‘ब्रह्मा जी की पूजा क्यों नहीं होती है?’ क्या आप नहीं करते हैं ब्रह्मा जी की पूजा?

Shri Brahma ji ki puja

Brahma ji ki Puja Kyon Nahin Hoti Hai

“ब्रह्मा जी की पूजा क्यों नहीं की जाती है” इंटरनेट पर हर जगह इस सवाल के केवल दो ही जवाब दौड़ते रहते हैं-

पहला जवाब- ब्रह्मा जी ने अपनी पुत्री सरस्वती को जन्म देकर उनसे जबरन विवाह कर लिया था. इसलिए कहीं भी उनकी पूजा न होने का उन्हें दंड मिला है.

दूसरा जवाब- ब्रह्मा जी एक यज्ञ करने जा रहे थे. उनकी पत्नी सावित्री आने में लेट हो गईं, तो ब्रह्मा जी ने गायत्री की रचना करके उनसे विवाह कर लिया. फिर सावित्री ने अपनी जगह दूसरी स्त्री को देखकर ब्रह्मा जी को शाप दे दिया कि तुम्हारी पूजा नहीं होगी.

बस, यही दोनों कहानियां इंटरनेट पर ‘जंगल में आग’ की तरह फैली हुई हैं. कई और भी कथाएं देखने को मिलती हैं, जिनमें घूम-फिरकर बिना वजह बस ब्रह्मा जी को उनकी पूजा न होने का शाप मिलने की ही बात आ जाती है. बिना कोई रिसर्च किए सनातन धर्म से जुड़ी ऐसी मनगढ़ंत बातों की कॉपी-पेस्टिंग में आजकल के तथाकथित बड़े-बड़े न्यूज चैनल्स भी पीछे नहीं हैं.

कहते हैं न किसी झूठ को बार-बार बोलो तो वह भी सच लगने लगता है. और कहानियां तो ऐसे बनाई गई हैं जैसे भगवान तो उतावले रहते हैं अपनी पूजा होने के लिए. लेकिन क्या आप भी आजकल की फिल्मों-सीरियलों की तरह बनाई गई ऐसी कहानियों पर यकीन करते हैं?

जिस सरस्वती पुराण में यह कथा मिलती है, वह पुराण 18 पुराणों में शामिल ही नहीं है, यहां तक कि उप-पुराणों में भी उसका नाम नहीं है. और मत्स्य पुराण में भी यह कथा बीच में ही कहीं पर मिल जाती है. यानी कल को हम और आप भी इसी तरह की कई कहानियों को जोड़ सकते हैं, क्योंकि आज किसी के पास इतना समय ही कहां है कि वह इस तरह की मनगढ़ंत कहानियों के प्रमाण ढूंढे.

खैर, जो लोग भी इस तरह का झूठा प्रचार करते रहते हैं, उन लोगों ने कभी कोई पूजा-पाठ तो की नहीं होगी. नहीं तो उन्हें जरूर पता होता कि भगवान शिव और विष्णु जी की पूजा करने वाले लोग रोज ब्रह्मा जी की भी पूजा और स्तुति करते ही हैं. आपने तो शिव आरती (Shiv Aarti) में ध्यान दिया ही होगा-

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर में शोभित, ये तीनों एका।।

अर्थात् अविवेकी या अज्ञानी लोग ही ब्रह्मा, विष्णु और शिव को अलग-अलग देखते हैं. प्रणवाक्षर में ये तीनों एक हैं. भगवान शिव की पूरी आरती ही त्रिदेवों की आरती है, क्योंकि त्रिदेव (ॐ) एक हैं. ब्रह्मा, विष्णु और महेश एक ही हैं. बस सृष्टिकार्य के संचालन के लिए ये हमें अलग-अलग रूपों में जान पड़ते हैं.

सुबह-सुबह की वंदना में सभी देवों के साथ ब्रह्मा जी की भी स्तुति की जाती है.

ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी
भानुः शशीभूमिसुतोबुधश्च ।
गुरुश्चशुक्रः शनिराहुकेतवः
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ॥१॥

जहां- ब्रह्मा (निर्माता), मुरारी (विष्णु), त्रिपुरांतकारी (शिव, त्रिपुरासुर का वध करने वाले).

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुःसाक्षात् परंब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नम:॥

त्वं वै चतुर्मुखो ब्रह्मा सत्यलोकपितामहः।
आगच्छमण्डले चास्मिन् मम सर्वार्थसिद्धये॥

बंदउँ बिधि पद रेनु भव सागर जेहिं कीन्ह जहँ।
“मैं श्री ब्रह्माजी के चरण रज की वन्दना करता हूँ, जिन्होंने भवसागर बनाया है.”

रोज पूजा-पाठ करने वाले लोग जानते हैं कि हर मुख्य पूजा में त्रिदेवों की एक साथ स्तुति और ध्यान किया जाता है. अब अगर सच में ब्रह्मा जी ने कोई ऐसा अपराध किया होता या उन्हें इस तरह के कोई श्राप मिले होते, तो क्या पूजा के सभी मुख्य मंत्रों में ब्रह्मा जी का नाम होता?


अब सवाल ये है कि जब भगवान शिव के अलग मंदिर हैं, विष्णु जी के अलग मंदिर हैं तो ब्रह्मा जी के क्यों नहीं?

तो इस सवाल के कई जवाब हैं, लेकिन उससे पहले कुछ बातों को जानिए-

पहली बात कि, सरस्वती जी ब्रह्मा जी की पुत्री नहीं हैं. ब्रह्मा जी ने सरस्वती जी की रचना नहीं की, बल्कि उनका आवाहन किया है. माता सरस्वती अनादि हैं. ऐसी शक्तियां किसी बड़ी शक्ति के आवाहन पर ही प्रकट होती हैं. माता सरस्वती मूलप्रकृति आदिशक्ति के तेज से उत्पन्न हुई हैं.

माता सरस्वती ब्रह्मा जी की पराशक्ति या सर्वोच्च शक्ति हैं. जैसे भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी जी का रिश्ता, भगवान शिव और शक्ति का रिश्ता सदैव से है, उसी प्रकार मां सरस्वती सदैव से ही ब्रह्मा जी की पत्नी हैं. ब्रह्मा जी के चार मुख होने का मतलब ये नहीं कि इनके चार सिर हैं. उनके चार मुख चारों दिशाओं और चार वेदों के प्रतीक हैं.

परा विद्या और अपरा विद्या

‘सरस्वती’ शब्द का प्रयोग उस ऊर्जा के लिए किया जाता है, जो ज्ञान और विद्या की अधिष्ठात्री हो और साकार रूप में विद्यमान हो. शास्त्रों के अनुसार, जिस तरह ज्ञान या विद्याएं दो हैं- अपरा और परा विद्या, उसी प्रकार सरस्वती भी दो हैं. अपरा विद्या की सृष्टि ब्रह्माजी से हुई है, लेकिन परा विद्या की सृष्टि ब्रह्म से हुई मानी जाती है.

अपरा विद्या ब्रह्माजी की पुत्री हैं, जिनका विवाह भगवान विष्णु जी के एक स्वरूप से हुआ है. और ब्रह्माजी की पत्नी जो सरस्वती हैं, वे परा विद्या की अधिष्ठात्री देवी हैं. वे मोक्ष के मार्ग को प्रशस्त करने वाली देवी हैं. लेकिन पुराणों की व्याख्या करने वाले कुछ लोग सरस्वती जी (अपरा विद्या) के जन्म की कथा को उस सरस्वती (परा विद्या) से जोड़ देते हैं, जो ब्रह्मा जी की पत्नी हैं, जिसके चलते सब कुछ मिक्स हो चला है और लोगों में भ्रम पैदा करता है, साथ ही गन्दी बुद्धि वालों को उल्टे-सीधे आरोप लगाने का मौका देता है.

दरअसल ‘सरस्वती’ का अनेक प्रकार से उल्लेख मात्र दो पुराणों में ही मिलता है. यहां तक कि वाल्मीकि रामायण या रामचरितमानस या महाभारत आदि में भी ब्रह्मा जी या मां सरस्वती जी की ऐसी किसी कहानी का कोई संकेत नहीं मिलता. वेदों में तो भगवती सरस्वती जी का एक ही स्वरूप बताया गया है कि ये अजन्मा हैं और सदैव से ही ब्रह्मा जी की शक्ति या अर्धांगिनी हैं.

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दूसरी बात कि, गायत्री माता ब्रह्मा जी की पत्नी नहीं हैं और न ही गायत्री माता की रचना ब्रह्मा जी ने की है. आप तो जानते ही हैं कि गायत्री मंत्र की रचना विश्वामित्र जी ने की थी. विश्वामित्र ने गायत्री मंत्र की रचना कर गायत्री माता का आवाहन किया था. उससे पहले गायत्री माता प्रकट अवस्था में नहीं थीं. विश्वामित्र गायत्री माता से पूछते हैं कि, “हे माता! आप कौन हैं, जो शक्ति भी लगती हैं और लक्ष्मी भी और सरस्वती भी जान पड़ती हैं.”

गायत्री माता शक्ति, लक्ष्मी और सरस्वती का सम्मिलित रूप हैं. आप गायत्री माता का स्वरूप भी देखें, तो उनके हाथों में शक्ति की तरह अस्त्र-शस्त्र हैं तो लक्ष्मी जी की तरह कमल पुष्प भी और सरस्वती जी की तरह वे वेद भी धारण करती हैं.

गायत्री मंत्र के रूप में ईश्वर के प्रकाश की आराधना की गई है. ईश्वर के प्रकाश को ‘सविता’ भी कहते हैं और इसीलिए गायत्री का एक और नाम ‘सावित्री’ भी है.

अतः ‘सरस्वती’, ‘गायत्री’ और ‘सावित्री’ तीनों समानार्थी (पर्यायवाची) शब्द के रूप में प्रयुक्त होते हैं. अब पर्यायवाची होने का मतलब ये नहीं कि ये सभी ब्रह्मा जी की पत्नियां हैं.

जैसे- मां दुर्गा आदिशक्ति देवी हैं. इन्हीं आदिशक्ति देवी से सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती (और सती) जी हैं. इसलिए तीनों देवियों के नाम मां दुर्गा के पर्यायवाची के रूप में भी प्रयुक्त होते हैं.

तीसरी बात कि, ब्रह्मा जी को जगत पिता कहा जाता है. पिता होने का मतलब ये नहीं कि वे बुजुर्ग हैं या हमारी-आपकी तरह गर्भ धारण करके बच्चों को जन्म देते हैं. ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना मानसी विधि से की है, जिसका अर्थ है- मन से या मानसिक संकल्प से, तप से या अपने तेज-ओज शक्ति से किसी की रचना करना. ब्रह्मा जी को सभी रचनाओं का आदिपुरुष कहा जाता है, इसलिए उन्हें सभी रचनाओं का पिता बुलाते हैं.

ब्रह्मा जी ने नारद, भृगु, अत्रि, जामवंत आदि अनेकों मानस रचनाएं की हैं. उनके मन से उत्पन्न होने के कारण इन्हें ब्रह्मा जी के मानस पुत्र कहा जाता है.

चौथी बात कि, ब्रह्मा जी की पूजा अत्यंत कठिन है. इनकी पूजा-उपासना विशेष प्रकार की शक्तियों की प्राप्ति के लिए की जाती है. ब्रह्मा जी जहां रहते हैं, उसे सत्यलोक कहा जाता है. सत्य को जानना और समझना किसी के वश की बात नहीं.

जो सत्य को पूरी तरह जान लेता है, वही तो ‘ब्रह्मर्षि’ बनने के योग्य हो पाता है (ऋषि अर्थात ‘दृष्टा’. श्रुति ग्रंथों यानी वेदों को यथावत समझ पाने वाले जनों को ‘ऋषि’ कहा जाता है). और ब्रह्मर्षि बनने की यात्रा ब्रह्मा जी की उपासना या तपस्या से ही शुरू होती है.

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ब्रह्मा, विष्णु, महेश

पहले के समय में किसी भी प्रकार के अस्त्र-शस्त्र और विशेष भौतिक और दैवीय शक्तियों की प्राप्ति के लिए, देवता हों या दैत्य, ब्रह्मा जी की उपासना करते थे, क्योंकि ब्रह्मा जी बिना किसी भेदभाव के वरदान देते हैं. और इसीलिए लगभग सभी राक्षस ब्रह्मा जी की तपस्या करते थे.

क्योंकि भगवान विष्णु राक्षसों को कोई वरदान नहीं देते, लेकिन राक्षसों का वध करने के लिए वे कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं. जो भी राक्षस ब्रह्मा जी से जैसा वरदान माँगता है, उसका वध करने के लिए श्रीहरि वैसा ही अवतार ले लेते हैं. और यही कारण है कि राक्षस या असुर प्रवृति के लोग हमेशा से ही भगवान विष्णु और उनके अवतारों का अपमान करते हुए ही आए हैं.

सतयुग में चाहे हिरण्यकश्यप हो, या त्रेतायुग में रावण, द्वापरयुग में कंस या शिशुपाल हो या कलियुग में श्रीराम या श्रीकृष्ण के अस्तित्व पर उंगली उठाने या उनमें कमी-दोष निकालने वाले लोग… सबकी प्रकृति लगभग एक जैसी ही है, केवल रूप बदल गए हैं. लेकिन “बैर भाव से ही सही, किया सदा हरि का ध्यान”.

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वहीं, भगवान शिव कभी किसी राक्षस को सामने से कुछ भी देने से मना नहीं करते. लेकिन वे पीछे से उसका कोई न कोई तोड़ भी निकाल लेते हैं. जैसे उन्होंने रावण को शिवलिंग तो दे दिया था, लेकिन पीछे से गणेश जी को पहुंचाकर वह शिवलिंग लंका तक नहीं पहुंचने दिया था.

इसी के साथ, भगवान शिव तो स्वयं ही संसार का सारा विष अपने कंठ में धारण किए हैं, उन पर राक्षसों या असुर प्रवृति के लोगों द्वारा किए जाने वाले किसी भी प्रकार के अपमान का क्या असर होगा… संसार की किसी भी प्रकार की बुराई शिव पर बेअसर है. भगवान शिव पर तो केवल भक्ति और पुण्यकर्मों का असर होता है.

आप कोई भी सही सनातन कथा देखें. आमतौर पर ब्रह्मा जी अपनी उपासना करने वालों को किसी न किसी प्रकार की विशेष शक्तियों का वरदान देते हैं. चाहे कोई राक्षस तपस्या करे या देवता. कोई मनुष्य तपस्या करे या कोई और. हर कोई ब्रह्मा जी की तपस्या कोई न कोई भौतिक या दैवीय शक्ति पाने के लिए ही करता है.

दूसरी बात कि भगवान शिव और भगवान विष्णु आदि, अनंत और अविनाशी हैं. ब्रह्मा जी की उत्पत्ति भगवान विष्णु जी से ही हुई है. देवताओं और ब्रह्मा जी की आयु भले ही अत्यंत लंबी है, लेकिन उनका भी जीवनकाल निश्चित ही है.

पृथ्वीलोक से सत्यलोक तक के सभी लोक हमारे इसी ब्रह्मांड में मौजूद हैं और इनमें जन्म-मृत्यु का बंधन है लेकिन बैकुंठ, शिवलोक और गोलोक में ये असुविधाएं नहीं हैं. और इसीलिए इन लोकों में पहुँचने को ही मोक्ष कहा जाता है. हर व्यक्ति का लक्ष्य मोक्ष पाना होता है, जिसके लिए उसे उसी अविनाशी भगवान की उपासना करनी होती है.


वहीं, सनातन कथाओं में आपको एक बात और जरूर पता चलेगी कि भक्ति को ही सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है, क्योंकि भक्ति में सबसे ज्यादा शक्ति है.

जैसे- हिरण्यकश्यप की बहन होलिका के पास ब्रह्मा जी का वरदान था और प्रह्लाद के पास भक्ति की शक्ति थी. प्रह्लाद की भक्ति की शक्ति, होलिका को मिले वरदान पर पर भारी पड़ी.

इसी प्रकार, हनुमान जी अतुलित बल के स्वामी हैं. उनके लिए कुछ भी असंभव नहीं. और हनुमान जी की भी असीमित शक्तियों का राज श्रीराम के प्रति उनकी भक्ति ही है. हनुमान जी पर भगवान श्रीराम और सीता जी की विशेष ही कृपा रहती है.

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इसीलिए सनातन धर्म में यही सिखाया जाता है कि भगवान की भक्ति करते हुए, उनकी शरण में रहते हुए अपने-अपने धर्म (कर्तव्य) का पालन करते रहना चाहिए, जैसे हनुमान जी, अर्जुन जी आदि (अनगिनत नाम हैं).

भक्ति का वरदान मुख्य रूप से भगवान विष्णु और भगवान शिव से प्राप्त होता है. पृथ्वी पर अवतार भी भगवान विष्णु ही लेते हैं. कभी-कभी भगवान शिव भी अवतार लेते हैं, लेकिन वे अंशावतार ही लेते हैं, जैसे हनुमान जी. जबकि भगवान विष्णु जी पूर्णावतार भी लेते हैं, जैसे श्रीराम, श्रीकृष्ण, वामन आदि.

वहीं, ब्रह्मा जी न तो कोई अवतार नहीं लेते हैं और न ही कोई विशेष लीला करते हैं. इसीलिए ब्रह्मा जी के बारे में आज के लोगों को जानकारी भी बहुत कम ही है. अतः आज के लोग ब्रह्मा जी की अलग से पूजा विधि के बारे में ज्यादा कुछ जानते नहीं और इसीलिए मंदिरों में उनकी अलग से प्रतिमाएं नहीं मिलती हैं.

लेकिन भगवान शिव और विष्णु जी की पूजा करते समय ब्रह्मा जी की पूजा भी अपने-आप ही हो जाती है, क्योंकि त्रिदेव (ॐ) एक हैं. इसलिए ये व्यर्थ की बातें हैं कि ब्रह्मा जी ने कोई अपराध किया या उन्हें कोई शाप मिले या उनकी पूजा नहीं होती.

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न आएं किसी के कुप्रचार में

सनातन पौराणिक कथाओं को लेकर किसी के भी कुप्रचार में आसानी से नहीं आ जाना चाहिए. उसका सत्य भी जानने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि गलत काम करने वाले लोग भगवान और सनातन धर्म का ही सहारा लेना चाहते हैं, जैसे शराब पीने वाले और मांस खाने वाले देवी मां के बहाने से ये सब खाते-पीते हैं. ऐसे लोग वेदों का गलत अर्थ निकालकर कभी इंद्र को मांसाहारी साबित करेंगे तो कभी भगवान को.

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