Maha Mrityunjaya Mantra in Vedas : भगवान शिव का महामंत्र- महामृत्युंजय मंत्र

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Maha Mrityunjaya Mantra in Vedas

शरीर को स्वस्थ रखने के लिए आहार-विहार, खानपान, नियमित दिनचर्या आदि बहुत से उपाय बतलाए गए हैं, जिनका पालन करना बहुत आवश्यक है. इस सब नियमों का पालन करने के बाद भी यदि कर्मभोग के कारण शरीर का कोई बड़ा कष्ट ऐसा है, जो बहुत खर्चों के बाद भी कोई डॉक्टर ठीक नहीं कर पा रहा है, तो शरीर के ऐसे कष्ट को दूर करने के लिए कुछ आध्यात्मिक उपाय करने होते हैं, जिनमें से एक है- महामृत्युंजय मंत्र (Mahamrityunjaya Mantra) का जप, जिसे त्रयम्बकम मंत्र (Tryambakam Mantra) भी कहा जाता है.

भगवान शिव को ‘त्रयम्बक’, ‘वैद्यनाथ’ और ‘सोमनाथ’ भी कहते हैं. भगवान त्रयम्बक आयु, ओज, बल, वीर्य व तेज के संरक्षक हैं. उनकी उपासना या साधना साधक को तेजस्वी, ओजस्वी व वर्चस्वी बनाती है. महामृत्युंजय मंत्र ऋग्वेद का एक श्लोक है, जिसके माध्यम से भगवान शिव की स्तुति और उनसे प्रार्थना की गई है. गायत्री मंत्र के समकक्ष ही इसे सबसे शक्तिशाली शिव मंत्र कहा जाता है. महामृत्युंजय मंत्र का जप करने से ग्रह-शांति सहित बहुत सी बाधाएं दूर होती हैं. यह असामयिक मृत्यु को रोकता है, दीर्घायु प्रदान करता है और विपत्तियों को दूर करता है. यह भय को दूर करता है और इससे आरोग्यता की भी प्राप्ति होती है.

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।।

(ऋग्वेद ७ | ५९ | १२) और (शुक्लयजुर्वेद ३ | ६०)

“हम त्रिनेत्रधारी भगवान शंकर की पूजा करते हैं, जो मर्त्यधर्म से रहित दिव्य सुगन्धि से युक्त, उपासकों के लिए धन-धान्य आदि पुष्टि को बढ़ाने वाले हैं. वे त्रिनेत्रधारी उर्वारुक फल की तरह हम सबको अपमृत्यु या सांसारिक मृत्यु से मुक्त करें. स्वर्गरूप या मुक्तिरूप अमृत से हमको न छुड़ाएं अर्थात हम उपासकों को अमृत तत्व से वंचित न करें.”

मृत्योर्मुक्षीय का अर्थ है- मोक्ष के लिए हमें मृत्यु से मुक्ति देना.

मामृतात् का अर्थ है- कृपया मुझे कुछ अमृत दें ताकि घातक बीमारियों से होने वाली मृत्यु के साथ-साथ, पुनर्जन्म के चक्र से भी बाहर निकल सकें.

महामृत्युंजय मंत्र के द्वारा वैदिक ऋषि ने भगवान त्रिनेत्र अर्थात् भगवान् शिव से यह प्रार्थना की है कि वह जीवन भर निरोग रह कर, सदाचारपरायण रहकर अपनी पूरी आयु का भोग करता हुआ जब परिपक्व हो जाए तब ही यह देह छूटे. देह छोड़ते समय कष्ट न हो, अर्थात् मृत्यु अधिक कष्टदायी न हो. प्राण कुछ इस प्रकार देह से पृथक् हों, जिस प्रकार पका हुआ फल अपने आप ही वृक्ष से गिर पड़ता है (अर्थात् उसी प्रकार हम भी पूर्ण आयु को भोग चुकने के उपरांत बिना किसी यंत्रणा के, सरलता व स्वाभाविकता से मृत्यु के पाश से छूट जाएँ). मृत्यु के बाद हम जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त होकर सदा के लिए आपके अमृत-चरणों में आश्रय पायें (अर्थात् परमपद मोक्ष को प्राप्त हों). हे सरस सुवास से सुगन्धित, पावन परिमल से परिपूर्ण तथा हे पुष्टि के बढ़ाने वाले देव! हम आपसे प्रार्थना करते हैं, आप मृत्यु-भय से हमारी रक्षा करें.


महामृत्युंजय मंत्र का जप

महामृत्युंजय मंत्र का जप किसी सही पंडित या जानकार के मार्गदर्शन में किया जाए, तो और भी अच्छा होता है. इस मंत्र का जप करते समय कौन सी कुछ मुख्य बातों का ध्यान रखा जाता है, और कौन से मुख्य मंत्रों का प्रयोग होता है, यहां उनकी जानकारी मात्र दी जा रही है-

मंत्र जप से पहले स्नान आदि से पवित्र होकर आसन शुद्धि करके चंदन, भस्म, रुद्राक्ष धारण करना चाहिए. उसके बाद जप का संकल्प करके गणेशादि देवों का स्मरण करना चाहिए. यथासंभव पञ्चाङ्ग पूजन कर करन्यास और अङ्गन्यास करना चाहिए. इसके बाद मृत्युंजय देवता का ध्यान किया जाता है-

ॐ चन्द्रोद्भासितमूर्धजं सुरपतिं पीयूषपात्रं वहद्धहस्ताब्जेन
दधत् सुदिव्यममलं हास्यास्य पङ्केरूहम्।
सूर्येन्द्वग्नि विलोचनं करतलै: पाशाक्षसूत्राङ्कुशाम्भोजं
बिभ्रतमक्षयं पशुपतिं मुत्युञ्जयं संस्मरेत्।।

“मैं उन मृत्यञ्जयभगवान का स्मरण करता/करती हूँ, जो अक्षय अविनाशी हैं. जिनके केश चन्द्रमा से सुशोभित हैं. जो देवताओं के स्वामी हैं तथा जिन्होंने अपने करकमल में अमृत का दिव्य और विशाल पात्र धारण कर रखा है. जिनका मुखकमल प्रसन्न है. जिनके तीनों नेत्र सूर्य, चन्द्रमा एवं अग्निमय हैं. जिनके करतल में पाश, अक्षसूत्र (रुद्राक्षमाला), अंकुश और कमल है.”

इसके बाद मानसोपचार पूजा की जाती है- प्रत्येक पुष्पादि पदार्थ को अर्पित करने के लिए आचमनी से जल छोड़ना चाहिए (इन मंत्रों से भावना पूर्वक मानसपूजा की जाती है)-

ॐ लं पृथिव्यात्मकं गंधं समर्पयामि।
ॐ हं आकाशात्मकं पुष्पं समर्पयामि।
ॐ यं वाय्वात्मकं धूपं समर्पयामि।
ॐ रं तेजसात्मकं दीपं समर्पयामि/दर्शयामि।
ॐ वं अमृतात्मकं नैवेद्यं समर्पयामि।
ॐ सर्वात्मकं मंत्रपुष्पं समर्पयामि।

मानस पूजा करने के बाद एकाग्र मन से संकल्पित मंत्र से मृत्युंजय मंत्र का जप करना चाहिए.

मृत्युंजय मंत्र का जप समाप्त होने के बाद फिर से अङ्गन्यास और करन्यास करके मृत्यंजय देवता को जप निवेदन किया जाता है और हाथ में जल लेकर जप सिद्धि के लिए इस श्लोक का उच्चारण किया जाता है-

गूह्यातिगुह्यगोप्ता त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम।
सिद्धिर्भवतु मे देव त्वत्प्रसादान्महेश्वर।।

क्षमाप्रार्थना–

करचरणकृतं वाक्कायजं कर्मजं वा
श्रवणनयनजं वा मानसं वाऽपराधम्
विहितविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व
जय-जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो॥

“हाथों से, पैरों से, वाणी से, शरीर से, कर्म से, कर्णों से, नेत्रों से अथवा मन से भी हमने जो अपराध किए हैं, वे विहित हों अथवा अविहित, उन सबको हे करुणासागर महादेव शम्भो! क्षमा कीजिए! आपकी जय हो, जय हो.”

इसके बाद,
अनेन यथासंख्याकेन (जो आपकी जप संख्या हो), यथा– सपादलक्ष (सवा लाख)– संख्याकेन मृत्युञ्जयजपाख्येन कर्मणा श्रीमहामृत्युञ्जयदेवता प्रीयतां न मम्।
कहकर जल छोड़ दिया जाता है.

उपर्युक्त प्रकार से जप को अर्पित करके प्रार्थना की जाती है (सर्वव्याधि निवारण हेतु इस मंत्र का जाप किया जाता है)-

मृत्युञ्जयमहारुद्र त्राहि मां शरणागतम्।
जन्ममृत्युजरारोगै: पीडितं कर्मबन्धनै:।।

“हे मृत्यंजय! हे महारुद्र! जन्म-मृत्यु और वार्धक्य आदि विविध रोगों और कर्मों के बंधन से पीड़ित मैं आपकी शरण में आया हूँ. मेरी रक्षा करो.”

चूंकि मंत्रोच्चारण, पूजन और जप आदि में जाने-अनजाने त्रुटियों की संभावना रहती ही है, अतः उस दोष की निवृत्ति के लिए क्षमा याचना करनी चाहिए-

यदक्षरपदभ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत्।
तत्सर्वं क्षम्यतां देव प्रसीद परमेश्वर।।

सभी कर्मों के दृष्टा और साक्षी भगवान विष्णु होते हैं, अतः उनका स्मरण करने से वे प्रमाद, आलस्य आदि के कारण जप-कर्म में जो कुछ भी कर्तव्य छूट जाता है, वे उसे पूर्ण कर देते हैं. अतः अंत में ‘ॐ विष्णवे नमः’ का तीन बार उच्चारण करना चाहिए.

कहा भी गया है कि —

ॐ प्रमादात् कुर्वतां कर्म प्रच्यवेताध्वरेषु यत्।
स्मरणादेव तद्विष्णो: सम्पूर्णं स्यादिति श्रुति:॥
यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या जपयज्ञक्रियादिषु।
न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम्॥


महामृत्युंजय मंत्र का जप करते समय इन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए–

♦ मंत्रों का जप करते समय उच्चारण, मात्रा, लय, ताल आदि का ध्यान रखा जाना चाहिए.

♦ यदि रोज जप कर रहे हैं तो एक निश्चित संख्या में जप करना चाहिए. यदि रोज एक निश्चित स्थान पर जप किया जाए, तो बहुत अच्छा होता है.

♦ मंत्र का उच्चारण होठों से बाहर नहीं आना चाहिए. अगर अभ्यास न हो तो धीमे स्वर में जप करना चाहिए. रोज 108 बार जाप किया जा सकता है.

♦ महामृत्युंजय मंत्र का जप रुद्राक्ष की माला से करना चाहिए. जप करने से पहले भगवान् शिव की पूजा, जलाभिषेक आदि कर लें.

♦ जप काल में भगवान शिव की प्रतिमा, चित्र, शिवलिंग या महामृत्युंजय यंत्र पास में जरूर रखना चाहिए. एकान्त स्थान पर बैठकर आँखों को बन्द करके जप करना चाहिए.

♦ महामृत्युंजय मंत्र के सभी जप एक निश्चित पवित्र आसन पर बैठकर पूर्व दिशा की तरफ मुख करके करना चाहिए.

♦ कोशिश करें कि जपकाल में ध्यान पूरी तरह मंत्र में ही रहना चाहिए, मन को इधर-उधर न भटकाएं. आलस्य व उबासी को न आने दें. मिथ्या बातें न करें.

♦ महामृत्युंजय मंत्र का रोज जप करने वालों को मांसाहार का त्याग कर देना चाहिए (भगवान् शिव सभी के स्वामी हैं. पशुपतिनाथ भी उन्हीं का नाम है). यदि एक ही दिन जप कर रहे हैं, तो जिस दिन जप कर रहे हैं, उस दिन के कुछ दिन पूर्व और कुछ दिन बाद तक मांसाहार बिल्कुल न करें.

♦ महामृत्युंजय मंत्र का जाप सुबह-शाम दोनों समय किया जा सकता है. लेकिन यदि कोई संकट की स्थिति है तो इस मंत्र का जप किसी भी समय किया जा सकता है.

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