तमान- तीनों कालों का प्रत्यक्षीकरण होता है (जिसमें सभी कालों का ज्ञान निहित है. भूत, भविष्य और वर्तमान काल जो कुछ होता है, वह इसी मन द्वारा ग्रहण किया जाता है, पांच ज्ञानेन्द्रियों और अहंकार तथा बुद्धि द्वारा जो जीवन यज्ञ चल रहा है), जिसके द्वारा सप्तहोता यज्ञ का विस्तार करते हैं (शुद्ध तथा पापरहित मन वाले व्यक्तियों द्वारा ही यज्ञों का विस्तार, शुभ कर्मों का प्रसार किया जा सकता है), ऐसा मेरा मन शुभ एवं कल्याणकारी संकल्पों से युक्त हो!

ॐ यस्मिन्नृचः साम यजूंषि यस्मिन् प्रतिष्ठिता रथनाभाविवाराः।
यस्मिंश्चित्तं सर्वमोतं प्रजानां तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु।।

जिस मन में वैदिक ऋचाएं, सामवेद और यजुर्वेद के मंत्र इस प्रकार प्रतिष्ठित हैं, जैसे रथ के पहिये में `अरे` लगे होते हैं तथा जिस मन में प्रजाजनों का सकल ज्ञान समाहित है (सब बुद्धिमान् लोग इसी से मनन करते हैं), ऐसा शक्तिशाली मेरा मन शुभ एवं कल्याणकारी संकल्पों से युक्त हो!

ॐ सुषारथिरश्वानिव यन्मनुष्यान्नेनीयतेऽभीशुभिर्वाजिन इव।
हृत्प्रतिष्ठं यदजिरं जविष्ठं तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु।।

जैसे एक कुशल सारथी लगाम के नियंत्रण से घोड़ों को संचालित करके गंतव्य तक ले जाता है, उसी प्रकार सधा हुआ मन (वश में किया हुआ मन) मनुष्य को लक्ष्य तक पहुंचाता है (वश में किया हुआ मन मनुष्यों को अभीष्ट स्थान पर ले जाता है). मन अतिस्फूर्तिवान् और सर्वाधिक वेगवान् अश्व के समान होता है. ऐसा तेज और द्रुतगामी मन, जो हृदयस्थ है, जो कभी बूढ़ा नहीं होता, वह मेरा मन श्रेष्ठ एवं कल्याणकारी संकल्पों से युक्त हो.


मन

man ki shaktiyan, swami vivekananda, mantr jaap, yoga history in india in hindi, yoga ka itihas aur vikas, pm modi international yoga day, योग का इतिहास और विकास, योग के फायदे और महत्व, योग पर निबंध, योग का अर्थ

भारतीय वाङ्गमय में मन एवं उसके निग्रह पर मनीषियों ने बहुत कुछ कहा है. शिवसंकल्पसूक्त का सम्बन्ध भी मन से है. शिवसंकल्पसूक्त मन या चित्त को शुद्ध करने के उद्देश्य से ईश्वर से की गई प्रार्थना है. अपनी प्रार्थनाओं में वैदिक ऋषि कहते हैं कि वह उन्हें शारीरिक तथा वाचिक (वाणी सम्बन्धी) ही नहीं, बल्कि मानसिक पापों से भी बचाकर रखें. उनके मन में उठने वाले संकल्प श्रेष्ठ हों, क्योंकि मनुष्य का मन अपूर्व क्षमतावान् है, उसमें जो संकल्प जाग जाएं, उनसे उसे विमुख करना बहुत कठिन है. इसीलिए ऋषियों द्वारा मन को श्रेष्ठ संकल्पों से युक्त रखने की प्रार्थना की गई है.

जीव ईश्वर का ही व्यष्टि रूप है, अत: वह सदा संकल्प अथवा इच्छा-शक्ति के साथ जन्म लेता है. अंतर यह है कि ईश्वर सर्वज्ञ है और जीव अल्पज्ञ. ईश्वर-प्राप्ति कृपा-साध्य है, क्रिया-साध्य नहीं, और मन को शुद्ध किए बिना ईश्वर की प्रसन्नता कहाँ?

भगवान् श्रीराम विभीषण से कहते हैं कि-

निर्मल मन जान सो मोहि पावा।
मोहि कपट छल छिद्र न भावा।।

हमारा मन अत्यंत शक्तिशाली है. वह सदा गतिमान रहता है और कितनी ही दूर तक जा सकता है. प्रबल क्षमताओं से युक्त है. मन को छठी इन्द्रिय कहा गया है और यह छठी इन्द्रिय अन्य इन्द्रियों से कहीं अधिक प्रचण्ड या शक्तिशाली है. मन इन्द्रियों का प्रकाशक है. यही मन मनुष्य को कर्म करने की प्रेरणा देता है.

हमारे कर्म और आचरण वैसे ही होते हैं, जैसा हमारा मन होता है. मनुष्य के संकल्प में यह अपूर्व और अद्भुत शक्ति है कि वह जिस प्रकार की भावना करता है, वैसा ही बन जाता है (हम जैसा सोचते रहते हैं, वैसे ही बन जाते हैं). अपने संकल्प के अनुसार कर्म करता हुआ मनुष्य अपना संसार भी वैसा ही रच लेता है. अतः मन का सही दिशा में भागना, लक्ष्य की ओर ही भागना बहुत आवश्यक है.

“मनुष्य के द्वारा जो कुछ होता है, वह उसके मन द्वारा ही होता है. जिसके द्वारा कार्य होता है, वही एजेंसी यदि बिगड़ी हुई हो, तो सारा काम बिगड़ जाता है. आँखें तो अच्छी और सुन्दर हैं, पर मन खराब है, तो देखने का काम अच्छा नहीं होगा. इस प्रकार यद्यपि कर्म तो इन्द्रियों द्वारा होता है, फिर भी कर्म का अच्छा या बुरा होना मन पर निर्भर करता है. इसलिये मन क्या है, कैसा है, यह देखना और उसका परीक्षण करना बहुत आवश्यक है.” (-आचार्य विनोबा भावे)

स यत्कृतर्भवति तत्कर्म कुरुते,
यत्कर्म कुरुते तदभिसम्पद्यते।
(बृहदारण्यक उपनिषद्)

अर्थात् कर्म का आधार मन में उठने वाले विचार हैं. मनुष्य जैसा संकल्प करने लगता है, वैसा ही आचरण करता है और जैसा आचरण करता है, वैसा ही बन जाता है. श्रेष्ठ ऋषि-मुनि, योगी एवं तपस्वी जन सर्वोत्तम या श्रेष्ठ संकल्प की शक्ति से ब्रह्मविद्या प्राप्त कर ब्रह्म से एकमेक हो जाते हैं. तब उनकी वाणी भी ब्रह्मवाणी बन जाती है.

ancient indian gurukul system, ashrama system in vedic period, ashrama system in ancient india upsc, importance of ashrama system in points, ashram system in sociology pdf, rishi ashram in ancient india gurukul system vedic period, rishi ashram images

मन की शक्ति

हमारा मन दूर-दूर तक गमन करता है. सदैव गतिशील रहना उसका स्वभाव है और यह इतनी प्रबल क्षमताओं से युक्त है कि उसकी गति की कोई सीमा भी नहीं है. वेगवान पदार्थों में वह सबसे अधिक वेगवान है. उसे किसी आधार की आवश्यकता नहीं होती. यही मन मनुष्य को कोई भी कर्म करने की प्रेरणा देता है.

यजुर्वेद में मन के नियंत्रक देवता को ‘मनस्पत:’ कहा गया है. मन के द्वारा सभी इन्द्रियां अपने-अपने विषय का ज्ञान ग्रहण करती हैं. यही मन एक गृहस्थ को कर्मठ बनाता है और उसे नीति से जीविकोपार्जन की बुद्धि देता है. यही मन एक संन्यासी को विषयों से दूर रखता है, जिससे वह सद्चिन्तन में लगा रहे और विकारों की उत्पत्ति से बचा रहे. तब ही संन्यासी तपस्या, संध्या, पूजा आदि सत्कर्मों का करने के योग्य बन पाता है.

मन प्रखर ज्ञान से संपन्न है. मन के शांत होने पर मन को अद्भुत बल मिलता है. मन लौकिक व अलौकिक बातों का ज्ञान रखता है. क्या स्वीकार करना है और क्या त्यागना है, इन सबका निर्णय लेता है. स्वस्थ मन ही ईश्वर से ‘असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मामृतं गमय’ की प्रार्थना कर सकता है. शरीर की शक्ति से मन की शक्ति कई गुना अधिक है. इसी कारण शिवसंकल्पसूक्त में मन को प्रखर ज्ञान, चेतना एवं धृति से युक्त कहा गया है.

श्रेष्ठ संकल्प की शक्ति, अच्छे मन की शक्ति

प्रत्येक मनुष्य को जिस प्रकार स्थूल अस्तित्व के रूप में शरीर मिला है, उसी प्रकार सूक्ष्म अस्तित्व के रूप में उसे मन मिला है तथा कारण अस्तित्व के रूप में आत्मा प्राप्त हुई है. पतंजलि योगसूत्र के अनुसार, सभी मनुष्यों को भौतिक अस्तित्व के रूप में शरीर तथा मानसिक अस्तित्व के रूप में मन मिला हुआ है.

“सर्वेषां संकल्पानां मन एकायनम्”, हमारा मन सभी संकल्पों का आश्रय है. शुद्ध और पापरहित मन वाले व्यक्ति न केवल अच्छे संकल्प ही करते हैं, बल्कि शीघ्र से शीघ्र उन्हें पूर्ण करने के साधन भी जुटाते हैं. मन की शुद्ध एवं शांत स्थिति ही स्वस्थ चिंतन एवं नवोन्मेष के लिए नयी दृष्टि-सीमायें बनाती हैं.

उत्तम या श्रेष्ठ सारथी है मन

मन को उत्तम या श्रेष्ठ सारथी कहा गया है. मन को जरारहित (बुढ़ापा रहित) एवं अतिवेगशील भी कहा गया है. जिस वस्तु में आसक्ति सबसे अधिक होती है, मन वहीं तेजी से ले जाता है. यदि मन सधा हुआ न हो, या मन हमारे आधीन न हो, और हम ही मन के आधीन हो चुके हों, तो यही मन मनुष्य को बड़ी तेज गति से विषयों के मोहक मार्ग पर भटकाकर कर्त्तव्यों से विमुख कर देता है और लक्ष्य प्राप्ति में भी बाधक बन जाता है. वहीं, सही तरीके से सधा हुआ मन सन्मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति के लिए कुछ भी असम्भव नहीं रहने देता. वह कुछ भी प्राप्त करने में सक्षम हो जाता है.

“प्रत्येक व्यक्ति इस भौतिक शरीर रूपी रथ पर सवार है और बुद्धि इस रथ का सारथी है. मन लगाम है तथा इन्द्रियाँ घोड़े हैं. इस प्रकार मन एवं इन्द्रियों की संगति से यह आत्मा सुख-दुःख का अनुभव करती है.” (भगवद्गीता ६.३४)

यदि लगाम ढीली छोड़ दी जाये तो, घोड़ा अपने सवार को गिरा सकता है या उसे भटका सकता है. अतः कुशल सारथी लगाम को कसकर रखता है. विवेकशील जन मन को वश में रखते हैं और विवेकहीन, मंदबुद्धि लोग मन के ही आधीन हो जाते हैं. उनका अपने मन पर ही कोई नियंत्रण नहीं होता.

मन को नियंत्रण में रखने वाला ही वास्तव में कुशल और उत्तम सारथी है. वह सही दिशा में ले जाये, उसी में जीवन का श्रेय है, नहीं तो अधोगति भी वही मन करता है. जैसे अनियंत्रित और घोड़ा अपने सवार को नीचे गिरा देता हैं, वैसे ही अनियंत्रित और स्वेच्छाचारी मन मनुष्य को पतन के गर्त में गिरा देता है. इसीलिए वैदिक ऋषियों ने ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा है कि हमारा मन श्रेष्ठ व कल्याणकारी संकल्पों से युक्त हो.

क्या हमारा ज्ञान कल्याणकारी है?

मन के द्वारा ही समय को, तीनों कालों को जाना जाता है. भूत, भविष्य और वर्तमान काल जो कुछ होता है, वह इसी मन द्वारा ग्रहण किया जाता है. इस मन के भीतर ही मनुष्य के जन्मजन्मांतर का ज्ञान समाहित है. धीर-गंभीर प्रतिभाशाली लोग विज्ञान आदि की नवीन खोजें स्वस्थ और सधे हुए मन से करते हैं. ज्ञान-विज्ञान के ऐसे सभी कर्मों के पीछे मन की दृढ़ संकल्प-शक्ति होती है, तब ही यह सब संभव होता है.

मन संपूर्ण ज्ञान को अपने भीतर समाहित किये हुए है, लेकिन उस ज्ञान के सकारात्मक उपयोग से ही विश्व का कल्याण संभव हो सकता है. हमारा ज्ञान और हमारी बुद्धि कल्याणकारी है या नहीं, यह हमारे मन पर ही निर्भर करता है.

पृथ्वी को नुकसान पहुंचाने वाले यंत्रों की खोज करने वाले, मानव बमों द्वारा विनाश की विभीषिका से विश्व और मानवता को दहला देने वाले लोगों के पास भी ज्ञान की कमी नहीं है, कमी है तो अच्छे भावों की, कमी है तो कल्याण-कामना की. ऐसे लोग अपने विनाशक संकल्पों से मानवता को केवल हानि ही पहुंचाते रहे हैं.

इसीलिए वैदिक ऋषियों ने ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा है कि हमारा मन श्रेष्ठ व कल्याणकारी संकल्पों से युक्त हो. अच्छे संकल्प मनुष्य की इच्छा को सदिच्छा (सद्+इच्छा) का रूप देकर उसे अपने और दूसरों के प्रति कल्याणकारी कर्मों की ओर लगाते हैं.

guru purnima kab hai, guru kise kahate hain, guru kaun hota hai, गुरु पूर्णिमा कब है, गुरु किसे कहते हैं, सच्चा गुरु कौन होता है

विशुद्ध मन में ही हो सकता है विशुद्ध ज्ञान

विशुद्ध या सत्य ज्ञान केवल विशुद्ध मन में ही स्थित हो सकता है, विकारयुक्त मन में नहीं. साधक मन और इन्द्रियों को वश में करके उन्हें आतंरिक उत्थान में लगाकर आध्यात्मिक उन्नति करता है और विराट चेतना अर्थात् ईश्वर से सम्बन्ध जोड़ता है. मन को वश में किए हुए मनस्वी जब अहम् भाव से मुक्त हो जाते हैं तो ज्ञान की समस्त पूँजी को अपने अंतःकरण में पा लेते हैं, लेकिन यह सब मन की विशुद्ध अवस्था पर निर्भर करता है.

मन में विकारों के आ जाने पर तमस और अज्ञान का आवरण ज्ञान व उसके प्रकाश को ढक लेता है. मन में विकार का मुख्य कारण है मैले या गंदे विचार, क्योंकि व्यक्ति जैसा चिंतन करता है, वैसा ही आचरण भी करने लगता है. इसीलिए आध्यात्मिक जीवन में विचार और चिंतन की शुचिता पर विशेष बल दिया जाता है.

भगवद्गीता में भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा है कि-

ध्यायतो विषयान्पुंसः संगस्तेषूपजायते।
(२/५९)

अर्थात् विषयभोगों का रागपूर्वक चिंतन करने से इन विषयों में आसक्ति उत्पन्न हो जाती है.

लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणमृषयः क्षीणकल्मषाः।
छिन्नद्वैधा यतात्मनः सर्वभूतहिते रताः।।
(अध्याय ५ | २५)

अर्थात् पापों से रहित, सम्पूर्ण प्राणियों के हित में लगे हुए तथा जीते हुए मन-इन्द्रियों वाले विवेकी साधक ही ब्रह्मनिर्वाण को प्राप्त होते हैं.

इस प्रकार भारतीय संस्कृति में सर्वत्र मन की पवित्रता और निर्मलता पर बल दिया गया है, क्योंकि यह उत्तम और श्रेष्ठ ज्ञान का साधन है. और इसीलिए वैदिक ऋषियों ने ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा है कि हमारा मन श्रेष्ठ व कल्याणकारी संकल्पों से युक्त हो.

mahabharat kab hua tha date kalyug kab start hua, mahabharat ka yuddh kyon hua, महाभारत की ऐतिहासिकता : कब हुआ था महाभारत का युद्ध?

Credit With : Dr. Mrs. Kiran Bhatia


Read Also :

मंत्र शक्ति का विज्ञान

मन की शक्तियां और जीवन गठन की साधनाएं

मंत्र साधना के नियम और विधि



Copyrighted Material © 2019 - 2024 Prinsli.com - All rights reserved

All content on this website is copyrighted. It is prohibited to copy, publish or distribute the content and images of this website through any website, book, newspaper, software, videos, YouTube Channel or any other medium without written permission. You are not authorized to alter, obscure or remove any proprietary information, copyright or logo from this Website in any way. If any of these rules are violated, it will be strongly protested and legal action will be taken.



About Sonam Agarwal 238 Articles
LLB (Bachelor of Law). Work experience in Mahendra Institute and National News Channel (TV9 Bharatvarsh and Network18). Interested in Research. Contact- sonagarwal00003@gmail.com

1 Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*