सूर्य : जानिए हमारे सौर परिवार के मुखिया के बारे में, हम सब के जीवन को कैसे करता है प्रभावित?

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Sun in Universe

Sun Facts in Hindi

विज्ञान हो या धर्म, पृथ्वी पर सूर्य (Sun) का महत्व हमेशा से ही सबसे ज्यादा रहा है, क्योंकि सूर्य के बिना पृथ्वी पर जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती. पृथ्वी की सभी ऊर्जा का स्रोत सूर्य ही है. पृथ्वी पर जलवायु, मौसम और पेड़-पौधे सूर्य से ही हैं. इसीलिए हमारे धर्म ग्रंथों में सूर्य की पूजा और सूर्य नमस्कार आदि को इतना महत्व दिया गया है. कहते हैं कि इंसान अलग-अलग स्रोतों से जितनी शक्ति पूरे 10 लाख सालों में प्राप्त कर पाता है, उतनी शक्ति सूर्य से पृथ्वी को केवल 1 दिन में ही मिल जाती है. असीम ऊर्जा का यह भंडार पृथ्वी पर मौजूद सभी तरह के जीवों के स्वास्थ्य और जीवन को प्रभावित करता है.

सूर्य ही है सौरमंडल की सभी ऊर्जा का मुख्य स्रोत

सूर्य करीब पांच अरब सालों से चमकता आ रहा है और अरबों सालों तक चमकता रहेगा. हमारे सौर परिवार या सौरमंडल (Solar System) में सबसे प्रमुख स्थान सूर्य का ही है. सूर्य सौरमंडल की सभी तरह की ऊर्जा का मुख्य स्रोत है. वैज्ञानिकों के अनुसार, पूरे सौरमंडल के पदार्थों का लगभग 99.9 प्रतिशत भाग केवल सूर्य से ही बना है.

सूर्य के गुरुत्वाकर्षण बल (Gravitational force) के कारण ही सौरमंडल के सभी ग्रह, उपग्रह और अन्य पिंड उससे बंधे हुए हैं और उसके चारों तरफ परिक्रमा करते रहते हैं. यानी सौर परिवार के सभी सदस्यों की गति मुख्य रूप से सूर्य के गुरुत्वाकर्षण बल के द्वारा ही नियंत्रित (कंट्रोल) रहती है, इसीलिए सूर्य को सभी ग्रहों का राजा (King of planets) कहा जाता है.

पृथ्वी से 15 करोड़ किलोमीटर दूर है सूर्य

सूर्य सौरमंडल के केंद्र में है और यही सौरमंडल का सबसे बड़ा पिंड (Largest Body in Solar System) है. सूर्य का व्यास (Diameter) करीब 13 लाख 92 हजार 700 किलोमीटर है, जो पृथ्वी से लगभग 109 गुना ज्यादा है. पृथ्वी की तुलना में सूर्य का द्रव्यमान (Mass) लगभग 3 लाख 53 हजार गुना ज्यादा है. सूर्य पृथ्वी के सबसे निकट का तारा है.

सूर्य पृथ्वी से 14 करोड़ 95 लाख 98 हजार 900 किलोमीटर दूर है. 3 लाख किलोमीटर प्रति सेकंड की तेज रफ्तार से चलते हुए सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक पहुंचने में 8 मिनट 20 सेकंड का समय लगता है. जबकि पृथ्वी के दूसरे नजदीकी तारे प्रॉक्सिमा सेंचुरी (Proxima Century) से प्रकाश को पृथ्वी तक पहुंचने में करीब 4.22 साल लग जाते हैं.

धरती तक सूर्य की जितनी ऊर्जा पहुंचती है, उसमें से करीब 30 प्रतिशत ऊर्जा बीच में ही समाप्त हो जाती है. सूर्य से निकली ऊर्जा का एक बहुत छोटा सा हिस्सा ही पृथ्वी तक पहुंच पाता है, उसमें से भी 15 प्रतिशत अंतरिक्ष में चला जाता है, 30 प्रतिशत हिस्सा पानी को भाप बना देता है और बाकी ऊर्जा पेड़-पौधों और समुद्र द्वारा सोख ली जाती है.

25 करोड़ सालों में लगा पाएगा आकाशगंगा का एक चक्कर

पृथ्वी की तरह ही सूर्य भी अपनी धुरी या अक्ष (Axis) पर घूमता रहता है. सूर्य को 196 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से अपनी धुरी पर एक चक्कर लगाने में करीब 25 दिन, 7 घंटे और 48 मिनट का समय लगता है. सूर्य अपने अक्ष पर 7 डिग्री झुका हुआ है (जैसे पृथ्वी अपनी धुरी पर 23.5 डिग्री झुकी हुई है) और पश्चिम से पूर्व दिशा की तरफ घूर्णन (Rotate) करता है.

इसी के साथ, सूर्य लगभग 5,15,000 मील प्रति घंटे (8,28,000 किलोमीटर प्रति घंटे) की रफ्तार से दौड़ लगाते हुए हमारी आकाशगंगा मिल्की-वे (Milky Way Galaxy) के केंद्र की परिक्रमा कर रहा है. सूर्य आकाशगंगा के केंद्र से करीब 28,000 प्रकाश वर्ष दूर है. सूर्य को मिल्की-वे के केंद्र की एक परिक्रमा पूरी करने में लगभग 230 मिलियन वर्ष लग जाते हैं.

दरअसल, हमारी आकाशगंगा मिल्की-वे (Milky Way galaxy) के सेंटर में एक ब्लैक होल (Black Hole) है, जिसका नाम ‘धनु A’ या ‘सेजिटेरियस A’ (Sagittarius A) है. इस ब्लैक होल का द्रव्यमान सूर्य से चार मिलियन गुना ज्यादा है और इसका रेडियस (त्रिज्या) लगभग 12 करोड़ किलोमीटर है. हमारा सूर्य इसी ब्लैक होल की परिक्रमा कर रहा है. यानी हमारा पूरा सौरमंडल ही इस ब्लैक होल की परिक्रमा कर रहा है.

कब, कैसे और किन-किन चीजों से मिलकर बना है सूर्य?

वैज्ञानिकों के अनुसार, सूर्य गैसों से बना एक गोला है. इसमें 71 प्रतिशत हाइड्रोजन, 26 प्रतिशत हीलियम और 2.5 प्रतिशत अन्य तत्व- जैसे ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बन, लोहा, निकल, सिलिकॉन, सल्फर, मैग्निशियम, कैलशियम, क्रोमियम आदि पाए जाते हैं. वैसे, तारों का निर्माण ही मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम गैस से होता है. आकाशगंगा में मौजूद हाइड्रोजन और हीलियम गैसों के घने बादलों के इकट्ठा होने के साथ ही तारों का जीवन चक्र भी शुरू हो जाता है.

चूंकि, सूर्य भी एक तारा (Star) है इसलिए सूर्य का निर्माण भी करीब 4.57 अरब साल पहले एक सामान्य तारे की तरह ही हुआ है. वैज्ञानिकों के अनुसार, सूर्य अभी अपनी शुरुआती अवस्था में है. करोड़ों सालों से इसमें कोई विशेष बदलाव नहीं हुआ है और अभी आगे भी नहीं होगा. लेकिन आज से लगभग 5,000 मिलियन साल बाद यह बड़ा होते-होते और फैलते-फैलते एक ‘रेड ज्वाइंट तारा’ (Red Giant Star) बन जाएगा. इतना बड़ा तारा, जो अपने आसपास के सभी ग्रहों को भी निगल सकता है. इस दौरान सूर्य की चमक लगभग दोगुनी हो जाएगी.

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सूर्य का 25वां सोलर साइकिल शुरू

पिछले साल NASA ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि सूर्य का 25वां सोलर साइकिल शुरू हो चुका है. आसान शब्दों में कहें तो सूर्य अपना 25वां जन्मदिन (1/4) मना रहा है. वैज्ञानिक अनुमान लगा रहे हैं कि आने वाले सालों में पृथ्वी पर सौर तूफान की संभावना काफी बढ़ सकती है. दरअसल, पिछले सालों में सूरज की रोशनी थोड़ी कम पड़ गई थी. उसकी सतह पर किसी तरह की हलचल नहीं हो रही थी. लेकिन अब जब सूरज का नया साइकिल शुरू हो गया है, तो अब वह तेज रोशनी, आग की लपटें और तेज ऊर्जा अंतरिक्ष में फेंकेगा. यह सूरज की एक सामान्य प्रक्रिया है.

सूर्य के अंदर क्या है?

सूर्य के केंद्र में नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion) होता रहता है और इसी से सूर्य में इतनी ऊर्जा (एनर्जी) बनती रहती है. एक स्टडी के अनुसार, सूर्य के केंद्र का लगभग 40 लाख टन से ज्यादा पदार्थ हर सेकेंड ऊर्जा में बदला है. इस दर से सूर्य अब तक लगभग 100 पृथ्वी के द्रव्यमान के बराबर पदार्थ ऊर्जा में बदल चुका है. सूर्य के केंद्रीय भाग को ‘क्रोड’ (Core) कहते हैं, जिसका तापमान 1.5*10 की पावर 7 डिग्री सेल्सियस होता है.

जानिए- सूर्य या तारे कैसे बनते हैं (तारों का जीवन चक्र)

प्रकाशमंडल, वर्णमंडल और कोरोना

सूर्य का चमकता हुआ भाग जो हमें दिखाई देता है, उसे प्रकाशमंडल (Photosphere) या सूर्य की सतह कहते हैं. इसका तापमान 6,000 डिग्री सेल्सियस होता है. प्रकाशमंडल के किनारों पर प्रकाश नहीं होता, क्योंकि सूर्य का वायुमंडल, जिसे वर्णमंडल (Chromosphere) भी कहते हैं, प्रकाश को सोख लेता है.

सूर्य के वायुमंडल या वर्णमंडल की शुरुआत प्रकाशमंडल (सूर्य की सतह) की ऊपरी सतह से होती है. यह लाल रंग का होता है और प्रकाशमंडल के ऊपर लगभग 2,000 से 3,000 किलोमीटर तक फैला हुआ है. चूंकि, सूर्य गैसों से बना एक गोला है, इसलिए इसमें बहुत तेज रफ्तार से बेहद सूक्ष्म कणों के तूफान लगातार चलते रहते हैं. इनमें बड़ी-बड़ी सौर लपटें उठती रहती हैं. इन लपटों का ऊपरी सिरा सूर्य की सतह से 70,000 किलोमीटर से भी ज्यादा ऊंचाई पर होता है.

सूर्य का सबसे बाहरी भाग प्रभामंडल या कोरोना (Corona) या ‘सूर्य किरीट’ वर्णमंडल (सूर्य का वायुमंडल) के ऊपर होता है. कोरोना का तापमान करीब 10 लाख डिग्री सेल्सियस से भी अधिक है. कोरोना बाहरी अंतरिक्ष में लाखों किलोमीटर तक फैला हुआ है और इसे सूर्य ग्रहण के समय आसानी से देखा जाता है, क्योंकि जब सूर्यग्रहण के समय चंद्रमा की छाया सूर्य को ढक लेती है, तब किनारों पर जो प्रकाश दिखाई देता है, वह कोरोना ही होता है.

पार्कर सोलर प्रोब मिशन- यही बात आज तक सभी वैज्ञानिकों को परेशान कर रही है, कि जब सूर्य की सतह का तापमान तो 6,000 डिग्री सेल्सियस है, तो उसके वातावरण या वायुमंडल की ऊपरी परत ‘कोरोना’ का तापमान 10 लाख डिग्री सेल्सियस कैसे है? इसी पहेली को सुलझाने के लिए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने साल 2018 में अपना पार्कर सोलर प्रोब मिशन (Parker Solar Probe mission) लॉन्च किया था. पार्कर सोलर प्रोब यान सूर्य के नजदीक पहुंचने वाला पहला मानव निर्मित यान है, जो सूर्य की करीब से तस्वीरें भेजकर उसकी कई पहेलियों को सुलझाने में मदद करेगा.

सौर ज्वाला और सौर कलंक

कभी-कभी सूर्य की सतह से परमाणुओं का तूफान इतनी तेजी से निकलता है कि सूर्य की चुंबकीय शक्ति को भी पार कर जाता है और अंतरिक्ष में चला जाता है, इसे सौर ज्वाला (Solar Flame) कहते हैं. जब ये सौर ज्वालाएं पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करती हैं, तो हवा के कणों से टकराकर रंगीन प्रकाश पैदा करती हैं, जिन्हें ‘अरोरा’ कहते हैं. इस रंगीन प्रकाश को उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव पर देखा जा सकता है.

जैसे चंद्रमा में कई तरह के धब्बे दिखाई देते हैं, उसी तरह सूर्य की सतह पर भी कई तरह के धब्बे दिखाई देते हैं. बस हम अपनी खाली आंखों से इन्हें नहीं देख सकते. इन धब्बों को सबसे पहले साल 1510 में गैलीलियो ने अपनी दूरबीन से देखा था.

जहां से सौर ज्वालाएं निकलती हैं, वहीं काले धब्बे दिखाई देते हैं. इन्हें ही सौर कलंक (Sun Spots) कहते हैं. सूर्य के बाकी हिस्सों की तुलना में ये धब्बों वाले भाग ठंडे होते हैं, जिनका तापमान 1,500 डिग्री सेल्सियस होता है. इन धब्बों का व्यास करीब 50,000 किलोमीटर होता है. सौर कलंक से तेज चुंबकीय किरणें निकलती हैं, जो पृथ्वी के वायरलेस कम्युनिकेशन सिस्टम को प्रभावित कर सकती हैं.

सौर तूफान (Solar Storm)

दूसरे शब्दों में कहें तो सूर्य की सतह पर बड़े पैमाने के विस्फोट होते हैं. इस दौरान कुछ हिस्से बेहद तेज प्रकाश के साथ बहुत सारी मात्रा में ऊर्जा या एनर्जी छोड़ते हैं, इसे ‘सन फ्लेयर’ कहा जाता है. सूर्य की सतह पर होने वाले इस विस्फोट से उसकी सतह से बड़ी मात्रा में चुंबकीय ऊर्जा (Magnetic Energy) निकलती है. इससे सूर्य की बाहरी सतह का कुछ हिस्सा खुल जाता है. इससे जो एनर्जी या हवा बाहर की तरफ निकलती है, वो आग की लपटों की तरह दिखाई देती हैं.

ये हवाएं ऊपर की तरफ औसतन करीब 10 लाख मील प्रति घंटे की रफ्तार से चलती हैं. हालांकि, इनकी रफ्तार और भी तेज हो सकती है. सूरज की सतह से निकलने वाली ये ऊर्जा या हवा पूरे अंतरिक्ष में फैल जाती है. इसे ही सौर तूफान (Solar Storm) कहा जाता है. इस ऊर्जा में जबरदस्त न्यूक्लियर रेडिएशन होता है, जो इसे सबसे ज्यादा खतरनाक बनाता है. हालांकि, पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र ऐसे सौर तूफानों से धरती की रक्षा करता है.

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हमारे जीवन को कैसे प्रभावित करता है सूर्य

धरती के हर वर्गमीटर क्षेत्र पर रोजाना 6 से 8 किलोवाट घंटे की शक्ति के बराबर सूर्य का ताप मिलता है. पृथ्वी पर हर घंटे पड़ने वाला सूर्य का ताप करीब 21 टन कोयले के ज्वलन शक्ति के बराबर है. सूर्य से मिली ऊर्जा से बिजली बनाई जाती है, जिसे सौर ऊर्जा (Solar Energy) कहा जाता है. सौर ऊर्जा सूर्य से ही मिली ऊर्जा का प्रत्यक्ष रूप है.

भारत जैसे देश में जो भूमध्य रेखा के पास है, यहां सौर ऊर्जा बहुत अच्छी मात्रा में उपलब्ध है. भारत के ज्यादातर हिस्सों में साल के 250 से 300 दिनों में सूर्य पूरे दिन चमकता है, इससे प्रति वर्गमीटर को 4 से 7 किलोवाट यूनिट ऊर्जा मिलती है. एक अनुमान के मुताबिक, भारत में हर साल 5 हजार ट्रिलियन यूनिट ऊर्जा सूर्य से मिलती है, जो कि हमारी कुल जरूरत का कई गुना ज्यादा है.

सूर्य के ताप का इस्तेमाल अलग-अलग रूपों जैसे खाना पकाने, पानी गरम करने, पानी को भाप बनाने, भाप से मोटर चलाने और बिजली बनाने आदि में किया जाता है इसे सौर तापीय ऊर्जा (Solar Thermal Energy) कहते हैं. पवन ऊर्जा का मूल स्रोत भी सूर्य ही है. वहीं, बायोगैस या जैविक ऊर्जा का स्रोत भी सूर्य ही है, क्योंकि सूर्य के प्रकाश से ही धरती पर पेड़-पौधे वनस्पतियां और फसलें उगती हैं.

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नदियों और समुद्र का बहाव भी सूर्य पर ही आधारित होता है. जब सूर्य का ताप सागर पर पड़ता है तो पानी भाप बनकर उड़ जाता है. यही भाप बादलों के रूप में फिर से पृथ्वी की तरफ बढ़ती है. इसके अलावा, सूर्य का ताप जब बर्फीली चोटियों पर पड़ता है तो बर्फ पिघल कर नदियों के बहाव को जारी रखती है. जहां-जहां भी बर्फ पिघलकर ऊपर से नीचे की ओर गिरती है, वहां का इस्तेमाल ऊर्जा के उत्पादन में किया जा सकता है. सूर्य और विशेष रूप से चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण ही समुद्र में ऊंचे-ऊंचे ज्वार-भाटे उठते हैं. यानी हम कह सकते हैं कि पृथ्वी पर जीवन का आधार सूर्य ही है.



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About Sonam Agarwal 238 Articles
LLB (Bachelor of Law). Work experience in Mahendra Institute and National News Channel (TV9 Bharatvarsh and Network18). Interested in Research. Contact- sonagarwal00003@gmail.com

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