Shri Ram ka Janm : श्रीराम का जन्म कैसे हुआ था?

shri ram ka janm kaise hua, ram lakshman ramayan ayodhya kand, ramayan prem katha, shri ram, bhagwan shri ram and jabali rishi in ramayan story, kya ram bhagwan the, रामायण में भगवान श्रीराम और महर्षि जाबालि का संवाद, yoga vasistha ramayana
भगवान श्रीराम

Shri Ram ka Janm Kaise Hua

विश्वामित्र जी शर्त लगाते हुए कहते हैं कि “यदि राजा हरिश्चंद्र सत्य की परीक्षा में सफल होते हैं तो मैं अपना आधा तपोबल उन्हें दे दूंगा..”

तो ये अपना आधा-चौथाई तपोबल आखिर कैसे दिया जा सकता है? क्या तपस्या का फल कोई वस्तु होती है, जिसे कई भागों में बांटकर आप दूसरे को दे सकते हैं..?

विश्वामित्र जी जैसे-जैसे तपस्या करते जाते थे, उनकी शक्तियां बढ़ती चली जाती थीं और वे अपनी शक्तियों से देवताओं की शक्तियों को भी चुनौती दे रहे थे, तब देवताओं की ओर से विश्वामित्र की तपस्या में अनेक विघ्न डाले गए…

एक बार जब विश्वामित्र जी की तपस्या सफल होती है, तब ब्रह्माजी की ओर से उन्हें खीर का एक पात्र दिया जाता है और कहा जाता है कि “लो वत्स! अपनी तपस्या की सफलता का प्रसाद ग्रहण करो..”

लेकिन तभी इंद्र एक याचक का वेश बनाकर वह खीर स्वयं ग्रहण कर जाते हैं. इस प्रकार विश्वामित्र जी की उस तपस्या का सारा फल इंद्र ले जाते हैं, हालांकि विश्वामित्र जी इस बात को जानते थे, अतः उन्होंने जानबूझकर ही इंद्र को अपनी तपस्या का फल दे दिया… पर यदि मान लीजिए कि कई देवता आ जाते, तो विश्वामित्र जी की उस तपस्या का फल उन देवताओं में बंट जाता…?

महाराज दशरथ न जाने कितने प्रकार के यत्न करते हैं, सब प्रकार के पुण्यकर्म करते हैं, लेकिन बहुत वर्षों तक उन्हें संतान की प्राप्ति नहीं होती. आखिरकार राजा दशरथ जी का पुत्रेष्टि यज्ञ सफल होता है, शायद यह दशरथ जी की अंतिम तपस्या थी. उस यज्ञ की सफलता के फलस्वरूप उन्हें खीर का एक पात्र दिया जाता है और कहा जाता है कि “लो वत्स! इसे अपनी तीनों रानियों में बांट दो, तुम्हारी मनोकामना पूरी होगी…”

यह खीर राजा दशरथ और तीनों रानियों की जीवनभर की तपस्या का फल या परिणाम ही तो थी…

वाल्मीकि रामायण में बालकाण्ड के सर्ग 11 से लेकर सर्ग 18 तक श्रीराम के अवतरित होने का पूरा वर्णन है. वाल्मीकि रामायण के अनुसार-

“श्रीहरि ने अपने को चार स्वरूपों में प्रकट करके राजा दशरथ को पिता बनाने का निश्चय किया…” (बालकाण्ड सर्ग १५ श्लोक ३१)

यानी तीन माताओं के लिए भगवान् विष्णु चार भागों में बंटकर आ रहे थे.

bhagwan vishnu shri hari baikunth vaikunth lok

“देवताओं की बात सुनकर भगवान् विष्णु ने अपने अवतारकाल में राजा दशरथ को ही अपना पिता बनाने की इच्छा की. उसी समय वे महातेजस्वी नरेश (दशरथ जी) पुत्रहीन होने के कारण पुत्रप्राप्ति की इच्छा से पुत्रेष्टि यज्ञ कर रहे थे. उन्हें पिता बनाने का निश्चय करके भगवान् विष्णु पितामह (ब्रह्माजी) की अनुमति लेकर तथा देवताओं व महर्षियों से पूजित होकर वहां से अंतर्ध्यान हो गए. तत्पश्चात पुत्रेष्टि यज्ञ करते हुए राजा दशरथ के यज्ञ में अग्निकुंड से एक विशालकाय पुरुष प्रकट हुआ. उसके शरीर में इतना प्रकाश था, जिसकी कहीं तुलना नहीं थी. उसका बल-पराक्रम महान था.” (बालकाण्ड सर्ग १६)

“राजा दशरथ ने खीर का आधा भाग रानी कौशल्या को दिया. फिर बचे हुए का आधा भाग रानी सुमित्रा को दिया. उन दोनों को देने के बाद जितनी खीर बच रही, उसका आधा भाग उन्होंने रानी कैकेयी को दे दिया. तत्पश्चात उस खीर का जो अवशिष्ट भाग था, उस अमृतोपम भाग को महाबुद्धिमान नरेश ने कुछ सोच-विचारकर पुनः सुमित्रा को ही अर्पित कर दिया. इस प्रकार राजा ने अपनी सभी रानियों को खीर बाँट दी.” (बालकाण्ड सर्ग १६)

“श्रीराम विष्णुस्वरूप पायस के आधे भाग से प्रकट हुए थे.” (बालकाण्ड सर्ग १८ श्लोक ११). और इसी प्रकार जिस रानी को खीर का जितना भाग मिला, उस रानी से विष्णु जी अपने उतने भाग से ही प्रकट हुए. जैसे- “भरत जी विष्णु जी के चतुर्थांश के भी न्यून भाग से प्रकट हुए थे. रानी सुमित्रा से लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ. ये दोनों वीर साक्षात् भगवान् विष्णु के अर्धभाग से संपन्न थे.” (बालकाण्ड सर्ग १८ श्लोक १३, १४)

और इस प्रकार चारों भाई मिलकर पूर्ण विष्णुस्वरूप थे. ‘विष्णु’ किसी शरीर का नाम नहीं, कारण-वारि की शेष-शैय्या पर शयन करने वाले नारायण हैं. यानी क्षीरसागर, शेषनाग, समय रूपी चक्र, धर्म रूपी शंख आदि सब विष्णुस्वरूप में ही सम्मिलित हैं. और इसीलिए श्रीकृष्ण और बलराम दोनों को एक साथ भगवान् विष्णु का अवतार कहा जाता है.

brihaspativar guruvar vrat vidhi katha udyapan thursday fast rules, narad ne vishnu ko shrap diya, bhagwan shiv aur mohini vishnu, Shri-Vishnu, bhagwan vishnu, shree hari, shri vishnu stuti mantra, jai jai surnayak, ramcharitmanas, shantakaram bhujagashayanam padmanabham suresham

वाल्मीकि रामायण में श्रीराम के लिए ‘जन्म’ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया. उनके लिए ‘प्रकट’ शब्द का ही प्रयोग किया गया है, क्योंकि भगवान् का जन्म आदि नहीं होता, वे अवतरित होते या प्रकट होते हैं. और तुलसीदास जी भी ऐसा ही लिखते हैं-

भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।

अब इतनी साफ-साफ बात तो लिखी हुई है, उसके बाद भी आज कुछ लोग हर जगह “खीर में शुक्राणु”, “राम खीर से कैसे पैदा हो गए”, जैसी बातें क्यों लिखते हैं, पता नहीं.

पुत्रेष्टि यज्ञ जैसे यज्ञ बहुत बड़े यज्ञ होते हैं, जिन्हें कोई विशेष ऋषि ही करवा सकते हैं, हर कोई नहीं करवा सकता, क्योंकि ऐसे यज्ञों में यज्ञ करने वाला अपने जीवन की पूरी तपस्या सारा पुण्य अर्पित कर देता है, और यदि यज्ञ सफल होता है तब उसकी तपस्या का फल उसके सामने प्रकट होता है.

मनुष्य जीवनभर जो भी कर्म करता है, उसका परिणाम किसी न किसी रूप में सामने आकर दिखाई जरूर देता है. हमारे कर्म अदृश्य हो सकते हैं लेकिन परिणाम कभी अदृश्य नहीं होते, परिणाम मिलने से पहले उसके संकेत भी जरूर प्राप्त होते हैं.

फल कोई वस्तु नहीं बल्कि तप के परिणामस्वरूप दिया गया एक अधिकार है, जिसे किसी वस्तु आदि के रूप में दिया जाता है, जैसे मेघनाद ने अपनी तपस्या से तीन सर्वोच्च शक्तियों त्रिशूल, चक्र और ब्रह्मास्त्र पर अधिकार प्राप्त किया था. और निश्चित सी बात है कि अधिकार का दुरुपयोग करने पर अधिकार देने वाला उस अधिकार से वंचित करने का भी अधिकार रखता है.

Read Also : भगवान् कब अवतार लेते हैं?

Written By : Aditi Singhal (working in the media)



Copyrighted Material © 2019 - 2024 Prinsli.com - All rights reserved

All content on this website is copyrighted. It is prohibited to copy, publish or distribute the content and images of this website through any website, book, newspaper, software, videos, YouTube Channel or any other medium without written permission. You are not authorized to alter, obscure or remove any proprietary information, copyright or logo from this Website in any way. If any of these rules are violated, it will be strongly protested and legal action will be taken.



About Guest Articles 83 Articles
Guest Articles में लेखकों ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। इन लेखों में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Prinsli World या Prinsli.com उत्तरदायी नहीं है।

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*